कुछ बन जाने में एक चुनाव है, जिसके बाद इंसान कुछ और नहीं बन पाता, मगर कुछ ना बनने में, सब कुछ बन जाने की संभावना होती है। #ShubhankarThinks
प्रतिदिन की भांति आज भी शक्तिप्रसाद सुबह भोर में उठकर नहा धोकर गांव के बाहर वाले शिव मंदिर पर पूजा करने गए थे , अब उन्हें ये कहाँ पता था आज होनी को कुछ और मंजूर है ,जैसे ही घर वापस आये हर रोज की भांति उन्हें लगा मधुमति चूल्हे पर चाय वगरह बना रही होगी मगर आज दृश्य पूर्णतयः परिवर्तित था , बाहर बरामद एकदम शान्त था और आज कोई बर्तन की आवाज भी नहीं आ रही थी !
शक्तिप्रसाद अंदर घुसे तो देखा मधुमती खाट पर पड़ी पीड़ा से कराह रही थी , पूरा जीवन सबका ख्याल रखने में निकाल दिया कभी अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने का मौका ही नहीं मिला हाँ कभी तबियत खराब होती तो पास वाले गांव में एक वैध जी थे उनसे औषधि की पुड़िया ले आती और ठीक हो जाती, क्या पता ठीक होती थी या फिर दर्द सहने की आदत पड़ जाती थी ये तो वो ही जाने क्योंकि काम करने वाले व्यक्ति की छोटा मोटा दर्द महसूस कहाँ होता है !
मगर सच ये है कि ये छोटा सा दर्द शरीर में घुन की भांति लगता है जो धीरे धीरे पुरे शरीर की खोखला कर देता है और अंत में मिटटी का ढेर बना देता है !
अब मधुमती को इस अवस्था में देखकर शक्तिप्रसाद ने क्षण भर नहीं लगाया समझने में की कोई गंभीर समस्या है वो तुरंत पड़ौस के गाड़ी वाले को बुला लाये और गांव वालों के सुझाव पर शहर की ओर निकल गए !
साथ में सुधीर को फ़ोन करके पहले ही सारी स्थिति बता चुके थे वो पहले से हॉस्पिटल के बाहर तैयार खड़ा था !
अब डॉक्टर्स वगरह ने उन्हें सीधे आपातकाल कक्ष में भर्ती कराने का आदेश दे दिया !
सुधीर और शक्तिप्रसाद दोनों में से किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था आखिर अंदर चल क्या रहा है और शक्तिप्रसाद का तो एक एक क्षण योजन के जैसे गुजर रहा था ,जीवन के सारे उतार चढ़ाव दोनों ने साथ में देखे थे सुख हो चाहे दुःख कभी मतभेद तक नहीं हुआ था !काम काम बस काम यही तो किया सारे जीवन में ,खुद की देखभाल का कभी मौका ही नहीं मिला जब आराम की उम्र आयी तो बच्चे अपने परिवार के साथ दूर जाकर बस गए और बीमारी कौन सा आमंत्रण लेकर आती है ये तो बस या जाती है बिना देखे की इंसान अच्छा है या बुरा है !
अब एक डॉक्टर बाहर आया शायद कुछ उपकरण लेने आया होगा तुरंत सुधीर दौड़कर उसके पास गया और बोला "अब कैसी हालात है माँ की ?"
"अभी मरीज की हालत थोड़ी नाजुक है कुछ कह नहीं सकते "ये बात डॉक्टर ने दबे हुए स्वर में बोली शायद वो चाहता था शक्तिप्रसाद को सुनाई न पड़े अगर उन्होंने सुना तो घबरा जायेंगे मगर किसी ने ठीक कहा है "विद्यालय में सिर्फ किताब पढ़ना सिखाया जाता है मगर चेहरे के हाव भाव पढ़ना तजुर्बा सिखाता है जो किसी किताब पढ़ने से नहीं मिलता ये आता है एक उम्र ढलने के बाद "
सुधीर ने शक्तिप्रसाद को कुछ नहीं बताया शायद वो भी जानता था पिता जी ने सब समझ लिया है अब बताने जैसा कुछ है नहीं या फिर बोलने जितनी भी शक्ति शरीर में शेष नहीं थी , दोनों पैर कम्पन कर रहे थे मानो भूकंप से भू कांप रही हो , सर्दी के मौसम में भी दोनों कान ऐसे लाल पड़ गए थे जैसे भीषण गर्मी में कोई सुकुमार सूर्य की चपेट में आ जाता है , चेहरा श्वेत और हृदयगति इतनी तीव्र मानो सीना चीर कर बाहर निकल जायेगा !
खैर उसके परेशान होने से क्या होगा वो किसी ने ठीक कहा है
"मुद्दतें लाख चाहें तो क्या होगा वही होगा जो मंजूर ए खुदा होगा "
खैर जन्म मृत्यु पर किसका वश चला है खुद कृष्ण ,राम सबको मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद अंतिम समय में मृत्यु का सामना करना पड़ा था मधुमती तो फिर भी एक साधारण महिला थी वो कहते हैं ना "सबके जन्म मृत्यु का लेखा जोखा ऊपर से ब्रह्मा लिखकर भेजते हैं यहां तो सब अपनी अपनी दिनचर्या पूरी कर रहे होते हैं !"
