कभी कभी घिर जाते हैं हम गहरे किसी दलदल में, फँस जाते हैं जिंदगी के चक्के किसी कीचड़ में, तब जिंदगी चलती भी है तो रेंगकर, लगता है सब रुका हुआ सा। बेहोशी में लगता है सब सही है, पता नहीं रहता अपने होने का भी, तब बेहोशी हमें पता नहीं लगने देती कि होश पूरा जा चुका है। ठीक भी है बेहोशी ना हो तो पता कैसे लगाइएगा की होश में रहना क्या होता है, विपरीत से ही दूसरे विपरीत को प्रकाश मिलता है अन्यथा महत्व क्या रह जायेगा किसी भी बात का फिर तो सही भी ना रहेगा गलत भी ना रहेगा सब शून्य रहेगा। बेहोशी भी रूकती नहीं हमेशा के लिए कभी आते हैं ऐसे क्षण भी जब एक दम से यूटूर्न मार जाती है आपकी नियति, आपको लगता है जैसे आँधी आयी कोई और उसने सब साफ कर दिया, बेहोशी गिर गयी धड़ाम से जमीन पर, आपसे अलग होकर। अभी आप देख पा रहे हो बाहर की चीजें साफ साफ, आपको दिख रहा है कि बेहोशी में जो कुछ चल रहा था वो मेरे भीतर कभी नही चला। जो भी था सब बाहर की बात थी, मैं तो बस भूल गया था खुद को बेहोशी में, ध्यान ना रहा था कि सब जो चल रहा था कोई स्वप्न था। खैर जो भी था सही था, जैसी प्रभु की इच्छा, जब मन किया ध्यान में डुबो दिया जब मन कि
आज बोधकथा के क्रम में आज मैं फिर से एक बोधकथा लेकर आया हूँ जो मैंने पहले की भांति स्कूल में सुनी थी -
पुरातन काल की बात है किसी राज्य में एक राजा रहता था , राजा का नाम उत्तानपाद था और राजा की दो पत्नियां थी पहली पत्नी का नाम सुनिती था और दूसरी का नाम सुरुचि था !
सुरुचि की संतान का नाम उत्तम था और सुनिती के पुत्र का नाम ध्रुव था उसकी उम्र 5 वर्ष थी , राजा को दोनों रानियों में से सुरुचि अधिक प्रिय थी और सुनिती को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता था !
एक बार की बात है ध्रुव अपने पिता की गोद में खेल रहा था , तभी सुरुचि उसे खेलता देख लेती है और ईर्ष्या के कारण वो ध्रुव को गोद से उतारकर उत्तम को बैठा देती है , अब छोटा बच्चा ध्रुव शिकायत करता है कि मुझे क्यों उतार दिया आपने ?
तो सुरुचि तिरस्कार से कहती है "तुम राजा की गोद में तो बैठ नहीं सकते हां भगवान के पास जाओ सिर्फ वो ही तुम्हे अपनी गोद में बैठा सकते हैं "
ध्रुव रोता हुआ सीधा अपनी माँ सुनिती के पास जाता है
सुनीति उसे दुलारती है समझाती है कि बेटा जिद्द नहीं करते जब उत्तम वहाँ नहीं रहेगा तब तुम बैठ जाना मगर ध्रुव कहाँ मानने वाला था वो लगातार पूछ रहा था मैं क्यों नहीं बैठ सकता आखिर वो मेरे भी तो पिता हैं !
सुनीति बेचारी निःशब्द हो जाती है और बच्चे के इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाती ,
मगर ध्रुव बाल बुद्धि था उसे अभी भी अपनी दूसरी माँ सुरुचि की बातें याद आ रही थी तब उसे याद आया कि कोई भगवान नाम का प्राणी है जो मुझे गोद में बैठा सकता है अगर मैं उनसे विनती करूँ तो बस यह बात उसके हृदय में घर कर गयी थी और रात को सबके सो जाने के बाद वो चुपचाप निकल पड़ा जंगल की ओर भगवान को ढूंढ़ने अब बच्चे की ऐसी हठ देख नारद ने उसकी मदद करने की तरकीब सोची और साधारण मनुष्य का रूप धारण कर उसके पास प्रकट होकर बोले "पुत्र तुम रात्रि के समय घनघोर जंगल में क्या कर रहे हो अगर कोई जंगली जीव आ गया तो तुम्हारा भक्षण कर लेगा !"
