बंद आँखों से "मैं" का जब पर्दा हटाया, कहने और करने में बड़ा फ़र्क पाया। सब समझने के वहम में जीता रहा "मैं", सच में समझ तो कुछ भी नहीं आया। रहा व्यस्त इतना सच्चाई की लाश ढोने में, कि जिंदा झूठ अपना समझ नहीं आया। कारण ढूँढता रहा हर सुख दुख में, अकारण मुझे कुछ नज़र नहीं आया। ढूँढता रहा सब जगह कुछ पाने की ललक से, जो मिला ही हुआ है वो ध्यान में ना आया। फँसता गया सब झंझटों में आसानी से, सरलता को कभी अपनाना नहीं चाहा। झूठ ही झूठ में उलझा हुआ पाया, आंखों से जब जब पर्दा हटाया। ~ #ShubhankarThinks
वैसे तो हर रोज आप एक जगह से दूसरी जगह यात्रा करते होंगे मगर कभी आपने खिड़की से बाहर हाथ निकालकर हवा को महसूस किया है। अगर आप बाइक पर पीछे बैठे हैं तो दोनों हाथ फैला कर हथेली को थोड़ा सिकोड़ कर हवा को कैद करके देख सकते हैं या फिर कार में हैं तो दोनों हाथ ना फैलायें कोई फ़ायदा नहीं है क्योंकि हाथ दूसरी खिड़की से निकालने के लिए कानून जितने लंबे हाथ चाहिए और ध्यान रहे कि रुकी हुई कार में ये स्टंट ना करें क्या पता कोई आपके हाथ पर सिक्का रख जाए, अगर बस में हैं तो भी एक ही हाथ बाहर निकालें और ध्यान रहे कि बगल वाली खिड़की पर कोई उल्टी तो नहीं कर रहा है। इतनी सावधानी और Terms and conditions apply करने के बाद मुख्य बात पर आते हैं कि जब आप हथेली थोड़ा सिकोड़ कर रखते हैं तो लगता है जैसे रिक्त स्थान में हवा भर गई है, वाहन जितना तेज होगा हवा उतने ही वेग से आयेगी और बदलती जायेगी और अंत में जब यात्रा समाप्त हो जाये तो आप मुठ्ठी बन्द कर लेना तब आपको पता चलेगा कि मुठ्ठी में कोई हवा नहीं है, आपके दोनों हाथ बिल्कुल खाली हैं। ठीक इसी प्रकार हम लोग भी दोनों हाथ खोलकर जिंदगी की रफ्तार को बढ़ाते जाते हैं कि ज्यादा