प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
कोशिशों की नीलामी सरेआम हो गयी है,
ज़िन्दगी अब बहुत ही आम हो गयी है!
बुनने उधेड़ने को कुछ बचा नहीं है,
दिन की मंज़िल अब "आराम" हो गयी है!
दिन ढलने लगा है, सूरज छिप सा रहा है,
कुछ पल तुम ठहर जाओ कब तक बढ़ोगे,
जिंदगी है संग्राम आखिर कब तक लड़ोगे!
पंछियों ने भी थककर हथियार डाल दिये हैं,
आज के सारे अरमान अब कल तक टाल दिए हैं।
कल किसने देखा? कौन आयेगा या कौन जायेगा,
आज सोचा हुआ "कल" आयेगा या नहीं आयेगा।
मगर वक़्त का पहिया तो घूमता ही जायेगा,
आने वाले कल भी एक नया "आज" आयेगा|
इस चक्कर में वक़्त की सुई बदनाम हो गयी है,
अब थम जा कुछ देर, शाम हो गयी है|
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