कभी कभी घिर जाते हैं हम गहरे किसी दलदल में, फँस जाते हैं जिंदगी के चक्के किसी कीचड़ में, तब जिंदगी चलती भी है तो रेंगकर, लगता है सब रुका हुआ सा। बेहोशी में लगता है सब सही है, पता नहीं रहता अपने होने का भी, तब बेहोशी हमें पता नहीं लगने देती कि होश पूरा जा चुका है। ठीक भी है बेहोशी ना हो तो पता कैसे लगाइएगा की होश में रहना क्या होता है, विपरीत से ही दूसरे विपरीत को प्रकाश मिलता है अन्यथा महत्व क्या रह जायेगा किसी भी बात का फिर तो सही भी ना रहेगा गलत भी ना रहेगा सब शून्य रहेगा। बेहोशी भी रूकती नहीं हमेशा के लिए कभी आते हैं ऐसे क्षण भी जब एक दम से यूटूर्न मार जाती है आपकी नियति, आपको लगता है जैसे आँधी आयी कोई और उसने सब साफ कर दिया, बेहोशी गिर गयी धड़ाम से जमीन पर, आपसे अलग होकर। अभी आप देख पा रहे हो बाहर की चीजें साफ साफ, आपको दिख रहा है कि बेहोशी में जो कुछ चल रहा था वो मेरे भीतर कभी नही चला। जो भी था सब बाहर की बात थी, मैं तो बस भूल गया था खुद को बेहोशी में, ध्यान ना रहा था कि सब जो चल रहा था कोई स्वप्न था। खैर जो भी था सही था, जैसी प्रभु की इच्छा, जब मन किया ध्यान में डुबो दिया जब मन कि
दृश्य:
सरकारी रोडवेज बस अड्डा, जहाँ आपको ढ़ेर सारी बस के आने जाने के बीच दफ़्तर ढूढ़ने के लिये आँखों में उतनी ही फुर्ती चाहिए, जितना कि किसी सिक्योरिटी पर्सन को चलती हुई गाड़ी का नंबर पढ़ने में लग जाती है। ख़ैर दफ़्तर की ओर चलते हैं, जिसे बाहर से देखने पर प्रतीत होगा कि जैसे कोई दरवाजा ही नहीं है मगर नज़दीक जाने पर आपको वहाँ इमरजेंसी डोर का उचित उपयोग दिखेगा। बस फर्क इतना है इस दरवाजे का प्रयोग बाहर भागने के लिए नहीं अंदर आने के लिए किया जा रहा है। उस कोठरी नुमा काउंटर को बनाते वक्त वातारवरण का विशेष ध्यान रखा गया है, जैसे कि सर्दी के बुखार से पीड़ित व्यक्ति को उचित तापमान मिल पायेगा इसलिए पंखा , रोशनदान और टीन की चादर का प्रयोग किया गया है। कोई अनावश्यक वहाँ खड़ा होकर समय व्यतीत ना करे, उसके लिए विधुत बल्ब और ट्यूब लाइट जैसी चीजों को निषेध किया गया है। खैर हम कहाँ अभी भौतिक सुंदरता की बातें कर रहे हैं! बात करते हैं वहाँ के कर्मचारियों की, एक महिला जिसके विषय में अगर काल्पनिक कहानी बताऊँ तो सरकारी विभाग के लोगों ने उसके भोलेपन का फायदा उठाकर जबरन फॉर्म भरवा लिया था और तमंचे के बल पर उसको नियुक्ति पत्र देने का कुकृत्य किया था मगर वो अबला आज भी अपने निजी हितों का परित्याग करते हुए, अपने फ़ोन पर घरेलू व्यवहार और पारिवारिक मामलों का हल वहीं ऑफिस से निपटा रही है। वह बिना रुके अपने सहकर्मियों को व्यावहारिक , उचित अनुचित जैसे गंभीर विषयों पर चर्चा कर रही है। खैर अब बारी आती है ग्राहकों की, जो पंक्ति जैसी किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते हैं फिर भी कुछ उद्दंडी लोग जिन्हें पंक्ति में खड़े होने की गलत आदत लगी है। वो अपनी श्रद्धा के अनुसार सरकार, जमाना, अनुशासन और इंसानियत जैसे गंभीर मुद्दे मन ही मन बुदबुदा सकते हैं।
