प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
वक़्त चल रहा था, लोग भी ठहरे नहीं थे,
खुली रहती थीं किबाड़, तब उतने पहरे नहीं थे।
खुला आसमान, ये चाँद और सितारे
बग़ीचे में मचलते ये रंगीन फ़व्वारे।
दरख़्तों से निकली हवा की फ़ुहारें,
कहीं बच्चों के हाथों में रंगीन गुब्बारे।
पंछियों के गुटों का घर वापस आना,
माँ को देखकर बच्चों का यूँ खिल जाना।
काम से थके हारे लोगों घर वापस आना,
फिर चौपालों पर बैठकर ठहठहा लगाना।
गली नुक्कड़ पर बच्चों का हुजूम लग जाना,
फ़िर खेल-करतब करते-करते उनका थक जाना।
घर में घुसते ही भूख का ज़ोरों से दौड़ जाना,
फिर चूल्हे की रोटी और माँ के हाथ का खाना।
शाम अब भी वही है, लोग अब भी वहीं हैं,
अब बातें नई हैं और बदल गया है जमाना।
मगर बात जब भी सुकून की होती है,
तब- तब याद आता है वो गुजरा जमाना!
याद आता है वो गुजरा जमाना।
#ShubhankarThinks
Bhut khubsurti se yaad dilaya apne wo gujra jamana
ReplyDeleteBhut khubsurti se yaad dilaya apne wo gujra jamana
ReplyDeleteBhut khubsurti se yaad dilaya apne wo gujra jamana
ReplyDeleteBhut khubsurti se yaad dilaya apne wo gujra jamana
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