थमा होगा कोई थक कर किसी दौड़ से, शायद कोई आख़िरी किनारा ना होगा। आँखें मूँद कर बैठे हैं जो भी, उनके लिए बाकि अब कोई नज़ारा ना होगा। जीतने के बाद भूल जाये जो जमीं भी, ऐसा तो नहीं कि वो कभी हारा ना होगा। तसल्ली होगी नहीं कभी ज्यादा कमाने से, और अगर कमाये ही ना तो गुज़ारा ना होगा। जो डूबे हैं गम में और जिसमें महबूब हैं मुज़रिम, उन्हें ग़लती से भी इश्क़ दुबारा ना होगा। जो घूम रहे हैं अभी तक अपनों की तलाश में, उनके पास ख़ुद का कोई सहारा ना होगा। ये दुनिया बड़ी ज़ालिम है मेरे दोस्त, यहाँ आपका चुप रहना भी गवारा ना होगा। खिल सकते थे वो सब मुरझाये हुए फूल, उनको तबियत से किसी ने कभी सँवारा ना होगा। मुट्ठी में भर लो चाहे जितने भी पत्थर या मोती, जब जाओगे यहाँ से तो कुछ तुम्हारा ना होगा। ज़िन्दगी है अभी यहीं इसी वक़्त, ये पल जो अभी है फिर दुबारा ना होगा। ©ShubhankarThinks
लोग ज़िंदा हैं ऐसे जैसे एहसान जता रहे हैं,
जी कम रहे हैं, सबको बता ज्यादा रहे हैं।
उधारी में लेते हैं सांस भी सोच समझकर,
जैसे बची हुई सांसों से किश्त पटा रहे हैं।
ख़ुशी के लिए किए बैठे हैं, हसरतों की डाउनपेमेंट,
पजेशन के लिए कमबख्त हंसी बचा रहे हैं।
दो तीन की गिनती में बुरे फंस गए हैं,
ख़ुद के गणित में ही ख़ुद को फंसा रहे हैं।
जी रहे हैं दस प्रतिशत बड़े रूखे हुए मन से,
बाकी नब्बे प्रतिशत बच्चों के लिए बचा रहे हैं।
गले में कुछ भी फांस लेना प्रथा बन गई है,
आंखें मूंदकर सभी ये किए जा रहे हैं।
दुख में रहना एक बहादुरी का काम है,
घूंट घूंट इस जहर को पिए जा रहे हैं।
मूल काट रहे हैं थोड़ा थोड़ा करके,
लोग पत्तों की सजावट में जान लगा रहे हैं।
लोग जी कम रहे हैं, दिखा ज्यादा रहे हैं।।
~ #ShubhankarThinks
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