प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
मैं भगवान का आभारी हूं कि मेरा जन्म
सोशल मीडिया के स्वर्ण युग में हुआ|
जहां सभी लोग कर्त्तव्यपालन, सामाजिक
चिंतन, नीति शास्त्र, आध्यात्मिक चिंतन,
मातृ ऋण, पितृ ऋण, देश प्रेम, धर्म संवाद
जैसे गंभीर और अत्यंत आवश्यक विषयों
पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते रहते हैं।
जब लोग इतनी गंभीरता से इतने सभी
विषयों पर चर्चा कर रहे हैं तो ऐसे में
"वास्तविकता" और "चरितार्थ" जैसे
हल्के फुल्के शब्दों को अनदेखा तो किया
ही जा सकता है।
सोशल मीडिया के स्वर्ण युग में हुआ|
जहां सभी लोग कर्त्तव्यपालन, सामाजिक
चिंतन, नीति शास्त्र, आध्यात्मिक चिंतन,
मातृ ऋण, पितृ ऋण, देश प्रेम, धर्म संवाद
जैसे गंभीर और अत्यंत आवश्यक विषयों
पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते रहते हैं।
जब लोग इतनी गंभीरता से इतने सभी
विषयों पर चर्चा कर रहे हैं तो ऐसे में
"वास्तविकता" और "चरितार्थ" जैसे
हल्के फुल्के शब्दों को अनदेखा तो किया
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