इन सभी प्राकृतिक, भौतिक व्यवस्था और स्थिति के बीच कुछ निर्जीव चीजें हैं, जो उस दृश्य की सौंदर्यता में वृद्धि कर रही हैं। वो चीजें हैं, एक कंप्यूटर जिसको पहले कंप्यूटर की खोज के बाद नीलामी में खरीद लिया गया था, एक प्रिंटर- जिसका प्रयोग कागज पर छपाई करने से ज्यादा " प्रिंटर ख़राब है इसलिए प्रिंट नहीं निकलेगा" जैसा सरल और स्पष्ट वाक्य बोलने के लिए किया जाता है। और अंत में एक कुर्सी, जिस पर कंप्यूटर ऑपरेटर नाम की चीज बैठी है, उसकी अवस्था को लेकर लोगों की राय विवादस्पद रही है, लोगों की माने तो वो निर्जीव है मगर स्वयं उसकी राय माने को वो सजीवता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
ख़ैर मैं किसी भी व्यक्ति को लेकर भ्रांति जैसा दृष्टिकोण नहीं रखता। मैंने खुद देखा कि वो व्यक्ति लगातार लोगों को बता रहा था कि बस सिस्टम शुरू हो जाये फिर चन्द मिनटों में सबका बस कार्ड रिचार्ज हो जाएगा, हाँ मैं यह मानता हूँ कि उस भोले व्यक्ति के साथ सरकारी विभाग ने धोखा किया हुआ था। दरअसल हुआ यह कि उसको समय देखने के लिए घड़ी नेस्ले कंपनी ने दी थी। इसलिए वो ठीक वैसे ही लोगों को दिलासा देता है, जैसे नेस्ले वाले दो मिनट में मैगी बनाने का दावा करते हैं। मुझसे सबसे ज्यादा लग्न दिखी उसकी उंगलियों में, उसने लॉगिन करने के लिए पूरे 20-25 मिनट कीबोर्ड पर ऐसे प्रहार किए जैसे मानो अभिमन्यु महाभारत में चक्रव्यूह भेदने की चेष्टा कर रहा हो या फिर कोई महान हैकर नासा की सिक्योरिटी ब्रीच करने वाला हो। धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ना होने के कारण मैंने यह मान लिया कि वो पक्का बिटकॉइन की माइनिंग करने के बाद ही कार्ड में रुपये ट्रांसफर करेगा।
इतनी सारी बकवास पढ़ने के लिए आभार आपका।
#भारत_दर्शन
सरकारी रोडवेज बस अड्डा, जहाँ आपको ढ़ेर सारी बस के आने जाने के बीच दफ़्तर ढूढ़ने के लिये आँखों में उतनी ही फुर्ती चाहिए, जितना कि किसी सिक्योरिटी पर्सन को चलती हुई गाड़ी का नंबर पढ़ने में लग जाती है। ख़ैर दफ़्तर की ओर चलते हैं, जिसे बाहर से देखने पर प्रतीत होगा कि जैसे कोई दरवाजा ही नहीं है मगर नज़दीक जाने पर आपको वहाँ इमरजेंसी डोर का उचित उपयोग दिखेगा। बस फर्क इतना है इस दरवाजे का प्रयोग बाहर भागने के लिए नहीं अंदर आने के लिए किया जा रहा है। उस कोठरी नुमा काउंटर को बनाते वक्त वातारवरण का विशेष ध्यान रखा गया है, जैसे कि सर्दी के बुखार से पीड़ित व्यक्ति को उचित तापमान मिल पायेगा इसलिए पंखा , रोशनदान और टीन की चादर का प्रयोग किया गया है। कोई अनावश्यक वहाँ खड़ा होकर समय व्यतीत ना करे, उसके लिए विधुत बल्ब