रातों में भी करता उत्पात, समुंदर कहां कब सोता है। जब धरती की कोख़ उबलती है, तो आसमान भी तो रोता है। ये बड़े पेड़ जब कटते हैं, दर्द उन्हें भी होता है। ज़ुल्म सह लेते हैं मूक पशु, कलेजा तो उनका भी होता है। उजाड़ दिए जाते हैं घर पंछियों के, दुख उनका भी तो होता है। इन सब का जिम्मेदार जगत में, इंसान ख़ुद ही तो होता है। दुख दर्द भरे हों अगर मन में, आदमी ख़ुद को ही खोता है। देता है कयामत को अंज़ाम रोज़, फ़िर भी कभी ख़ुश नहीं होता है। ~ #ShubhankarThinks