ये सब बातें शक्तिप्रसाद के दिमाग में चल रहीं थीं तभी डॉक्टर एक तरफ दौड़कर में जाते हैं और कुछ देर पश्चात मुँह नीचे करके पहले वाला डॉक्टर सुधीर के पास आकर गर्दन हिलाकर बोलता है "मुझे माफ़ करना में आपकी मदद नहीं कर पाया "
सुधीर के नीचे से जमीन खिसक गई और शक्तिप्रसाद तो खड़े खड़े से मूर्छित होकर जमीन पर बैठ गए !आशंका सबको थी मगर विश्वास नहीं था मन में एक उम्मीद थी नहीं सब ठीक हो जायेगा मगर अब तो ये सब घटित हो चूका है उन दोनों को कौन विश्वास दिलाये की ये सब पत्थर की लकीर है जिसे कोई मिटा नहीं सकता !
मगर क्या करें मानव प्रवत्ति है मोह माया इतनी हो जाती है कि वर्षों गुजर जाते हैं मगर अपने नहीं भुलाये जाते वो जमाने अलग थे जब लोग तपस्या करके अपने प्रिय जनों को वापस मांग लेते थे भगवान् से मगर इस घोर कलयुग में तो वो भी संभव नहीं है !
गांव वापस आये सभी सगे संबंधी एकत्रित हुए और विधि विधान से सभी क्रियाक्रम किये गए ,सभी घर वाले खूब रोये सभी ने अपने दिल की टीस निकाल ली वो कहते हैं ना खूब रो लेने से मन हल्का हो जाता है मगर शक्ति प्रसाद वो भी ना कर सके वो एकदम शान्त रहते थे शायद इसलिए की अगर वो कमजोर पड़े तो बच्चे और भी ज्यादा परेशान होंगे , कोई उनसे बातचीत करता तो नपा तुला ही जवाब देते थे ,अकेले में बैठे घंटो गुजार देते थे किसी काम में उन्हें ख़ास दिलचस्पी नहीं थी !.....
आगे पढ़ें .........
Part 1
Part 2
Part 3
Part 4
Part 5
Part 6
Part 7
Part 8
Part 9
अपनी प्रतिक्रियायें मुझ तक पहुंचाते रहें !
©Confused Thoughts
शक्तिप्रसाद अंदर घुसे तो देखा मधुमती खाट पर पड़ी पीड़ा से कराह रही थी , पूरा जीवन सबका ख्याल रखने में निकाल दिया कभी अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने का मौका ही नहीं मिला हाँ कभी तबियत खराब होती तो पास वाले गांव में एक वैध जी थे उनसे औषधि की पुड़िया ले आती और ठीक हो जाती, क्या पता ठीक होती थी या फिर दर्द सहने की आदत पड़ जाती थी ये तो वो ही जाने क्योंकि काम करने वाले व्यक्ति की छोटा मोटा दर्द महसूस कहाँ होता है !
मगर सच ये है कि ये छोटा सा दर्द शरीर में घुन की भांति लगता है जो धीरे धीरे पुरे शरीर की खोखला कर देता है और अंत में मिटटी का ढेर बना देता है !
अब मधुमती को इस अवस्था में देखकर शक्तिप्रसाद ने क्षण भर नहीं लगाया समझने में की कोई गंभीर समस्या है वो तुरंत पड़ौस के गाड़ी वाले को बुला लाये और गांव वालों के सुझाव पर शहर की ओर निकल गए !
साथ में सुधीर को फ़ोन करके पहले ही सारी स्थिति बता चुके थे वो पहले से हॉस्पिटल के बाहर तैयार खड़ा था !
अब डॉक्टर्स वगरह ने उन्हें सीधे आपातकाल कक्ष में भर्ती कराने का आदेश दे दिया !
सुधीर और शक्तिप्रसाद दोनों में से किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था आखिर अंदर चल क्या रहा है और शक्तिप्रसाद का तो एक एक क्षण योजन के जैसे गुजर रहा था ,जीवन के सारे उतार चढ़ाव दोनों ने साथ में देखे थे सुख हो चाहे दुःख कभी मतभेद तक नहीं हुआ था !काम काम बस काम यही तो किया सारे जीवन में ,खुद की देखभाल का कभी मौका ही नहीं मिला जब आराम की उम्र आयी तो बच्चे अपने परिवार के साथ दूर जाकर बस गए और बीमारी कौन सा आमंत्रण लेकर आती है ये तो बस या जाती है बिना देखे की इंसान अच्छा है या बुरा है !
अब एक डॉक्टर बाहर आया शायद कुछ उपकरण लेने आया होगा तुरंत सुधीर दौड़कर उसके पास गया और बोला "अब कैसी हालात है माँ की ?"
