बंद आँखों से "मैं" का जब पर्दा हटाया, कहने और करने में बड़ा फ़र्क पाया। सब समझने के वहम में जीता रहा "मैं", सच में समझ तो कुछ भी नहीं आया। रहा व्यस्त इतना सच्चाई की लाश ढोने में, कि जिंदा झूठ अपना समझ नहीं आया। कारण ढूँढता रहा हर सुख दुख में, अकारण मुझे कुछ नज़र नहीं आया। ढूँढता रहा सब जगह कुछ पाने की ललक से, जो मिला ही हुआ है वो ध्यान में ना आया। फँसता गया सब झंझटों में आसानी से, सरलता को कभी अपनाना नहीं चाहा। झूठ ही झूठ में उलझा हुआ पाया, आंखों से जब जब पर्दा हटाया। ~ #ShubhankarThinks
एक तू है और एक मैं हूँ इस रिश्ते में मेरे लिए तू ही सब कुछ होती है मेरी हर बात में सिर्फ तू होती है मगर अफ़सोस मैं कैसे जताऊं इस तू तू मैं मैं का हाल कैसे समझाऊ क्योंकि तेरे लिए मैं ज्यादा जरूरी है सारे जमाने से ज्यादा तेरे इस मैं में तेरा स्वार्थ छिपा है मेरे लिए तू में मेरा मैं छुपा है इसीलिए तू ,तू है आज भी और मैं तो आज भी मैं हूँ