प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
नमस्कार दोस्तों ,
कैसे हैं आप सभी , जैसा की मैंने अपनी पहले एक पोस्ट में बताया था कि बोधकथा का क्रम प्रत्येक रविवार को ऐसे ही चलता रहेगा , बस तो आज के क्रम में मैं आपको एक छोटी सी कथा सुनाने जा रहा हूँ जो मैंने स्कूल के दिनों में सुनी थी -
अब नयी नयी शादी हुई थी वो भी रूपवती के साथ तो उसका ध्यान घर पर कुछ ज्यादा ही रहता था वो सारा दिन घर पर ही व्यतीत कर लेता था , पत्नी से इतना ज्यादा मोहित था कि एक पल भी उसे अपनी नजरों से दूर नहीं होने देता था , अब जैसा हम सबको पता है सावन के महीने में नयी ब्याहली बहु को मायके जाना होता है बस इसी तरह तीर्थराम की पत्नी भी मायके चली गयी , अब तो तीर्थराम को एक एक पल जैसे योजन के जैसे व्यतीत होते थे , एक एक दिन गिनता की कब सावन खत्म होगा !
अब आपको तो पता है प्रेम में व्याकुलता कुछ ज्यादा होती है , एक दिन व्याकुलता चरम पर थी अब शाम का समय था वर्षा घनघोर थी मगर तीर्थराम की जिद थी की आज कैसे भी मायके जाऊंगा और अपनी प्रिय पत्नी से मिलाप करके आऊंगा , घर वालों ने लाख समझाया परंतु वो जिद्द करके निकल पड़ा ! अब दिन छिप गया था वर्षा थमने का नाम नहीं ले रही थी और ससुराल जाने के लिए नदी पार करनी होती थी अब इतनी रात में कोई नाविक भी नहीं था तभी तीर्थराम ने देखा की कोई लकड़ी का बांस तैरता हुआ जा रहा है क्यों न इसी के सहारे नदी पार की जाये बस जैसे तैसे तीर्थराम ने उफनती हुई नदी पार की जब वो पार पहुंचे तो उन्हें ज्ञात हुआ वो बांस नहीं किसी की लाश थी जो तैरती हुई जा रही थी मगर वो प्रेम में अंधे हुए लाश को पकड़ कर इस पार आ गये , अभी भी उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ
दौड़ते हुए गांव में घुसे , ससुराल में घर के बाहर से देखा तो पहली मंजिल पर अट्टा पर एक कमरे में रौशनी थी ,उन्हें आभास हुआ ये जरूर उनकी पत्नी होगी रात में अध्ययन कर रही होगी बस उन्होंने आव देखा न ताव देखा ऊपर चढ़ने की युक्ति खोजने लगे तभी उन्हें रस्सी लटकी हुई दिखाई दी वो उसे ही पकड़ कर झट से ऊपर पहुंच गये और पत्नी को आवाज दी
तीर्थराम की आवाज सुनकर वो दौड़ती हुआ बाहर आई और तीर्थराम के हाथ में एक लंबा काला सर्प देख चिल्ला उठी दरअसल वो सांप को ही रस्सी समझ बैठे थे तो पत्नी ने झटक कर सांप को नीचे फेंक कर बोला , तुम्हे इतना पता नहीं चला की सांप है या रस्सी ?
तीर्थ राम मुस्कुराकर प्रेम पूर्ण तरीके से बोले "प्रिये तुम्हारे लिए मै इतनी घनघोर वर्षा का सामना करते हुए आया और तो और लाश को बांस समझ कर नदी पार कर डाली और सर्प को रस्सी समझ अट्टा पर चढ़ गया , ये सब मेरा प्रेम है तुम्हारे लिए मैं तुम्हारे बिना पल भर भी व्यतीत नहीं कर पा रहा था ?
ये सारे वचन सुनकर पत्नी को बड़ा अचंभा हुआ और वो तिरस्कार से बोली
"मुझे नहीं पता था आप इतने महान मुर्ख हैं
अरे मुर्ख !अगर इतना प्रेम तुमने राम से किया होता तो आज तुम कुछ और बन गए होते , पत्नी से प्रेम करने की जगह ज्ञान में समय बिताया होता तो प्रकांड ज्ञानी बन गए होते , तुम व्यर्थ हो इस पृथ्वी पर "
ये सारे वचन क्रोध में पत्नी ने जब बोले तो तीर्थराम को बहुत ग्लानि महसूस हुई और उन्होंने बिना कुछ बोले वापस होना शुरू कर दिया , वर्षा इतनी घनघोर थी उसकी पत्नी को बुरे वचनों पर पछतावा हुआ उसने खूब माफ़ी मांगी मगर वो अब रुकने वाला नहीं था और निकल गया गांव से बाहर मगर वो इस बार अपने गांव वापस नहीं जा रहा था वो जा रहा था ज्ञान अर्जित करने उसने दो तीन वर्ष कठोर परिश्रम किया और संस्कृत , हिंदी जैसे विषयों में ख्याति अर्जित की और पूरे जगत में स्वामी गोस्वामी तुलसीदास के नाम से प्रसिद्ध हुए बाद में उन्होंने रामायण के हजारों श्लोकों को सरल हिंदी भाषा में अनुवादित कर दिया और वो आज भी रामचरित मानस के रूप में पूरे भारत में पढ़ी जाती है !
