प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
नमस्कार दोस्तों आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें| आजादी के पर्व के इस पावन मौके पर मानसिक गुलामी से आजादी के विषय में कुछ विचार आप सभी के समक्ष रखने जा रहा हूँ| आशा है आप समय देकर पढ़ेंगे| प्रस्तावना - 15 अगस्त 1947 यह तिथि सभी को अच्छे से याद है क्योंकि इस दिन लगभग 800 वर्षों की गुलामी झेल रहे भारत को पूर्ण रूप से आजादी मिली थी| उस दिन से आज तक हम प्रतिवर्ष यह उत्सव के रूप में मनाते हैं और वीर अमर शहीदों को नमन करते हैं| इन सबके बीच भारत ने एक लम्बा सफर तय किया, जिसमें हमने बहुत सारे क्षेत्रों में तरक्की हांसिल की मगर कुछ बातों में हम पहले से भी ज्यादा पिछड़ गए| वह हैं भाईचारा, रिश्ते नाते निभाना या फिर इंसानियत के मायने हों, इन सब में हम कहीं पीछे खड़े हैं| खैर आज इस विषय पर चर्चा नहीं होगी| आज हम चर्चा करेंगे वर्तमान समय में आजादी के मायनों की और किस तरह की आजादी से हम दूर हो चुके हैं| Pic Credit मेरे अनुसार आजादी की परिभाषा- वर्तमान समय की दृष्टि से आजादी का तात्पर्य हुकूमत की गुलामी से मुक्ति पाना नहीं है| भारतीय