कभी कभी घिर जाते हैं हम गहरे किसी दलदल में, फँस जाते हैं जिंदगी के चक्के किसी कीचड़ में, तब जिंदगी चलती भी है तो रेंगकर, लगता है सब रुका हुआ सा। बेहोशी में लगता है सब सही है, पता नहीं रहता अपने होने का भी, तब बेहोशी हमें पता नहीं लगने देती कि होश पूरा जा चुका है। ठीक भी है बेहोशी ना हो तो पता कैसे लगाइएगा की होश में रहना क्या होता है, विपरीत से ही दूसरे विपरीत को प्रकाश मिलता है अन्यथा महत्व क्या रह जायेगा किसी भी बात का फिर तो सही भी ना रहेगा गलत भी ना रहेगा सब शून्य रहेगा। बेहोशी भी रूकती नहीं हमेशा के लिए कभी आते हैं ऐसे क्षण भी जब एक दम से यूटूर्न मार जाती है आपकी नियति, आपको लगता है जैसे आँधी आयी कोई और उसने सब साफ कर दिया, बेहोशी गिर गयी धड़ाम से जमीन पर, आपसे अलग होकर। अभी आप देख पा रहे हो बाहर की चीजें साफ साफ, आपको दिख रहा है कि बेहोशी में जो कुछ चल रहा था वो मेरे भीतर कभी नही चला। जो भी था सब बाहर की बात थी, मैं तो बस भूल गया था खुद को बेहोशी में, ध्यान ना रहा था कि सब जो चल रहा था कोई स्वप्न था। खैर जो भी था सही था, जैसी प्रभु की इच्छा, जब मन किया ध्यान में डुबो दिया जब मन कि
नमस्कार दोस्तों आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें| आजादी के पर्व के इस पावन मौके पर मानसिक गुलामी से आजादी के विषय में कुछ विचार आप सभी के समक्ष रखने जा रहा हूँ| आशा है आप समय देकर पढ़ेंगे| प्रस्तावना - 15 अगस्त 1947 यह तिथि सभी को अच्छे से याद है क्योंकि इस दिन लगभग 800 वर्षों की गुलामी झेल रहे भारत को पूर्ण रूप से आजादी मिली थी| उस दिन से आज तक हम प्रतिवर्ष यह उत्सव के रूप में मनाते हैं और वीर अमर शहीदों को नमन करते हैं| इन सबके बीच भारत ने एक लम्बा सफर तय किया, जिसमें हमने बहुत सारे क्षेत्रों में तरक्की हांसिल की मगर कुछ बातों में हम पहले से भी ज्यादा पिछड़ गए| वह हैं भाईचारा, रिश्ते नाते निभाना या फिर इंसानियत के मायने हों, इन सब में हम कहीं पीछे खड़े हैं| खैर आज इस विषय पर चर्चा नहीं होगी| आज हम चर्चा करेंगे वर्तमान समय में आजादी के मायनों की और किस तरह की आजादी से हम दूर हो चुके हैं| Pic Credit मेरे अनुसार आजादी की परिभाषा- वर्तमान समय की दृष्टि से आजादी का तात्पर्य हुकूमत की गुलामी से मुक्ति पाना नहीं है| भारतीय