जैसे किसी बाग में पौधों पर फूल ना खिल सकें तो हवा, पानी, खाद, बीज कई कारण हो सकते हैं परंतु इन सबमें से मुख्य कारण माली का सजग ना होना माना जायेगा, ऐसे ही अगर किसी बच्चे के चेहरे पर अगर फूल ना खिल रहे हों, उसके भीतर से ऊर्जा उछाल नहीं मार रही तो इसका पूरा दोष माता पिता को दिया जाना चाहिए। ~ #ShubhankarThinks
आज की बोध कथा मैंने अपने स्कूल में किसी शिक्षक के शब्दों में सुनी थी शब्दशः मुझे याद नहीं मगर उसका सार मैं आपको सुनाता हूँ शायद ये कथा अपने भी कहीं सुनी हो
जैसा की बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के बारे में सभी ने सुना है जिसकी स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने की थी , ये किस्सा उन दिनों का है जब पंडित जी ने विश्वविद्यालय बनाने का संकल्प लिया मगर स्थापना के लिए एक बड़ी राशि की आवश्यकता थी इतनी राशि पंडित जी के पास तो थी नहीं मगर फिर भी उन्होंने आस पास के गांव जाकर लोगों से चंदा एकत्रित करना शुरू किया
वो बारी बारी से धनी सेठो के पास जाते और उनसे शिक्षा के मंदिर के निर्माण के लिए योगदान मांगते , कुछ दयालु सेठ , साहूकार श्रद्धा अनुसार धन देकर पंडित जी को विदा करते तो कुछ दुत्कार कर भगा देते
एक बार किसी ने पंडित जी को बताया फलां गांव में बड़ा धनी साहूकार रहता है और वो समाज कल्याण के कार्यों में हमेशा योगदान देता है , पंडित जी शाम के समय वहां पहुंचे तो साहूकार कुछ आवश्यक कार्य कर रहा था इसलिए उसने पंडित जी को प्रतीक्षा करने के लिए बोला और खुद पंडित जी के पास में ही अपना कार्य करता रहा ,
अब पंडित जी सोच रहे थे बड़ा कंजूस है देखो दीये के प्रकाश में ऑंखें फोड़ रहा है ये नहीं की लैंप खरीद ले मगर फिर भी वो धैर्य के साथ प्रतीक्षा करते रहे इतने में साहूकार का एक छोटा सा लड़का खेलता हुआ कमरे में घुसा और उसने खेल खेल में माचिस उठा ली और कुछ ही देर में उसने दो तीली बिगाड़ दी अब जैसे ही काम खत्म करने के बाद साहूकार की नजर अपने बेटे पर पड़ी उसने फटाक से माचिस छीनी उसके हाथ से और दो तीन थप्पड़ लगा दिए उसके गाल पर और बोला
"इतनी मेहनत का पैसा ऐसे खराब करेगा ,पता भी है तूने 2 तीली बिगाड़ दी "
अब पंडित जी को ये बात बड़ी आश्चर्यजनक लगी और वो मन ही मन सोचने लगे वैसे तो इतना धनी सेठ है और 1 आने की माचिस की तीली के लिए इकलौते लड़के को थप्पड़ लगा दिये, ये तो बड़ा ही कंजूस है इससे में धन की अपेक्षा कैसे रख सकता हूँ !
जो दीपक की रौशनी से लिखा पढ़ी कर रहा हो और एक एक तीली पर ऐसे गुस्सा कर रहा है मानो लाखों का नुकसान हुआ हो , ये कैसे दे सकता है चंदे की राशि
अब वो सेठ पंडित जी के पास आया और राजी ख़ुशी लेने लगा कुछ देर बाद पंडित जी ने सोचा रात होने वाली है और वैसे भी यहां रुकने का कोई फायदा नहीं तो वो बोले ठीक है तो अब हम विदा लेते हैं जब सेठ मुख्य द्वार तक पंडित जी को विदा करने आया तो पंडित जी से बोला वैसे पंडित जी आपने बताया नहीं कैसे आना हुआ हमारे घर?