ध्रुव निडरता से कहता है "मुझे भगवान के पास जाना है और माँ ने बताया है वो मुझे गोद में बैठाएंगे बस उन्हें ही ढूंढ रहा हूँ पता नहीं कहाँ रहते हैं वो क्या आप उनका नाम पता बता सकते हैं ?"
बालक की ऐसी हठ देख नारद भी अचंभित हो जाते हैं और बोलते हैं "पुत्र उनका नाम विष्णु है और वो खुद तुम्हारे पास आ जाएंगे अगर तुम उन्हें सच्चे मन से तप करके बुलाओगे , तुम सिर्फ "ओम नमो भगवते वासुदेवाय " मंत्र का निरंतर उच्चारण करना जब तक वो खुद तुम्हारे सामने प्रकट ना हो जाएं !"
इतना कहकर नारद अदृश्य हो जाते हैं
वो बालक वहीं खड़ा होकर हाथ जोड़कर मंत्र का उच्चारण प्रारम्भ कर देता है , तप करते करते उसे रात दिन , धूप बरसात किसी भी बात की सुध नहीं रहती और बिना कुछ खाये पिये ऐसे ही छः मास तक घोर तपस्या करता है आखिरकार विष्णु भगवान उसकी तपस्या से प्रसन्न होते हैं और उसके सामने प्रकट होकर बोलते हैं "आंखें खोलो पुत्र !तुमने इतनी कम अवस्था में कठोर तप करके मुझे प्रसन्न कर दिया तुम अब मुझसे कोई भी वर मांग सकते हो ?"
ध्रुव आंखें खोलता है और भगवान को प्रणाम करते हुए बोलता है "भगवान मुझे हमेशा के लिए आपकी गोद में बैठना है मुझे अपने साथ ले चलो (बाल अज्ञानता के कारण उसे मोक्ष शब्द का ज्ञान नहीं था )
भगवान प्रसन्नता पूर्वक उसे अपनी गोद में बैठकर विष्णुलोक में खिलाते हैं और मोक्ष के बाद पृथ्वी लोक में सर्वोच्च स्थान देने का वरदान भी दे देते हैं !
मोक्ष प्राप्ति के बाद ध्रुव को एक तारे के रूप में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ जिसे हम आज भी ध्रुव तारे के रूप में जानते हैं और उसके उसे 7 ऋषि मुनि तारे के रूप में घेरे हुए हमेशा उपस्थित रहते हैं !
शिक्षा - सच्चे मन और पूरी निष्ठा लगन के साथ किसी कार्य को अगर कोई करे तो कोई भी कार्य इस पृथ्वी पर असंभव नहीं है !

बोधकथा 3- तुलसीदास
अगर आपके पास भी ऐसी कोई बोधकथा है तो आपका स्वागत है मैं अगले रविवार को आपकी कथा अपने ब्लॉग पर गेस्ट पोस्ट की तरह प्रकाशित करूँगा
अधिक जानकारी के लिए
You can send me a email - shubhankarsharma428@gmail.com
पुरातन काल की बात है किसी राज्य में एक राजा रहता था , राजा का नाम उत्तानपाद था और राजा की दो पत्नियां थी पहली पत्नी का नाम सुनिती था और दूसरी का नाम सुरुचि था !
सुरुचि की संतान का नाम उत्तम था और सुनिती के पुत्र का नाम ध्रुव था उसकी उम्र 5 वर्ष थी , राजा को दोनों रानियों में से सुरुचि अधिक प्रिय थी और सुनिती को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता था !
एक बार की बात है ध्रुव अपने पिता की गोद में खेल रहा था , तभी सुरुचि उसे खेलता देख लेती है और ईर्ष्या के कारण वो ध्रुव को गोद से उतारकर उत्तम को बैठा देती है , अब छोटा बच्चा ध्रुव शिकायत करता है कि मुझे क्यों उतार दिया आपने ?
तो सुरुचि तिरस्कार से कहती है "तुम राजा की गोद में तो बैठ नहीं सकते हां भगवान के पास जाओ सिर्फ वो ही तुम्हे अपनी गोद में बैठा सकते हैं "
ध्रुव रोता हुआ सीधा अपनी माँ सुनिती के पास जाता है
सुनीति उसे दुलारती है समझाती है कि बेटा जिद्द नहीं करते जब उत्तम वहाँ नहीं रहेगा तब तुम बैठ जाना मगर ध्रुव कहाँ मानने वाला था वो लगातार पूछ रहा था मैं क्यों नहीं बैठ सकता आखिर वो मेरे भी तो पिता हैं !
