आज विजयादशमी के मौके पर ,
एक व्यंग मेरे दिमाग में अनायास चल रहा है!
पुतला शायद रावण का फूंका जायेगा,
मगर मेरे अंतःकरण में एक रावण जल रहा है|
तर्क-कुतर्क व्यापक हुआ है,
हठी, मूढ़ी भी बुद्धिजीवी बना है!
आज दशहरा के मौके पर कोई सीता पक्ष तो,
कोई रावण पक्ष की पैरवी में लगा है|
एक व्यंग मेरा भी इस मुक़दमे में जोड़ लो,
विचारों को एक और नया मोड़ दो!
देखो राम ने सीता का त्याग किया था,
इसके लिए उन्हें मैं कुछ देर के लिए दोषी मानता हूँ|
दोष-निर्दोष, कोप-प्रकोप, समर्थन-विद्रोह,
इन सबको चंद पंक्तियों में बखानता हूँ|
अगर बात करें हम न्यायपालिका की,
तो दोषी ठहराओ हर एक सम्राट को जो युद्ध में विजयी हुआ!
क्योंकि सैनिकों की हत्या करके,
उसने भी तो अपराध अपने सिर लिया|
दोषी वो अरि पक्ष भी है,
क्योंकि संख्या थोड़ी कम सही,
मगर हत्याएं तो उसने भी जरुर की होंगी!
दोषी ये सारे बुद्धिजीवी भी हैं,
क्योंकि कुतर्क गढ़ना भी एक अपराध की श्रेणी में आता है!
दोषी मैं भी हूँ,
क्योंकि मिथ्या कहानियाँ गढ़ना भी दंडनीय अपराध है!
दोषी आप भी हैं न्यायपालिका के अनुसार,
क्योंकि मिथ्या और निंदा सुनना भी अक्षम्य पाप है|
अंत में दोषी न्यायव्यवस्था भी है,
जो सबको दंड सुनाती है!
आखिर किसी व्यक्ति पर अत्याचार करना ,
भी तो एक अपराध है|
अब बताओ दोषी आखिर है कौन?
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आप सभी को विजयदशी की हार्दिक शुभकामनायें,
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धन्यवाद!
Aapne prashno me uljhaa diye…doahi kaun…..?
ReplyDelete😁😁vhi Mera bhi prashn Tha akhir doshi Hai kaun?
ReplyDeleteThanks Pooja
ReplyDeleteWow amazing suprb blog
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