कभी कभी घिर जाते हैं हम गहरे किसी दलदल में, फँस जाते हैं जिंदगी के चक्के किसी कीचड़ में, तब जिंदगी चलती भी है तो रेंगकर, लगता है सब रुका हुआ सा। बेहोशी में लगता है सब सही है, पता नहीं रहता अपने होने का भी, तब बेहोशी हमें पता नहीं लगने देती कि होश पूरा जा चुका है। ठीक भी है बेहोशी ना हो तो पता कैसे लगाइएगा की होश में रहना क्या होता है, विपरीत से ही दूसरे विपरीत को प्रकाश मिलता है अन्यथा महत्व क्या रह जायेगा किसी भी बात का फिर तो सही भी ना रहेगा गलत भी ना रहेगा सब शून्य रहेगा। बेहोशी भी रूकती नहीं हमेशा के लिए कभी आते हैं ऐसे क्षण भी जब एक दम से यूटूर्न मार जाती है आपकी नियति, आपको लगता है जैसे आँधी आयी कोई और उसने सब साफ कर दिया, बेहोशी गिर गयी धड़ाम से जमीन पर, आपसे अलग होकर। अभी आप देख पा रहे हो बाहर की चीजें साफ साफ, आपको दिख रहा है कि बेहोशी में जो कुछ चल रहा था वो मेरे भीतर कभी नही चला। जो भी था सब बाहर की बात थी, मैं तो बस भूल गया था खुद को बेहोशी में, ध्यान ना रहा था कि सब जो चल रहा था कोई स्वप्न था। खैर जो भी था सही था, जैसी प्रभु की इच्छा, जब मन किया ध्यान में डुबो दिया जब मन कि
आज वातावरण में मिठास सी है,
शीत पवन में भी तेरी सुगंध घुली है!
मेरे प्रेम की लहरें और भी तीव्र हो उठी हैं,
हिमपात की कठिन परिस्थिति में,
प्रत्येक शीत अनुभव मुझे,
तुम्हारे श्वांस से निकले उष्ण वायु के
सुखद अनुभव की याद दिलाता है|
तुम पता नहीं कहाँ हो?
लगातार ये शीत वायु मुझे स्पर्श करके,
तुम्हारे प्रेम की महत्ता का ज्ञान करा रही है|

Pic Credit- Google
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शीत पवन में भी तेरी सुगंध घुली है!
मेरे प्रेम की लहरें और भी तीव्र हो उठी हैं,
हिमपात की कठिन परिस्थिति में,
प्रत्येक शीत अनुभव मुझे,
तुम्हारे श्वांस से निकले उष्ण वायु के
सुखद अनुभव की याद दिलाता है|
तुम पता नहीं कहाँ हो?
लगातार ये शीत वायु मुझे स्पर्श करके,
तुम्हारे प्रेम की महत्ता का ज्ञान करा रही है|
Pic Credit- Google
नमस्कार कैसे हैं आप सभी लोग, यह कविता मूल रूप से Bansi Joshi ने गुजराती में लिखी है, उसके बाद उनके बताये आंकड़ों के आधार पर मैंने इस कविता को हिंदी में पिरोया है| आप बंसी जोशी जी को यहां फॉलो कर सकते हैं|You can follow her on YourQuote too .
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khubsurat kabita.
ReplyDeleteप्रेम और हिमपात बहुत ही सुंदर शीर्षक है
ReplyDeleteऔर कविता हिमपात के बाद खिली हुई धूप सी मोहक है...
aha itni sundar pratikriya ke baad to aur bhi likhne ka mn krega vaise prem mera pasandida vishay nhi mgr kbhi kbhi likhta hu auron ko dekhkr
ReplyDeletedhanyvad sir
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