पंडित जी पहले संकुचित हुए मगर फिर बोले हम विश्वविद्यालय का निर्माण करने जा रहे हैं उसी के लिए चन्दा एकत्रित कर रहे हैं आपके पास भी आये थे मगर जो व्यक्ति 2 तीली के लिए बेटे को मार सकता है वो चन्दा कहाँ दे पाएगा
सेठ बोला रुकिए आप यहीं और अंदर से एक पोटली निकाल कर लाया और बोला ये २५०००(उस समय की बहुत बड़ी राशि) रूपये हैं , अगर इस धर्मार्थ के कार्य में मेरा कुछ धन काम में आता है तो ये मेरे लिए सौभग्य की बात है पंडित जी स्तब्ध थे सेठ उनके चेहरे का भाव समझ गया और बोला पंडित जी मेरा बेटा अभी छोटा है अगर वो ऐसे धन को व्यर्थ करेगा तो ये आदत से व्ययी बना देगी और धर्म का व्यय हमेशा धर्मार्थ के कार्यों में होना चाहिए न की फिजूलखर्ची में , पंडित जी ने सेठ को प्रणाम किया और गंतव्य की ओर निकल पड़े और मन ही मन खुद को कोस रहे थे की उनके मन में ये बात आ कैसे गयी थी और वो सेठ तो मुझसे भी ज्यादा समर्पित निकला
शिक्षा -इस बोधकथा से हमे दो शिक्षाएं मिलती हैं
1- कभी भी खुद से किसी व्यक्ति के स्वाभाव का निर्णय नहीं कर लेना चाहिए
2- धन का उपयोग धर्मार्थ के कार्यों में करना चाहिए ना की व्यर्थ में
क्योंकि व्यर्थ में व्यय हुए धन से किसी को कोई लाभ नहीं मिलेगा मगर धर्मार्थ से बहुत सारे लोगों को लाभ मिलेगा इसलिए मितव्ययी बनो|
धन्यवाद
©Confused Thoughts
अपने विचार देना ना भूलें अगर ऐसी कोई बोधकथा आपको भी आती है तो आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं आपकी कथा गेस्ट पोस्ट सीरीज में अगले रविवार को पब्लिश होगी, अधिक जानकारी के लिए आप मुझे मेल करें
Shubhankarsharma428@gmail.com
जैसा की बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के बारे में सभी ने सुना है जिसकी स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने की थी , ये किस्सा उन दिनों का है जब पंडित जी ने विश्वविद्यालय बनाने का संकल्प लिया मगर स्थापना के लिए एक बड़ी राशि की आवश्यकता थी इतनी राशि पंडित जी के पास तो थी नहीं मगर फिर भी उन्होंने आस पास के गांव जाकर लोगों से चंदा एकत्रित करना शुरू किया
वो बारी बारी से धनी सेठो के पास जाते और उनसे शिक्षा के मंदिर के निर्माण के लिए योगदान मांगते , कुछ दयालु सेठ , साहूकार श्रद्धा अनुसार धन देकर पंडित जी को विदा करते तो कुछ दुत्कार कर भगा देते
एक बार किसी ने पंडित जी को बताया फलां गांव में बड़ा धनी साहूकार रहता है और वो समाज कल्याण के कार्यों में हमेशा योगदान देता है , पंडित जी शाम के समय वहां पहुंचे तो साहूकार कुछ आवश्यक कार्य कर रहा था इसलिए उसने पंडित जी को प्रतीक्षा करने के लिए बोला और खुद पंडित जी के पास में ही अपना कार्य करता रहा ,
अब पंडित जी सोच रहे थे बड़ा कंजूस है देखो दीये के प्रकाश में ऑंखें फोड़ रहा है ये नहीं की लैंप खरीद ले मगर फिर भी वो धैर्य के साथ प्रतीक्षा करते रहे इतने में साहूकार का एक छोटा सा लड़का खेलता हुआ कमरे में घुसा और उसने खेल खेल में माचिस उठा ली और कुछ ही देर में उसने दो तीली बिगाड़ दी अब जैसे ही काम खत्म करने के बाद साहूकार की नजर अपने बेटे पर पड़ी उसने फटाक से माचिस छीनी उसके हाथ से और दो तीन थप्पड़ लगा दिए उसके गाल पर और बोला
"इतनी मेहनत का पैसा ऐसे खराब करेगा ,पता भी है तूने 2 तीली बिगाड़ दी "
अब पंडित जी को ये बात बड़ी आश्चर्यजनक लगी और वो मन ही मन सोचने लगे वैसे तो इतना धनी सेठ है और 1 आने की माचिस की तीली के लिए इकलौते लड़के को थप्पड़ लगा दिये, ये तो बड़ा ही कंजूस है इससे में धन की अपेक्षा कैसे रख सकता हूँ !
