प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
अगर व्यक्ति स्वयं को व्यवस्थित कर ले तो वह अपने जीवन की आधी समस्याएं समाप्त कर लेगा।
क्योंकि अब वह स्वयं कोई समस्या नहीं है,
बची हुई समस्या बाहरी हैं,
अगर सभी लोग उसके जैसे बन जाएं
तो बची हुई समस्या भी समाप्त हो जायेंगी।
अब ऐसे संसार में सभी लोग ऊब जाएंगे,
समय व्यतीत नहीं होगा तो अपने अपने सिर
दीवार में मारने लग जाएंगे।
कुछ लोग स्वयं को इस भौतिक संसार से
मुक्त होने के लिए करेंगे आत्म हत्या।
समस्याएं हैं तभी लोग जीवन के
मूल्य समझ रहे हैं
और उन्हें जीवित रहने का लालच है।
~ #ShubhankarThinks
क्योंकि अब वह स्वयं कोई समस्या नहीं है,
बची हुई समस्या बाहरी हैं,
अगर सभी लोग उसके जैसे बन जाएं
तो बची हुई समस्या भी समाप्त हो जायेंगी।
अब ऐसे संसार में सभी लोग ऊब जाएंगे,
समय व्यतीत नहीं होगा तो अपने अपने सिर
दीवार में मारने लग जाएंगे।
कुछ लोग स्वयं को इस भौतिक संसार से
मुक्त होने के लिए करेंगे आत्म हत्या।
समस्याएं हैं तभी लोग जीवन के
मूल्य समझ रहे हैं
और उन्हें जीवित रहने का लालच है।
~ #ShubhankarThinks
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