प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
प्रश्न यह की कौन हूं मैं?
सब घट रहा है फिर भी मौन हूं मैं!
श्वास श्वास घट रहा हूं, सूक्ष्म रूप रख रहा हूं।
आधार मेरा सत्य है, असत्य में भी बस रहा हूं।
यह देह मेरी मर्त्य है, अनन्त यह चेतनतत्तव है!
मैं ही ब्रह्म हूं, मैं ही बिंदु हूं,
तम भी मैं, उदगम भी मैं,
विच्छेद मुझ से, संगम भी मैं।
मैं सृष्टि हूं, नक्षत्र हूं,
मृत्यु भी मैं, मैं ही जीवत्व हूं,
आकाश में, पाताल में, भूलोक में, जलताल में,
उपस्थिति मेरी यत्र तत्र है, मैं सर्वत्र हूं।
प्रौढ़ मैं, यौवन भी मैं!
मैं बाल हूं, मैं वृद्ध हूं|
मैं योग हूं, मैं ही काम में,
मैं प्रेम हूं, मैं ही क्रुद्ध हूं,
भ्रमित ना हो किसी नाम में,
हूं अधीर मैं, मैं ही संतुष्ट हूं।
निर्मल भी मैं, मैं ही अशुद्ध हूं,
मैं शीत हूं, मैं ही रुद्र हूं।
मैं शून्य हूं, मैं क्षुद्र हूं,
मैं मौन हूं, मैं गौण हूं,
प्रश्न यह की कौन हूं मैं?
- #ShubhankarThinks
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