सुनीति बेचारी निःशब्द हो जाती है और बच्चे के इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाती ,
मगर ध्रुव बाल बुद्धि था उसे अभी भी अपनी दूसरी माँ सुरुचि की बातें याद आ रही थी तब उसे याद आया कि कोई भगवान नाम का प्राणी है जो मुझे गोद में बैठा सकता है अगर मैं उनसे विनती करूँ तो बस यह बात उसके हृदय में घर कर गयी थी और रात को सबके सो जाने के बाद वो चुपचाप निकल पड़ा जंगल की ओर भगवान को ढूंढ़ने अब बच्चे की ऐसी हठ देख नारद ने उसकी मदद करने की तरकीब सोची और साधारण मनुष्य का रूप धारण कर उसके पास प्रकट होकर बोले "पुत्र तुम रात्रि के समय घनघोर जंगल में क्या कर रहे हो अगर कोई जंगली जीव आ गया तो तुम्हारा भक्षण कर लेगा !"
ध्रुव निडरता से कहता है "मुझे भगवान के पास जाना है और माँ ने बताया है वो मुझे गोद में बैठाएंगे बस उन्हें ही ढूंढ रहा हूँ पता नहीं कहाँ रहते हैं वो क्या आप उनका नाम पता बता सकते हैं ?"
बालक की ऐसी हठ देख नारद भी अचंभित हो जाते हैं और बोलते हैं "पुत्र उनका नाम विष्णु है और वो खुद तुम्हारे पास आ जाएंगे अगर तुम उन्हें सच्चे मन से तप करके बुलाओगे , तुम सिर्फ "ओम नमो भगवते वासुदेवाय " मंत्र का निरंतर उच्चारण करना जब तक वो खुद तुम्हारे सामने प्रकट ना हो जाएं !"
इतना कहकर नारद अदृश्य हो जाते हैं
वो बालक वहीं खड़ा होकर हाथ जोड़कर मंत्र का उच्चारण प्रारम्भ कर देता है , तप करते करते उसे रात दिन , धूप बरसात किसी भी बात की सुध नहीं रहती और बिना कुछ खाये पिये ऐसे ही छः मास तक घोर तपस्या करता है आखिरकार विष्णु भगवान उसकी तपस्या से प्रसन्न होते हैं और उसके सामने प्रकट होकर बोलते हैं "आंखें खोलो पुत्र !तुमने इतनी कम अवस्था में कठोर तप करके मुझे प्रसन्न कर दिया तुम अब मुझसे कोई भी वर मांग सकते हो ?"
ध्रुव आंखें खोलता है और भगवान को प्रणाम करते हुए बोलता है "भगवान मुझे हमेशा के लिए आपकी गोद में बैठना है मुझे अपने साथ ले चलो (बाल अज्ञानता के कारण उसे मोक्ष शब्द का ज्ञान नहीं था )
भगवान प्रसन्नता पूर्वक उसे अपनी गोद में बैठकर विष्णुलोक में खिलाते हैं और मोक्ष के बाद पृथ्वी लोक में सर्वोच्च स्थान देने का वरदान भी दे देते हैं !
मोक्ष प्राप्ति के बाद ध्रुव को एक तारे के रूप में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ जिसे हम आज भी ध्रुव तारे के रूप में जानते हैं और उसके उसे 7 ऋषि मुनि तारे के रूप में घेरे हुए हमेशा उपस्थित रहते हैं !
शिक्षा - सच्चे मन और पूरी निष्ठा लगन के साथ किसी कार्य को अगर कोई करे तो कोई भी कार्य इस पृथ्वी पर असंभव नहीं है !
बोधकथा guest post invitation
बोधकथा -1
बोधकथा -2
बोधकथा 3- तुलसीदास
अगर आपके पास भी ऐसी कोई बोधकथा है तो आपका स्वागत है मैं अगले रविवार को आपकी कथा अपने ब्लॉग पर गेस्ट पोस्ट की तरह प्रकाशित करूँगा
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बहुत अच्छा ------बचपन में ये कथा सूना करते थे परंतु माफ़ करना भाई ------जहां तक हमें ज्ञात है ध्रुव अपने माँ सुनीति के कहने पर भगवान् को पुकारने लगा--- न की सौतेली माँ के कहने पर-------वैसे सही कहा जो संतान अपनी माँ बाप की बातों का अनुशरण कर मेहनत करते है उन्हें भगवान् तक मिल जाते हैं.......बहुत अच्छा।
ReplyDeleteआपका बोध कथा सीरिज़ बड़ा अच्छा लगता है. ऐसे ही लिखते रहिये. मैंने नचिकेता पर कविता लिखी थी. आप चाहे तो उसकी कहानी भी लिख सकते है.
