कभी कभी घिर जाते हैं हम गहरे किसी दलदल में, फँस जाते हैं जिंदगी के चक्के किसी कीचड़ में, तब जिंदगी चलती भी है तो रेंगकर, लगता है सब रुका हुआ सा। बेहोशी में लगता है सब सही है, पता नहीं रहता अपने होने का भी, तब बेहोशी हमें पता नहीं लगने देती कि होश पूरा जा चुका है। ठीक भी है बेहोशी ना हो तो पता कैसे लगाइएगा की होश में रहना क्या होता है, विपरीत से ही दूसरे विपरीत को प्रकाश मिलता है अन्यथा महत्व क्या रह जायेगा किसी भी बात का फिर तो सही भी ना रहेगा गलत भी ना रहेगा सब शून्य रहेगा। बेहोशी भी रूकती नहीं हमेशा के लिए कभी आते हैं ऐसे क्षण भी जब एक दम से यूटूर्न मार जाती है आपकी नियति, आपको लगता है जैसे आँधी आयी कोई और उसने सब साफ कर दिया, बेहोशी गिर गयी धड़ाम से जमीन पर, आपसे अलग होकर। अभी आप देख पा रहे हो बाहर की चीजें साफ साफ, आपको दिख रहा है कि बेहोशी में जो कुछ चल रहा था वो मेरे भीतर कभी नही चला। जो भी था सब बाहर की बात थी, मैं तो बस भूल गया था खुद को बेहोशी में, ध्यान ना रहा था कि सब जो चल रहा था कोई स्वप्न था। खैर जो भी था सही था, जैसी प्रभु की इच्छा, जब मन किया ध्यान में डुबो दिया जब मन कि
जैसा आपने पिछले पत्र में पढा था कि प्रेमिका रूठकर व्यंगपूर्ण पत्र लिखती है और जब यह पत्र उसके प्रेमी को मिलता है तो वो अपनी प्रेमिका को मनाने और भरोसा दिलाने के मकसद से पत्र का प्रेमपूर्ण जवाब लिखता है मगर मस्तिष्क में चलते गणित के कारण कैसे उसके विचार पत्र के माध्यम से निकलते हैं पढ़िए - IMG source - http://i.huffpost.com/gen/1178281/images/o-LETTER-TO-EX-facebook.jpg प्रेमी अपनी प्रेमिका से - प्रेमिका मेरी ओ प्राण प्यारी! तुम्हे एक पल हृदय से ना दूर किया है , तुम्हारा और मेरा संग तो रसायन विज्ञान में जल बनाने की प्रक्रिया है ! जैसे हाइड्रोजन नहीं छोड़ सकती ऑक्सीजन का संग, भगवान ने ऐसा रचा है ,हमारा प्रेम प्रसंग| दुविधा सुनो मेरा क्या हाल हुआ है, पूरा समय गति के समीकरणों में उलझ गया है ! कभी बल लगाकर पढ़ाई की दिशा में बढ़ता हूँ, कभी तुम्हारे प्रेम की क्रिया प्रतिक्रिया से पीछे तुम्हारी दिशा में खींचता हूँ| मेरे विचारों का पाई ग्राफ उलझ जाता है , ये Tan@ के मान की तरह कभी ऋणात्मक अनंत तो कभी धनात्मक अनंत तक जाता है ! मेरे ग्राफ रूपी जीवन में सारे मान अस्थिर हैं , मगर तुम्हर स्थान म
Khubsurat quote.....
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