प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
कुछ वक्तव्य हैं जो नि:शब्द हैं,
रोचक शब्द हैं वो नेपथ्य में,
मार्गों में भटकता रक्त है,
श्वास भी पथ भ्रष्ट है।
मद पान में सम्मिलित अधर हैं,
रोमांचित हो रहे शिखर हैं।
नव स्वप्न मन में उग रहे हैं,
रोम छिद्र चुभ रहे हैं।
मुख रुधिर वर्ण में ढल गए हैं,
कंपित हृदय भी जल रहे हैं।
देह के इस प्रतिद्वंद्व में,
विस्मृत हुए सभी छंद हैं।
#Erotica
#ShubhankarThinks
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