प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
दरअसल मेरे भी मन में कई बार आता है की ये छोटे बच्चे काम क्यों करते हैं!आखिर सरकार इन्हें पढाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत क्या कुछ नहीं करती है। ज्यादा इमोशनल मोड़ देना मुझे नहीं आता है मगर मैंने भुट्टे वाले 10 साल के लड़के से हँसते हुए ही पूछा "तू पढ़ने नहीं जाता क्या?" वो चहककर बोला गर्मी की छुट्टी चल रही हैं। मैंने पूछा अगर स्कूल खुल गए तब क्या करेगा? उसने बड़े कॉन्फिडेंस के साथ बोला कि ये सब बन्द कर दूँगा। अब मैं खुश नहीं हुआ यह सुनकर क्योंकि एक मात्र शिक्षा सब चीजों का समाधान नहीं हो सकती, हो सकता है उसके घर की परिस्थिति इतनी खराब हो कि वो ठेला 10 साल के बच्चे से लगवा रहे हैं। ऐसे में वो कुछ कमा कर दे रहा है तो मुझे इसमें कोई बुराई नहीं लगती अगर कोई बच्चा ,बड़ा या बूढ़ा काम करके कुछ भी कमा रहा है। जाते जाते मुझे सलाह तो नहीं देनी थी मगर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उससे कहा कि तेरी छुट्टी कितने बजे होती है तो वो बोला "एक बजे " मैंने कहा तब तो तू 4,5 बजे से लेकर रात तक यहाँ ठेला लगा लेना। उसके चेहरे पर हँसी आ गयी बोला "हां ये सही रहेगा"|