प्यारे पापा ,
मैं आपकी लाड़ली बेटी,
जिसकी फ़िज़ूल की बातें आप बड़े चाव से सुना करते थे,
मगर अब तो काम की बातें सुनने के लिए भी
आपके कान इजाजत नहीं देते शायद!
खैर ,मैं यह पत्र तंज कसने के लिए नहीं लिख रही,
किसी को नीचा दिखाने के लिए नहींं लिख रही|
आपको याद होगा ना जब आपने ,
मेरा रिश्ता तय कर दिया था मेरा किसी के साथ,
उस उम्र में जब स्कूल का रास्ता तय कर पाना भी मेरे लिए मुश्किल था|
10 साल की थी तब मैं और
स्कूल पूरे 5 किलोमीटर दूर था|
मैंने तब भी कुछ कहा नहीं था,
क्योंकि मुझे भी नहीं पता था यह सब क्या है?
खैर उस बात को अब 7-8 साल हो चुके|
समय बदला और समय के साथ मुझे एक बात समझ में आई है,
वो लड़का मेरे लिए सही नहीं है,
यह रट मैंने बहुत दिनों से लगाई है|
शायद इसी वजह से आप अब सुनते नहीं मुझे,
मगर आज यह बात तो मैं आपको सुनाकर रहूँगी|
वो आपकी मौजूदगी तो कभी गैरमौजूदगी में घर आ जाता है,
मम्मी और आप दोनों को मीठी बातों से रिझाता है!
मगर अकेले में मुझे जब कभी ले जाता है,
तब उसका एक अलग रूप निकल आता है|
वो कभी मेरी कमर पर हाथ फेरता है,
कभी जिस्म को सहलाता है!
मना करूँ अगर तो आँखें मुझे वो दिखलाता है,
शिकायत करूँ अगर तो आपका डर मुझे बतलाता है|
आपको फिक्र है समाज की लोक लाज की,
यही कहते हैं ना आप!
आप हमेशा कहते हो कि दुपट्टा डालके चलो,
जिस्म के सभी हिस्सों ढंककर जाओ बाहर!
तब आपकी लाज लज्जा कहाँ चली जाती है,
जब आपके घर मे ही मेरी अस्मत रौंदी जाती है|
आप बताओ इसमें मेरा क्या क़सूर है?
आपको अपनी बेटी से ज्यादा समाज की फिक्र है,
बतलाइये क्या आपकी इज्जत में मेरा कोई जिक्र है?
मगर मैं अब 10 साल की नहीं हूँ,
अब और सहने वाली नहीं हूँ|
बहुत हुआ आपका गुस्सा और
माँ का यह कहना कि उनका दिल टूट जायेगा ,
अगर मैंने पुलिस से शिकायत की तो अनर्थ हो जायेगा|
हो जाने दो इस बार जग हँसाई ,
देते रहना कितना भी इज्जत की दुहाई!
माना मुझे जन्म आपने दिया है,
मेरा लालन पालन आपने किया है|
मगर इस जिस्म पर कुछ हक मेरा भी है,
भविष्य के निर्णय लेने का हक मेरा भी है|
चाहे तुम मेरी आत्मा भी तुम लेना नोच,
मगर वो दुष्ट नहीं देगा अब एक भी खरोंच!
उसका अब मैं वो हश्र कराऊंगी,
खाल उसकी थाने में उधेड़वाऊंगी|
बेशक आप बेदखल कर देना अब घर से,
लौट कर भीख मांगने वापस नहीं आऊंगी|
अब उड़ना है मुझे स्वछंद गगन में,
ख्वाबों को जियूँगी हो मस्त मगन मैं!
#ShubhankarThinks
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Behad satik sabdo ke prayog se aapne ek bebas ladki ke dard ko kalam se juban di hai
ReplyDeleteHattsoff
Thank you so much harshita
ReplyDeleteYour words mean a lot to me
Apne kalam men aag bharkar aise likha jaise aag ab bhi mere dil men padhkar jal rahi hai.....sach ek ladki par kaisa bitta hoga jab koyee bahrupiya apna rang badlta hoga .....aur jab uske khelne ki umar thi us samay usse rishta juda ho......sach beti baap maa ko nahi bolegi to kisko.....aur kaisa wah baap hota hai jise apni beti kaa dard dikhaayee nahi deta sunna to dur ki baat hai.....bahut sarahniye post.
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