कभी कभी घिर जाते हैं हम गहरे किसी दलदल में, फँस जाते हैं जिंदगी के चक्के किसी कीचड़ में, तब जिंदगी चलती भी है तो रेंगकर, लगता है सब रुका हुआ सा। बेहोशी में लगता है सब सही है, पता नहीं रहता अपने होने का भी, तब बेहोशी हमें पता नहीं लगने देती कि होश पूरा जा चुका है। ठीक भी है बेहोशी ना हो तो पता कैसे लगाइएगा की होश में रहना क्या होता है, विपरीत से ही दूसरे विपरीत को प्रकाश मिलता है अन्यथा महत्व क्या रह जायेगा किसी भी बात का फिर तो सही भी ना रहेगा गलत भी ना रहेगा सब शून्य रहेगा। बेहोशी भी रूकती नहीं हमेशा के लिए कभी आते हैं ऐसे क्षण भी जब एक दम से यूटूर्न मार जाती है आपकी नियति, आपको लगता है जैसे आँधी आयी कोई और उसने सब साफ कर दिया, बेहोशी गिर गयी धड़ाम से जमीन पर, आपसे अलग होकर। अभी आप देख पा रहे हो बाहर की चीजें साफ साफ, आपको दिख रहा है कि बेहोशी में जो कुछ चल रहा था वो मेरे भीतर कभी नही चला। जो भी था सब बाहर की बात थी, मैं तो बस भूल गया था खुद को बेहोशी में, ध्यान ना रहा था कि सब जो चल रहा था कोई स्वप्न था। खैर जो भी था सही था, जैसी प्रभु की इच्छा, जब मन किया ध्यान में डुबो दिया जब मन कि
जंगल जंगल भटका करूँ , मेरा कोई भव्य निवास नहीं! भूत प्रेत के बीच रहा करूँ, यहाँ इंसानों का वास नहीं| तू महलों की राजकुमारी, तुझे कठिनाई का आभास नहीं| तूने शाही महल में आराम किया है, तुझे पहाड़ों के संकट ज्ञात नहीं| तू मखमल बिस्तर पर सोने वाली, तुझे जमीन पर सोने का अभ्यास नहीं| देख पार्वती तू बात माना कर, मेरे साथ विवाह की हठ ना कर| तू सुख सुविधा की है अधिकारी, मेरी हालत देख सब बोलें भिखारी! तेरी जग में हँसाई हो जाएगी, मेरे साथ में क्या सुख पायेगी| style="display:block; text-align:center;" data-ad-layout="in-article" data-ad-format="fluid" data-ad-client="ca-pub-5231674881305671" data-ad-slot="2629391441"> मरघट में रहना खेल नहीं, दौलत में हमारा मेल नहीं| तुम्हारे घर माया की कमी नहीं, एक कौड़ी नहीं मेरे खजाने में| बात मेरी तो गौर से सुन ले, दृश्य भविष्य का एक बार तो बुन ले| तेरी सखी सहेली महलों में रहेंगी, तेरी दशा देख सब ताने देंगी| उस दिन तब तू पछताएगी, भूतों के बीच तू ना रह पायेगी| प्रेम तेरा