प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
आज विजयादशमी के मौके पर , एक व्यंग मेरे दिमाग में अनायास चल रहा है! पुतला शायद रावण का फूंका जायेगा, मगर मेरे अंतःकरण में एक रावण जल रहा है| तर्क-कुतर्क व्यापक हुआ है, हठी, मूढ़ी भी बुद्धिजीवी बना है! आज दशहरा के मौके पर कोई सीता पक्ष तो, कोई रावण पक्ष की पैरवी में लगा है| एक व्यंग मेरा भी इस मुक़दमे में जोड़ लो, विचारों को एक और नया मोड़ दो! देखो राम ने सीता का त्याग किया था, इसके लिए उन्हें मैं कुछ देर के लिए दोषी मानता हूँ| दोष-निर्दोष, कोप-प्रकोप, समर्थन-विद्रोह, इन सबको चंद पंक्तियों में बखानता हूँ| अगर बात करें हम न्यायपालिका की, तो दोषी ठहराओ हर एक सम्राट को जो युद्ध में विजयी हुआ! क्योंकि सैनिकों की हत्या करके, उसने भी तो अपराध अपने सिर लिया| दोषी वो अरि पक्ष भी है, क्योंकि संख्या थोड़ी कम सही, मगर हत्याएं तो उसने भी जरुर की होंगी! दोषी ये सारे बुद्धिजीवी भी हैं, क्योंकि कुतर्क गढ़ना भी एक अपराध की श्रेणी में आता है! दोषी मैं भी हूँ, क्योंकि मिथ्या कहानियाँ गढ़ना भी दंडनीय अपराध है! दोषी आप भी हैं न्यायपालिका के अनुसार, क्योंकि मिथ्या और निंदा सुनना भी अक्षम्य पाप है| अंत में दोषी