जो दीपक की रौशनी से लिखा पढ़ी कर रहा हो और एक एक तीली पर ऐसे गुस्सा कर रहा है मानो लाखों का नुकसान हुआ हो , ये कैसे दे सकता है चंदे की राशि
अब वो सेठ पंडित जी के पास आया और राजी ख़ुशी लेने लगा कुछ देर बाद पंडित जी ने सोचा रात होने वाली है और वैसे भी यहां रुकने का कोई फायदा नहीं तो वो बोले ठीक है तो अब हम विदा लेते हैं जब सेठ मुख्य द्वार तक पंडित जी को विदा करने आया तो पंडित जी से बोला वैसे पंडित जी आपने बताया नहीं कैसे आना हुआ हमारे घर?
पंडित जी पहले संकुचित हुए मगर फिर बोले हम विश्वविद्यालय का निर्माण करने जा रहे हैं उसी के लिए चन्दा एकत्रित कर रहे हैं आपके पास भी आये थे मगर जो व्यक्ति 2 तीली के लिए बेटे को मार सकता है वो चन्दा कहाँ दे पाएगा
सेठ बोला रुकिए आप यहीं और अंदर से एक पोटली निकाल कर लाया और बोला ये २५०००(उस समय की बहुत बड़ी राशि) रूपये हैं , अगर इस धर्मार्थ के कार्य में मेरा कुछ धन काम में आता है तो ये मेरे लिए सौभग्य की बात है पंडित जी स्तब्ध थे सेठ उनके चेहरे का भाव समझ गया और बोला पंडित जी मेरा बेटा अभी छोटा है अगर वो ऐसे धन को व्यर्थ करेगा तो ये आदत से व्ययी बना देगी और धर्म का व्यय हमेशा धर्मार्थ के कार्यों में होना चाहिए न की फिजूलखर्ची में , पंडित जी ने सेठ को प्रणाम किया और गंतव्य की ओर निकल पड़े और मन ही मन खुद को कोस रहे थे की उनके मन में ये बात आ कैसे गयी थी और वो सेठ तो मुझसे भी ज्यादा समर्पित निकला
शिक्षा -इस बोधकथा से हमे दो शिक्षाएं मिलती हैं
1- कभी भी खुद से किसी व्यक्ति के स्वाभाव का निर्णय नहीं कर लेना चाहिए
2- धन का उपयोग धर्मार्थ के कार्यों में करना चाहिए ना की व्यर्थ में
क्योंकि व्यर्थ में व्यय हुए धन से किसी को कोई लाभ नहीं मिलेगा मगर धर्मार्थ से बहुत सारे लोगों को लाभ मिलेगा इसलिए मितव्ययी बनो|
धन्यवाद
©Confused Thoughts
अपने विचार देना ना भूलें अगर ऐसी कोई बोधकथा आपको भी आती है तो आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं आपकी कथा गेस्ट पोस्ट सीरीज में अगले रविवार को पब्लिश होगी, अधिक जानकारी के लिए आप मुझे मेल करें
Shubhankarsharma428@gmail.com
This post had such a good moral, it was really superb👏👍
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteThank you so much shivee 😇
ReplyDeleteMost welcome!😇
ReplyDeleteबहुत अर्थपूर्ण कहानी.
ReplyDeleteना जाने क्यों आपका ब्लॉग मुझे unfollow कर देता है.
ReplyDeleteSorry mam apke paas wrong information hai
ReplyDeleteBcz m ye follow un follow list vgrh kbi check ni krta to isme chances hi ni hote ki m kisi ko unfollow krun 😇
Dhanyawad mam
ReplyDeleteआपने नही किया. Automatic ho rahaa hai. But its ok. I guess there is some problem with WP.
ReplyDeleteAcha pta kese chlta hai ki unfollow kia h kisi ne ☺
ReplyDeleteDhanyavaad
ReplyDeleteNice blog
ReplyDeleteDhanyavaad Bhai
ReplyDeleteWelcome bro
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