प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
कैलाश के उच्चतम शिखर पर,
अग्नि में तप वो कर रहा है,
कौन है वो अद्भुत-अदृश्य,
दिन-रात जिसे वो जप रहा है।
विकराल सा वो विष पिये,
शांत खुद को रख रहा है,
तीव्र जटिल और जग विनाशी,
काल मुख में भर रहा है।
महादेव ही है सबका संरक्षक,
सिद्ध इसे वो कर रहा है,
अस्त-व्यस्त केश, त्रिनेत्र धारी,
भीषण आपदा को वश में कर रहा है।
#ShubhankarThinks
अग्नि में तप वो कर रहा है,
कौन है वो अद्भुत-अदृश्य,
दिन-रात जिसे वो जप रहा है।
विकराल सा वो विष पिये,
शांत खुद को रख रहा है,
तीव्र जटिल और जग विनाशी,
काल मुख में भर रहा है।
महादेव ही है सबका संरक्षक,
सिद्ध इसे वो कर रहा है,
अस्त-व्यस्त केश, त्रिनेत्र धारी,
भीषण आपदा को वश में कर रहा है।
#ShubhankarThinks
Comments
Post a Comment
Please express your views Here!