बंद आँखों से "मैं" का जब पर्दा हटाया, कहने और करने में बड़ा फ़र्क पाया। सब समझने के वहम में जीता रहा "मैं", सच में समझ तो कुछ भी नहीं आया। रहा व्यस्त इतना सच्चाई की लाश ढोने में, कि जिंदा झूठ अपना समझ नहीं आया। कारण ढूँढता रहा हर सुख दुख में, अकारण मुझे कुछ नज़र नहीं आया। ढूँढता रहा सब जगह कुछ पाने की ललक से, जो मिला ही हुआ है वो ध्यान में ना आया। फँसता गया सब झंझटों में आसानी से, सरलता को कभी अपनाना नहीं चाहा। झूठ ही झूठ में उलझा हुआ पाया, आंखों से जब जब पर्दा हटाया। ~ #ShubhankarThinks
ऑनर किलिंग की घटनाएं हमारे देश में आये दिन होती रहती हैं, जिसके बाद के दृश्य को मैंने अपनी कविता के माध्यम से प्रदर्शित किया है|
यह कविता लड़की के बाप के ऊपर आधारित है ,जिसमें लड़की का बाप अपनी बेटी सहित उस लड़के की हत्या कर देता है |
आरोप सिद्ध होने के बाद उसे जेल होते है और घर वापस आकर कुछ इस तरह से व्यथित होता है -
होती अगर जीवित वो आज,
तो आँगन में मेरे भी चहचाहट करती वो !
इस गांव में ना सही कहीं दूर दूसरे शहर में रह लेती,
कम से कम इसी दुनिया में तो रहती वो |
प्यार किया था या कोई गुनाह किया था,
खुद अपने हाथों से मार दिया मैंने,
अपनी लाड़ली बेटी को|
ये समाज , धर्म-जाति सब कुछ दिखावे में आता है,
ना धन है मेरे पास ना कोई रोजी रोटी का अता पता है!
उस दिन मुझे उकसाने को हजारों का महकमा खड़ा था,
मेरी अक्ल पर ना जाने क्या पत्थर पड़ा था!
अपने घर की रोशनी को अंधेर में बदल दिया,
साथ में किसी दूसरे के घर के चिराग को भी दुनिया से ओझल कर दिया |
क्या पाया मैंने?
अपने घर की हँसती खेलती हस्ती को मिटा दिया ,
साथ में किसी दूसरे के घर में भी मातम बिछा दिया|
पड़ौसी,कौम,कुछ गांव वाले!
ये लोग कौन से दूध के धुले थे,
इनके चिट्ठे पिटारे सब खुले हुए थे!
मति मारी गयी थी मेरी उस रात,
सुलह करके भी हो बन सकती थी बात|
हाँ!मेरी जाति का नहीं था वो ,
मगर हांड,माँस, खून से बना ,
मेरी ही तरह इंसान था वो!
मेरी ही तरह रोटी,सब्जी खाता था,
किसी दूसरे ग्रह का प्राणि नहीं था वो!
समाज में प्रतिष्ठा की ही तो बात थी,
या फिर सब लोकलाज के डर की करामात थी!
मगर आज तो नहीं कोई सम्मान मेरा ,
उड़नछू हो गया सब मायावी गुमान मेरा!
याद करता हूँ तो समझ आता है ,
ना प्रतिष्ठा में दम था ,
ना मेरे कर्मो में कोई खास बात थी!
समय वो था जब मेरे ऊपर लक्ष्मी की बरसात थी|
आज निर्धनता और घर अकाल पड़ा है,
मेरे पास ना कोई सगा सम्बन्धी, ना दोस्त बंधु खड़ा है!
अपनी हरी भरी बगिया को अपने हाथों उजाड़ दिया मैंने,
कुदरत के बनाये अनोखे खेल को अपनी दिखावट में बिगाड़ दिया मैंने!
इस समाज, धर्म के मुद्दे सब निपटा ही लेता मैं,
कल मुमकिन नहीं था मगर आज उसे अपना ही लेता मैं!
मेरे घर नहीं तो किसी दूर शहर में वो होती,
मेरे दिल में खुशी और मन को तसल्ली होती|

©Confused Thoughts
कैसे हैं आप सभी लोग?
कमेंट में बताना ना भूलें !
आपसे क्षमा चाहूँगा इतने दिनों से गायब था और आगे भी गायब रहूँगा उसके लिए अतिरिक्त क्षमा चाहता हूँ|
कॉलेज , कोचिंग, एग्जाम सारे बहाने अब खत्म हो चुके हैं इसलिए इस बार कोई बहाना नहीं बता रहा |
यह कविता लड़की के बाप के ऊपर आधारित है ,जिसमें लड़की का बाप अपनी बेटी सहित उस लड़के की हत्या कर देता है |
आरोप सिद्ध होने के बाद उसे जेल होते है और घर वापस आकर कुछ इस तरह से व्यथित होता है -
होती अगर जीवित वो आज,
तो आँगन में मेरे भी चहचाहट करती वो !
इस गांव में ना सही कहीं दूर दूसरे शहर में रह लेती,
कम से कम इसी दुनिया में तो रहती वो |
प्यार किया था या कोई गुनाह किया था,
खुद अपने हाथों से मार दिया मैंने,
अपनी लाड़ली बेटी को|
ये समाज , धर्म-जाति सब कुछ दिखावे में आता है,
ना धन है मेरे पास ना कोई रोजी रोटी का अता पता है!
उस दिन मुझे उकसाने को हजारों का महकमा खड़ा था,
मेरी अक्ल पर ना जाने क्या पत्थर पड़ा था!
