बंद आँखों से "मैं" का जब पर्दा हटाया, कहने और करने में बड़ा फ़र्क पाया। सब समझने के वहम में जीता रहा "मैं", सच में समझ तो कुछ भी नहीं आया। रहा व्यस्त इतना सच्चाई की लाश ढोने में, कि जिंदा झूठ अपना समझ नहीं आया। कारण ढूँढता रहा हर सुख दुख में, अकारण मुझे कुछ नज़र नहीं आया। ढूँढता रहा सब जगह कुछ पाने की ललक से, जो मिला ही हुआ है वो ध्यान में ना आया। फँसता गया सब झंझटों में आसानी से, सरलता को कभी अपनाना नहीं चाहा। झूठ ही झूठ में उलझा हुआ पाया, आंखों से जब जब पर्दा हटाया। ~ #ShubhankarThinks
दरअसल मेरे भी मन में कई बार आता है की ये छोटे बच्चे काम क्यों करते हैं!आखिर सरकार इन्हें पढाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत क्या कुछ नहीं करती है। ज्यादा इमोशनल मोड़ देना मुझे नहीं आता है मगर मैंने भुट्टे वाले 10 साल के लड़के से हँसते हुए ही पूछा "तू पढ़ने नहीं जाता क्या?" वो चहककर बोला गर्मी की छुट्टी चल रही हैं। मैंने पूछा अगर स्कूल खुल गए तब क्या करेगा? उसने बड़े कॉन्फिडेंस के साथ बोला कि ये सब बन्द कर दूँगा। अब मैं खुश नहीं हुआ यह सुनकर क्योंकि एक मात्र शिक्षा सब चीजों का समाधान नहीं हो सकती, हो सकता है उसके घर की परिस्थिति इतनी खराब हो कि वो ठेला 10 साल के बच्चे से लगवा रहे हैं। ऐसे में वो कुछ कमा कर दे रहा है तो मुझे इसमें कोई बुराई नहीं लगती अगर कोई बच्चा ,बड़ा या बूढ़ा काम करके कुछ भी कमा रहा है। जाते जाते मुझे सलाह तो नहीं देनी थी मगर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उससे कहा कि तेरी छुट्टी कितने बजे होती है तो वो बोला "एक बजे " मैंने कहा तब तो तू 4,5 बजे से लेकर रात तक यहाँ ठेला लगा लेना। उसके चेहरे पर हँसी आ गयी बोला "हां ये सही रहेगा"|