और ट्यूब लाइट जैसी चीजों को निषेध किया गया है। खैर हम कहाँ अभी भौतिक सुंदरता की बातें कर रहे हैं! बात करते हैं वहाँ के कर्मचारियों की, एक महिला जिसके विषय में अगर काल्पनिक कहानी बताऊँ तो सरकारी विभाग के लोगों ने उसके भोलेपन का फायदा उठाकर जबरन फॉर्म भरवा लिया था और तमंचे के बल पर उसको नियुक्ति पत्र देने का कुकृत्य किया था मगर वो अबला आज भी अपने निजी हितों का परित्याग करते हुए, अपने फ़ोन पर घरेलू व्यवहार और पारिवारिक मामलों का हल वहीं ऑफिस से निपटा रही है। वह बिना रुके अपने सहकर्मियों को व्यावहारिक , उचित अनुचित जैसे गंभीर विषयों पर चर्चा कर रही है। खैर अब बारी आती है ग्राहकों की, जो पंक्ति जैसी किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते हैं फिर भी कुछ उद्दंडी लोग जिन्हें पंक्ति में खड़े होने की गलत आदत लगी है। वो अपनी श्रद्धा के अनुसार सरकार, जमाना, अनुशासन और इंसानियत जैसे गंभीर मुद्दे मन ही मन बुदबुदा सकते हैं।
इन सभी प्राकृतिक, भौतिक व्यवस्था और स्थिति के बीच कुछ निर्जीव चीजें हैं, जो उस दृश्य की सौंदर्यता में वृद्धि कर रही हैं। वो चीजें हैं, एक कंप्यूटर जिसको पहले कंप्यूटर की खोज के बाद नीलामी में खरीद लिया गया था, एक प्रिंटर- जिसका प्रयोग कागज पर छपाई करने से ज्यादा " प्रिंटर ख़राब है इसलिए प्रिंट नहीं निकलेगा" जैसा सरल और स्पष्ट वाक्य बोलने के लिए किया जाता है। और अंत में एक कुर्सी, जिस पर कंप्यूटर ऑपरेटर नाम की चीज बैठी है, उसकी अवस्था को लेकर लोगों की राय विवादस्पद रही है, लोगों की माने तो वो निर्जीव है मगर स्वयं उसकी राय माने को वो सजीवता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
ख़ैर मैं किसी भी व्यक्ति को लेकर भ्रांति जैसा दृष्टिकोण नहीं रखता। मैंने खुद देखा कि वो व्यक्ति लगातार लोगों को बता रहा था कि बस सिस्टम शुरू हो जाये फिर चन्द मिनटों में सबका बस कार्ड रिचार्ज हो जाएगा, हाँ मैं यह मानता हूँ कि उस भोले व्यक्ति के साथ सरकारी विभाग ने धोखा किया हुआ था। दरअसल हुआ यह कि उसको समय देखने के लिए घड़ी नेस्ले कंपनी ने दी थी। इसलिए वो ठीक वैसे ही लोगों को दिलासा देता है, जैसे नेस्ले वाले दो मिनट में मैगी बनाने का दावा करते हैं। मुझसे सबसे ज्यादा लग्न दिखी उसकी उंगलियों में, उसने लॉगिन करने के लिए पूरे 20-25 मिनट कीबोर्ड पर ऐसे प्रहार किए जैसे मानो अभिमन्यु महाभारत में चक्रव्यूह भेदने की चेष्टा कर रहा हो या फिर कोई महान हैकर नासा की सिक्योरिटी ब्रीच करने वाला हो। धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ना होने के कारण मैंने यह मान लिया कि वो पक्का बिटकॉइन की माइनिंग करने के बाद ही कार्ड में रुपये ट्रांसफर करेगा।
इतनी सारी बकवास पढ़ने के लिए आभार आपका।
Comments
Post a Comment
Please express your views Here!