©Confused Thoughts
कैसे हैं आप सभी , जैसा की मैंने अपनी पहले एक पोस्ट में बताया था कि बोधकथा का क्रम प्रत्येक रविवार को ऐसे ही चलता रहेगा , बस तो आज के क्रम में मैं आपको एक छोटी सी कथा सुनाने जा रहा हूँ जो मैंने स्कूल के दिनों में सुनी थी -
एक गांव में सामान्य सा लड़का था जिसका नाम था तीर्थंराम , पढ़ाई लिखाई में कोई ख़ास लगाव नहीं था तो घर वालों ने जल्दी ही उसकी शादी एक विदुषी कन्या से करा दी , जिसे पढ़ाई लिखाई का बहुत अच्छा अनुभव था क्योंकि उनके घर का माहौल वेद पुराण से गुंजित हुआ करता था मगर जब उन्होंने देखा की ससुराल में लोगों को इन सब कामो में दिलचस्पी नहीं है तो उन्हें बड़ा अजीब लगा मगर उन्होंने कभी घमंड नहीं किया कि मैं सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी हूँ इस घर में , तीर्थराम साधारण ग्रामीण था ,
अब नयी नयी शादी हुई थी वो भी रूपवती के साथ तो उसका ध्यान घर पर कुछ ज्यादा ही रहता था वो सारा दिन घर पर ही व्यतीत कर लेता था , पत्नी से इतना ज्यादा मोहित था कि एक पल भी उसे अपनी नजरों से दूर नहीं होने देता था , अब जैसा हम सबको पता है सावन के महीने में नयी ब्याहली बहु को मायके जाना होता है बस इसी तरह तीर्थराम की पत्नी भी मायके चली गयी , अब तो तीर्थराम को एक एक पल जैसे योजन के जैसे व्यतीत होते थे , एक एक दिन गिनता की कब सावन खत्म होगा !
अब आपको तो पता है प्रेम में व्याकुलता कुछ ज्यादा होती है , एक दिन व्याकुलता चरम पर थी अब शाम का समय था वर्षा घनघोर थी मगर तीर्थराम की जिद थी की आज कैसे भी मायके जाऊंगा और अपनी प्रिय पत्नी से मिलाप करके आऊंगा , घर वालों ने लाख समझाया परंतु वो जिद्द करके निकल पड़ा ! अब दिन छिप गया था वर्षा थमने का नाम नहीं ले रही थी और ससुराल जाने के लिए नदी पार करनी होती थी अब इतनी रात में कोई नाविक भी नहीं था तभी तीर्थराम ने देखा की कोई लकड़ी का बांस तैरता हुआ जा रहा है क्यों न इसी के सहारे नदी पार की जाये बस जैसे तैसे तीर्थराम ने उफनती हुई नदी पार की जब वो पार पहुंचे तो उन्हें ज्ञात हुआ वो बांस नहीं किसी की लाश थी जो तैरती हुई जा रही थी मगर वो प्रेम में अंधे हुए लाश को पकड़ कर इस पार आ गये , अभी भी उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ
दौड़ते हुए गांव में घुसे , ससुराल में घर के बाहर से देखा तो पहली मंजिल पर अट्टा पर एक कमरे में रौशनी थी ,उन्हें आभास हुआ ये जरूर उनकी पत्नी होगी रात में अध्ययन कर रही होगी बस उन्होंने आव देखा न ताव देखा ऊपर चढ़ने की युक्ति खोजने लगे तभी उन्हें रस्सी लटकी हुई दिखाई दी वो उसे ही पकड़ कर झट से ऊपर पहुंच गये और पत्नी को आवाज दी
तीर्थराम की आवाज सुनकर वो दौड़ती हुआ बाहर आई और तीर्थराम के हाथ में एक लंबा काला सर्प देख चिल्ला उठी दरअसल वो सांप को ही रस्सी समझ बैठे थे तो पत्नी ने झटक कर सांप को नीचे फेंक कर बोला , तुम्हे इतना पता नहीं चला की सांप है या रस्सी ?
तीर्थ राम मुस्कुराकर प्रेम पूर्ण तरीके से बोले "प्रिये तुम्हारे लिए मै इतनी घनघोर वर्षा का सामना करते हुए आया और तो और लाश को बांस समझ कर नदी पार कर डाली और सर्प को रस्सी समझ अट्टा पर चढ़ गया , ये सब मेरा प्रेम है तुम्हारे लिए मैं तुम्हारे बिना पल भर भी व्यतीत नहीं कर पा रहा था ?
