जैसे किसी बाग में पौधों पर फूल ना खिल सकें तो हवा, पानी, खाद, बीज कई कारण हो सकते हैं परंतु इन सबमें से मुख्य कारण माली का सजग ना होना माना जायेगा, ऐसे ही अगर किसी बच्चे के चेहरे पर अगर फूल ना खिल रहे हों, उसके भीतर से ऊर्जा उछाल नहीं मार रही तो इसका पूरा दोष माता पिता को दिया जाना चाहिए। ~ #ShubhankarThinks
ये कविता उस स्थिति के बारे में लिखी गयी है| जब किसी नौकरी की तलाश में कोई बेरोजगार नौजवान युवा गांव से शहर का रुख करता है तो गर्मी में उसका हाल कुछ ऐसा हो जाता है- IMG credit- https://commons.wikimedia.org/wiki/File:A_view_of_Road_Traffic_Chandagaur_to_New_Delhi_India_Highways.jpg गर्म मौसम और शहर का तापमान स्तर, यहां होता है माहौल औरों से इतर! लू के थपेड़ों से जलता बदन, काल के गाल में समा जाती है वो मदमस्त पवन ! वो सड़कों से उड़ती तेज धूल , जैसे कोई चुभा रहा कोई गर्म शूल! आँखें पथरा गयी हैं मंजिल की तलब में , सब जगह घूम रहा हूँ मैं बेमतलब में! प्यास के मारे गला सूख गया है, पानी का ना कोई अता पता है! प्रदूषण की कालिख चेहरे पे लग रही है, आज आसमान से भी मानो आग बरस रही है! जहाँ नीम पीपल के वृक्ष थे, वहां अब मकान खड़े हैं ! जो 2-4 पेड़ भाग्यवश बच गए थे , आज वो भी बिल्कुल शांत खड़े हैं! कुछ कीकड के पेड़ बेज़ार खड़े हैं, लोग तो उसकी बनावटी छाँव में भी लगातार खड़े हैं! आँखें टोह रहीं हैं मंजिल की तलाश, सुबह से नहीं मिला सही दिशा में निकास! राहों की पहेली उलझती जा रही है, हर एक गली के बाद एक जैसी ग