प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
यह कविता सत्य घटना पर पूर्णतयः आधारित है, जिसमें मैंने ऐसे गंभीर मुद्दे के साथ न्याय करने का एक छोटा सा प्रयास किया है, इसीलिए आपसे निवेदन है की जरूर पढ़ें | प्यारे पापा , मैं आपकी लाड़ली बेटी, जिसकी फ़िज़ूल की बातें आप बड़े चाव से सुना करते थे, मगर अब तो काम की बातें सुनने के लिए भी आपके कान इजाजत नहीं देते शायद! खैर ,मैं यह पत्र तंज कसने के लिए नहीं लिख रही, किसी को नीचा दिखाने के लिए नहींं लिख रही| आपको याद होगा ना जब आपने , मेरा रिश्ता तय कर दिया था मेरा किसी के साथ, उस उम्र में जब स्कूल का रास्ता तय कर पाना भी मेरे लिए मुश्किल था| 10 साल की थी तब मैं और स्कूल पूरे 5 किलोमीटर दूर था| मैंने तब भी कुछ कहा नहीं था, क्योंकि मुझे भी नहीं पता था यह सब क्या है? खैर उस बात को अब 7-8 साल हो चुके| समय बदला और समय के साथ मुझे एक बात समझ में आई है, वो लड़का मेरे लिए सही नहीं है, यह रट मैंने बहुत दिनों से लगाई है| शायद इसी वजह से आप अब सुनते नहीं मुझे, मगर आज यह बात तो मैं आपको सुनाकर रहूँगी| वो आपकी मौजूदगी तो कभी गैरमौजूदगी में घर आ जाता है, मम्मी और आप दोनों को मीठी बातों से रिझाता है! मग