नमस्कार दोस्तों , कभी कभी मन में कल्पनाएं चल रही होती हैं , जिनका कोई आधार नहीं होता फिर भी आनंद आता है उन्हें लिखने में तो पढ़िए मेरी ये छोटी सी कविता -
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ख़बर ना तुझे रही अब ,
ना मुझे कोई ख़बर है!
तुझे पूछना भी बंद कर दिया है अब
हाल चाल मेरा,
तो अपनी तरफ से बताना ,
मैं अब वाजिब नहीं समझता !
शायद दूरियां पसंद हैं तुझको,
कोशिश मेरी भी अब कुछ ऐसी ही है|
कुछ था और अभी भी कुछ है,
हम दोनों के बीच
वो प्यार नहीं, शायद दोस्ती नहीं ,
कुछ अलग सा है वो जिसका नाम किसी कहानी किस्से में पढ़ा नहीं अभी तक!
जाहिर नहीं करती कभी इरादों को अपने,
बड़ा बैचैन हो जाता हूँ मैं ये सब सोचकर!
कुछ अलग सा हूँ,
मैं भी बाकी सबसे
वो सबके जैसे हरकतें करना मुझे नहीं आता!
बहुत ज्यादा उलझा हुआ रहता हूँ ,
खुद में तो कभी दुनिया की बातों में!
तूने सच बोला था या झूठ की
तुझे मैं उलझा हुआ पसंद हूँ|
पता नहीं क्या लिख रहा हूँ ?
क्यों लिख रहा हूँ?
हमेशा कहानियां गढ़ता हूँ, अपनी कविताओं में!
आज सच्चाई लिख रहा हूँ तो कितनी फीकी और बिना किसी लय के ऊटपटांग लिखे जा रहा हूँ!
तेरा ये लगातार चुप रहना मुझे कुछ और बना रहा है,
पता नहीं क्या होगा?
मगर मुझे डर है कहीं किसी दिन मैं हम दोनों के मामले में सुलझ गया तो खेल बदल जायेगा |
खैर मैं भावनाओं का बोझ नहीं डालता कभी तुमपर ,
ना कभी कोशिश की आज तक!
फिर भी तुम्हें शायद कहीं लगता है कि मैं ऐसा प्रयास करता हूँ ,
इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता !
तुम निभाओ अपना किरदार एक सफल अभिनेता जैसा,
मुझे असफल व्यक्तित्व में रहने की आदत सी पड़ गयी है!
-Shubhankar Thinks
Sir bhut dhanyavaad apka ki apne is durgam marg ko chunkr comment Kia 😁😁
ReplyDeleteApki panktiyan lajawab Hain
nahi...nahi ab to asaani se khul raha hai....koyee samasya nahi.......swagat apka....
ReplyDeletenahi nahi ab aram se khul raha hai.....swagat apka.
ReplyDeletesir ek anurodh hai ap please apna spam box check kr le ek baar kyonki raat maine apki 4-5 posts par comment kia tha mgr mujhe lgta hai, unfortunately vo apko nhi mil paya hai.
ReplyDeletelaajwaab likha hai Shubhankar ji….
ReplyDeleteमैं वही हूँ जो तुमने देखा था,
कहाँ बदला जब तुमने छोड़ा था,