जीने के प्रयास जितने भी हो तमाम किए जाएं,
खत्म होने के लिए पहले से इंतजाम किये जाएं।
जोड़ा जाए जिन्दगी को सभी तरकीबों से,
वहीं ख़ुद को मिटा देने वाले काम किए जाएं।
बूंद बूंद समेटा जाए तजुर्बा सब किस्म का,
वहीं कतरा कतरा ख़ुद को बे नाम किया जाये।
भिड़ जाओ हर मुश्किल से बेवक्त यूं ही,
कभी फुर्सत में ख़ुद से ही संग्राम किए जाएं।
बाहरी जरूरत में बन जाओ पैसों के इबादी
मगर अंदर के सारे रकबे बे-दाम किये जायें।
मतलब ढूंढ़कर तुम करते ही हो सब कुछ,
कुछ बेमतलब के भी दो चार काम किये जायें।
अंदर बहुत दबा लिया ख़ुद को समझदारी में आकर,
अब पागलपन के सब लम्हे खुलेआम जिये जाएँ।
बहुत जी ली जिंदगी दूसरों को दिखाने के मकसद से,
अब कुछ किस्से जिन्दगी के गुमनाम जिये जाएँ।
दिमाग रख लेता है हिसाब हर एक चीज का,
अब हिसाब किताब सारे बेलगाम किये जायें।
जीना की तरकीबें जितनी भी हों सारी अपना लो,
मगर साथ में मरने के भी पूरे इंतेजाम किये जायें।
~ #ShubhankarThinks
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