अपने घर की रोशनी को अंधेर में बदल दिया,
साथ में किसी दूसरे के घर के चिराग को भी दुनिया से ओझल कर दिया |
क्या पाया मैंने?
अपने घर की हँसती खेलती हस्ती को मिटा दिया ,
साथ में किसी दूसरे के घर में भी मातम बिछा दिया|
पड़ौसी,कौम,कुछ गांव वाले!
ये लोग कौन से दूध के धुले थे,
इनके चिट्ठे पिटारे सब खुले हुए थे!
मति मारी गयी थी मेरी उस रात,
सुलह करके भी हो बन सकती थी बात|
हाँ!मेरी जाति का नहीं था वो ,
मगर हांड,माँस, खून से बना ,
मेरी ही तरह इंसान था वो!
मेरी ही तरह रोटी,सब्जी खाता था,
किसी दूसरे ग्रह का प्राणि नहीं था वो!
समाज में प्रतिष्ठा की ही तो बात थी,
या फिर सब लोकलाज के डर की करामात थी!
मगर आज तो नहीं कोई सम्मान मेरा ,
उड़नछू हो गया सब मायावी गुमान मेरा!
याद करता हूँ तो समझ आता है ,
ना प्रतिष्ठा में दम था ,
ना मेरे कर्मो में कोई खास बात थी!
समय वो था जब मेरे ऊपर लक्ष्मी की बरसात थी|
आज निर्धनता और घर अकाल पड़ा है,
मेरे पास ना कोई सगा सम्बन्धी, ना दोस्त बंधु खड़ा है!
अपनी हरी भरी बगिया को अपने हाथों उजाड़ दिया मैंने,
कुदरत के बनाये अनोखे खेल को अपनी दिखावट में बिगाड़ दिया मैंने!
इस समाज, धर्म के मुद्दे सब निपटा ही लेता मैं,
कल मुमकिन नहीं था मगर आज उसे अपना ही लेता मैं!
मेरे घर नहीं तो किसी दूर शहर में वो होती,
मेरे दिल में खुशी और मन को तसल्ली होती|
©Confused Thoughts
कैसे हैं आप सभी लोग?
कमेंट में बताना ना भूलें !
आपसे क्षमा चाहूँगा इतने दिनों से गायब था और आगे भी गायब रहूँगा उसके लिए अतिरिक्त क्षमा चाहता हूँ|
कॉलेज , कोचिंग, एग्जाम सारे बहाने अब खत्म हो चुके हैं इसलिए इस बार कोई बहाना नहीं बता रहा |
शत प्रतिशत सत्य👌
ReplyDeleteVery touching. More power to your words
ReplyDeleteThanks !
ReplyDeleteThank you so much mam!
ReplyDeleteBilkul sachchaayee udhel diyaa aapne kaafi dardnaak....bahut khub.
ReplyDeleteसच्चाई से रूबरू कराती रचना ....कुछ ऐसी ही घटना हमारे शहर में भी हुई ,जिसमें माता -पिता ने ही अपनी बेटी के पति को मार दिया, सिर्फ प्रेम ही तो किया था उसने ...उसकी इतनी बड़ी सजा । ऐसी घटनाएँ देखकर सिर्फ एक ही सवाल मन में उभरता है कि उनका मान -सम्मान उनकी बेटी की खुशी से भी बढ़कर हो जाता है!!
ReplyDeleteBhut dhanyavaad sir 🙏
ReplyDeleteयह एक बड़ी समस्या की आपने चर्चा की है. पता नही इससे उबरने में कितना समय लगेगा.
ReplyDeleteमैं भी ऐसी घटनाएं अखबारों में पढ़ता हूँ तो सोचा कहानी से ज्यादा उसके परिणाम पर जोर दिया जाए क्योंकि शायद परिणाम जानकर कुछ लोग अपना नजरिया बदल लें!
ReplyDeleteधन्यवाद अपना कीमती समय देकर मेरी रचना पढ़ने के लिए🙏🙏
हाँ इसीलिए मैंने इसके परिणामों पर प्रकाश डालने की छोटी सी कोशिश की है!
ReplyDeleteअच्छी कोशिश है। :-)
ReplyDeleteDhanyavaad mam
ReplyDeleteBahut achcha😊😊
ReplyDeleteHey...cool dp bro! 😏👌
ReplyDeleteHello !
ReplyDeleteThank you so much sister 😊😊
Very heart touching...do you know someone who went through it?
ReplyDeleteNhi ye Sirf imagination thi!
ReplyDeleteActually news papers m aisi news ATI Hai to Maine sirf imagine Kia Hai ki result Kya hota hoga uske Baad !
Kuki hm sbhi human Hai ,beshak kuch pal k liye hm kathor bn jayen mgr kuch Der Baad , kuch Saal Baad to jrur afsos hota hoga khud par
Sahi kaha hai. But mujhe ek aisi family pata hai. And main tumhe ek sach baat bataoon? Us baap aur uske gharwalon ko koi sharm aur pachtawa nahi hai apni ladki ke katl par. Aise log bhi hote hain.
ReplyDeleteHaan log sab trah ke hote Hai !
ReplyDeleteKoi to baap aisa bhi hoga jise aaj phchtava hota hoga apne kiye par!
Usi ki kahani Maine likhi Hai
I know. Well done, as always 😊
ReplyDeleteThank you so much di
ReplyDeleteYou're welcome 😊
ReplyDeleteEuthanasia!! Horrifying!
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक ...इसे पढ़ के मैं रो पड़ी....समाज को सवेदनाशून्य नही हो जाना चाहिए..मान सम्मान बड़ा है....बहुत बड़ा...पर किसी के जान से बढ़कर नही😢
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