ReplyDeleteSir apne bhut achi baten likhi h
ReplyDeleteAB apko to PTA h story tellers alag alag way m story sunate hain mujhe aisa sunne ko Mila
Mgr Saar sabhi ka ek HOTA h
Jisme bhut acha lesson chupa HOTA h bss usi uddeshya SE mene ye likha tha
Post pdhne aur vichar vyakt krne me liye dhanyavaad
Dhanyavaad Meri bodhkatha pdhne k liye
ReplyDeleteMere liye bdi khushi ki baat hogi AGR AP ye kahani mere ISS bodhkatha series k liye as a guest post dengi
Mera phle plan Tha ki sari guest posts hi rhe ISS series m mgr koi b guest post na Milne ki vjh SE mene apni kathayen start ki thi
Apni raay jrur dena
पोस्ट एवं उद्देश्य आपका कत्तई गलत नहीं है------पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा-----हम दोनों एक दूसरे को और बेहतर बनाने का प्रयास करें ----धन्यवाद।
ReplyDeleteगेस्ट पोस्ट के सम्मान व के इंविटेशन के लिए बहुत शुक्रिया। आपने देखा होगा मैं तो ज्यादा कविताएं ही लिखती हूं । कहानी अभी तुरंत भेजने की स्थिति में नहीं हूं , समय अभाव के कारण। आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे। अपनी बोधकथा लिखना ऐसे ही जारी रखें भूली बिसरी कहानियों को पढ़ना अच्छा लगता है।
ReplyDeleteअगर चाहें तब मेरी कविता इस लिंक पर देख सकते हैं, मैं अपने कविता के लिंक भेज रही हूं -
https://rekhasahay.wordpress.com/2016/09/11/नचिकेता-और-यम-मोक्ष-संवाद/
wah
ReplyDeleteMujhe apki Kavita publish KRNE m koi problem Ni h Aur time Abhi pura week pda hua Hai next Sunday ko post krni h agli bodhkatha
ReplyDeleteAP agr chahe ho ek bar ISS bAt par vichar kr skti Hai !
Praroop yhi rhega guest post ka bs starting m AP APNA chota SA intro likh Dena blog k sath
Aur agr AP chahe ho mujhe vo praroop send kr skti Hai shubhankarsharma428@gmail.com
Vichaar rkhne k liye dhanyavaad
Apke vichar wakai bhut achhe Hai
ReplyDeleteAsha krta hu age BHI blog k jariye mulakat Hoti rhegi comments Mai
Dhanyavaad sir
Dhanyavaad sir
ReplyDeleteधन्यवाद----।
ReplyDeletewelcome sir
ReplyDeleteShubhankr abhi kuch samay mai kasfi vyast hun. Jab bhi time milegaa mai likhne ki koshish karungi.
ReplyDeleteDhanyavaad mam
ReplyDeleteKoi baat nahi AP JB BHI kabhi likhne ka MN kre AP bhej skti Hai
Hmesha swagat Hai kyoki ye bodhkatha series chlti rhegi AISE hi
Kabhi BHI bhej skte hain AP
Dhanyavaad
बहुत धन्यवाद. 😊😊
ReplyDeleteNice Photo <3 <3 <3
ReplyDeleteThanks 🙏
ReplyDeleteSundr katha
ReplyDeleteDhanyavaad Bhai
ReplyDeleteVah, vah. Maza aa gaya padh kar. Mujhe Dhruv Taare ki yeh kahani bilkul nahi pata thi. Thank you for this. Ab mai bhi apni beti ko yehi kahani sunaoungi
ReplyDeleteYe line pdhne ke Baad Dil Khush ho gya mano sare din ki thakan utar gyi !
ReplyDeleteActually ye concept bachhon k liye hi Hai aur apne vo last wLi line bolkr ISS Moto ko safal kr Diya
I'm glad my words encouraged you, par jab kahani he itni achhi tarah batayi gayi ho toh wah wah kaise na kare ;)
ReplyDeleteAbhaar apka 🙏🙏
ReplyDeleteWelcome :)
ReplyDeleteHi! nominated you for The Mystery Blogger Award! the links for the nominations: https://thepunkpenblog.wordpress.com/2017/07/07/a-new-award/?iframe=true&preview=true&calypso_token=41a6bfbe-6c02-4b7c-a53e-7261bf9de9cc
ReplyDeleteThank you so much Ashi for nomination !
ReplyDeleteI am so sorry for replying late.
Nevermind, I'm glad you received it!
ReplyDeleteThanks for your kindness
ReplyDelete