बैठो कुछ देर अकेले आख़िर कब तक भागोगे ऐसे ही,
यात्रा कभी समाप्त होगी नहीं, तुम्हें ही रुक कर आराम करना होगा।
जब इतनी दूर चल लिए तो अब आओ बैठो थोड़ी देर,
ये गठरी जो तुमने बेवजह लादी हुई है कंधे पर उतार के रख दो किसी किनारे पर,
कब तक स्वयं को बोझ से दबाते रहोगे, थोड़ा देर ठहरो देखो क्या भरा है इस गठरी में,
कहीं तुम कंकड़ पत्थर तो भर कर नहीं घूम रहे हैं, अरे पागल ये तो पड़े ही हुए हैं सब जगह तुम क्यों इन्हें लाद कर फिर रहे हो।
सब संसार की फिक्र तुम ही लिए बैठे हो, कभी थोड़ी देर खुद का हाल चाल भी तो पूछो।
क्या पता तुम्हें तुम्हारे बारे में फिक्र करने की सबसे ज्यादा जरूरत हो।
तुम सुन कहाँ रहे हो अपनी, तुम चले आ रहे हो सबके अनुसार सबके प्रभाव में सबको देखकर।
कभी देखो खुद को वो चाहता है कि विश्राम हो,
वो नहीं चाहता कि तुम कठिन बन जाओ, वो चाहता है कि सब काम सरलता से निपट जायें तो बोझ हल्का रहेगा।
लेकिन तुम सुनते कहाँ हो? तुम तो अपनी विशेषता साबित करने में खप गए हो।
किसे साबित करके दिखाना चाहते हो! क्या तुम जानते हो कि तुम भी हो इस दुनिया में? तुम्हारा भी वजूद है।
अभी समय है आओ बैठो कुछ देर, बैठो खुद के साथ।
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