ये सारे वचन सुनकर पत्नी को बड़ा अचंभा हुआ और वो तिरस्कार से बोली
"मुझे नहीं पता था आप इतने महान मुर्ख हैं
अरे मुर्ख !अगर इतना प्रेम तुमने राम से किया होता तो आज तुम कुछ और बन गए होते , पत्नी से प्रेम करने की जगह ज्ञान में समय बिताया होता तो प्रकांड ज्ञानी बन गए होते , तुम व्यर्थ हो इस पृथ्वी पर "
ये सारे वचन क्रोध में पत्नी ने जब बोले तो तीर्थराम को बहुत ग्लानि महसूस हुई और उन्होंने बिना कुछ बोले वापस होना शुरू कर दिया , वर्षा इतनी घनघोर थी उसकी पत्नी को बुरे वचनों पर पछतावा हुआ उसने खूब माफ़ी मांगी मगर वो अब रुकने वाला नहीं था और निकल गया गांव से बाहर मगर वो इस बार अपने गांव वापस नहीं जा रहा था वो जा रहा था ज्ञान अर्जित करने उसने दो तीन वर्ष कठोर परिश्रम किया और संस्कृत , हिंदी जैसे विषयों में ख्याति अर्जित की और पूरे जगत में स्वामी गोस्वामी तुलसीदास के नाम से प्रसिद्ध हुए बाद में उन्होंने रामायण के हजारों श्लोकों को सरल हिंदी भाषा में अनुवादित कर दिया और वो आज भी रामचरित मानस के रूप में पूरे भारत में पढ़ी जाती है !
शिक्षा - धन , संपत्ति , प्रेम , रिश्ते इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण शिक्षा भी होती है क्योंकि किसी ने कहा है शिक्षा शेरनी के दूध की तरह होती है जो भी इसे पियेगा वो दूर तक दहड़ेगा ! समाज में , घर में हमारी इज्जत तभी होती है जब हमारे अंदर कोई गुण हो वरना अज्ञानी मनुष्य मुर्ख की श्रेणी में रखा जाता है !
बोधकथा guest post invitation
बोधकथा -1
बोधकथा -2
अगर आपके पास भी ऐसी कोई बोधकथा है तो आपका स्वागत है मैं अगले रविवार को आपकी कथा अपने ब्लॉग पर गेस्ट पोस्ट की तरह प्रकाशित करूँगा अधिक जानकारी के लिए You can send me a email - shubhankarsharma428@gmail.com
©Confused Thoughts
बहुत अच्छा लिखा आपने-------हम भी सोच रहे थे तुलसी दास पर कुछ लिखें------परन्तु आपने सोंच से बिलकुल अलग लिखा------
ReplyDeleteBhut dhanyavaad sir
ReplyDeleteMujhe khushi hai ki apko ye acha LGA
Agr aisi koi Katha AP BHI sunana chahte hain to ek bar niche diye link par Meri ye post jrur pdhen
http://wp.me/p89qEI-61
https://madhureo.wordpress.com/2017/04/02/tulsidas-ek-prem-katha-pad-men/
ReplyDeleteBahut accha , khoob sach
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद मैम
ReplyDeleteआपका कमेंट मेरे लिए महत्वपूर्ण है 🙏🙏
Kalidas ji ki bodh katha bhi likhi hai kya apne ?
ReplyDeleteNahin abhi tak to nahi mgr ap agr as a guest post dena chahegi to mere liye harsh ka visay hoga
ReplyDeleteArrei wah ye toh bahut sunder bat hai main jarur likhungi :) , Sath hi Soordasji ki katha bhi likhungi :)
ReplyDeleteMere pas toh aise jani kitni hi kathayein hain :)
ReplyDeleteApne meri ye post miss kr di hogi
ReplyDeletehttp://wp.me/p89qEI-61
Tabhi apko pta nahi chla tha
Haan m har ek ravivaar ko ek bodh katha post kar rha hu pichle 3 weeks se aur jb koi guest post nahi mili to khud hi start kr dia tha 😋
ReplyDeleteThanks for giving your support
wah abhoot accha
ReplyDeleteBhut dhanyavaad sir
ReplyDeletewelcome sir
ReplyDeleteAwesome :)
ReplyDeleteThanks alot
ReplyDeleteNice
ReplyDelete:)
ReplyDeleteDhanyavaad Bhai
ReplyDelete[…] बोधकथा 3- तुलसीदास […]
ReplyDeleteपुरिने साल के ब्लॉग हैं
ReplyDeleteनाइस
ReplyDeleteराम नाम का कल्पतरु, कलि कल्याण निवास। जो सुमिरत भये भांग ते, तुलसी तुलसीदास।।
ReplyDeleteNice
ReplyDeletePTA NAHI mene to Abhi likha Hai
ReplyDeleteDhanyavaad
ReplyDeleteATI Sundar
ReplyDeleteSadhuvaad !
Dhanyavaad
ReplyDeleteइसकी नहीं कह रहे हैं, हम भी भारतीय हिस्ट्री टेल्स योग रा कृष्ण पर लिखते हैं, संडे की बोध कथा के लिए पोस्ट के लिए बताया है।
ReplyDeleteह म अपने नवम्बर के ब्लॉग की कह रहे हैं। घबराओ मत बहुत बढिया लिखा है
Dhanyavaad
ReplyDeleteThank you so much mam
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढकर
ReplyDeleteThank you so much bro
ReplyDeleteU r fab
ReplyDeleteThanks
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