"अभी मरीज की हालत थोड़ी नाजुक है कुछ कह नहीं सकते "ये बात डॉक्टर ने दबे हुए स्वर में बोली शायद वो चाहता था शक्तिप्रसाद को सुनाई न पड़े अगर उन्होंने सुना तो घबरा जायेंगे मगर किसी ने ठीक कहा है "विद्यालय में सिर्फ किताब पढ़ना सिखाया जाता है मगर चेहरे के हाव भाव पढ़ना तजुर्बा सिखाता है जो किसी किताब पढ़ने से नहीं मिलता ये आता है एक उम्र ढलने के बाद "
सुधीर ने शक्तिप्रसाद को कुछ नहीं बताया शायद वो भी जानता था पिता जी ने सब समझ लिया है अब बताने जैसा कुछ है नहीं या फिर बोलने जितनी भी शक्ति शरीर में शेष नहीं थी , दोनों पैर कम्पन कर रहे थे मानो भूकंप से भू कांप रही हो , सर्दी के मौसम में भी दोनों कान ऐसे लाल पड़ गए थे जैसे भीषण गर्मी में कोई सुकुमार सूर्य की चपेट में आ जाता है , चेहरा श्वेत और हृदयगति इतनी तीव्र मानो सीना चीर कर बाहर निकल जायेगा !
खैर उसके परेशान होने से क्या होगा वो किसी ने ठीक कहा है
"मुद्दतें लाख चाहें तो क्या होगा वही होगा जो मंजूर ए खुदा होगा "
खैर जन्म मृत्यु पर किसका वश चला है खुद कृष्ण ,राम सबको मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद अंतिम समय में मृत्यु का सामना करना पड़ा था मधुमती तो फिर भी एक साधारण महिला थी वो कहते हैं ना "सबके जन्म मृत्यु का लेखा जोखा ऊपर से ब्रह्मा लिखकर भेजते हैं यहां तो सब अपनी अपनी दिनचर्या पूरी कर रहे होते हैं !"
ये सब बातें शक्तिप्रसाद के दिमाग में चल रहीं थीं तभी डॉक्टर एक तरफ दौड़कर में जाते हैं और कुछ देर पश्चात मुँह नीचे करके पहले वाला डॉक्टर सुधीर के पास आकर गर्दन हिलाकर बोलता है "मुझे माफ़ करना में आपकी मदद नहीं कर पाया "
सुधीर के नीचे से जमीन खिसक गई और शक्तिप्रसाद तो खड़े खड़े से मूर्छित होकर जमीन पर बैठ गए !आशंका सबको थी मगर विश्वास नहीं था मन में एक उम्मीद थी नहीं सब ठीक हो जायेगा मगर अब तो ये सब घटित हो चूका है उन दोनों को कौन विश्वास दिलाये की ये सब पत्थर की लकीर है जिसे कोई मिटा नहीं सकता !
मगर क्या करें मानव प्रवत्ति है मोह माया इतनी हो जाती है कि वर्षों गुजर जाते हैं मगर अपने नहीं भुलाये जाते वो जमाने अलग थे जब लोग तपस्या करके अपने प्रिय जनों को वापस मांग लेते थे भगवान् से मगर इस घोर कलयुग में तो वो भी संभव नहीं है !
गांव वापस आये सभी सगे संबंधी एकत्रित हुए और विधि विधान से सभी क्रियाक्रम किये गए ,सभी घर वाले खूब रोये सभी ने अपने दिल की टीस निकाल ली वो कहते हैं ना खूब रो लेने से मन हल्का हो जाता है मगर शक्ति प्रसाद वो भी ना कर सके वो एकदम शान्त रहते थे शायद इसलिए की अगर वो कमजोर पड़े तो बच्चे और भी ज्यादा परेशान होंगे , कोई उनसे बातचीत करता तो नपा तुला ही जवाब देते थे ,अकेले में बैठे घंटो गुजार देते थे किसी काम में उन्हें ख़ास दिलचस्पी नहीं थी !.....
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Part 2
Part 3
Part 4
Part 5
Part 6
Part 7
Part 8
Part 9
अपनी प्रतिक्रियायें मुझ तक पहुंचाते रहें !
©Confused Thoughts
शुभांकर एक बात बताओ यार... एक तो कहानी इतनी लंबी जा रही फिर इतना इंटरेस्ट कैसे बना हुआ हैं अब तक...इंतज़ार रहेगा अगले भाग का..😊😊😊
ReplyDeleteये आपकी सकारात्मकता को दर्शाता है आप जैसे पाठक हमेशा मेरे लिए प्रेरणास्रोत बनते हैं
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद
हमेशा साथ रहेगा मेरा..👌
ReplyDeleteBhut dhanyavaad APKA
ReplyDeleteYeh kya kar diya aapne? Madhumati ko mritak bana diya? Khair kabhi kabhi kahani ko aage badhane aur dilchasp banane ke liye yeh karna padta hai. अब आगे क्या?
ReplyDeleteNAHI mam mene kuch Ni Kia ye first part SE hi clear tha SB mere mind m
ReplyDeleteBss age AB anti drishya ki taraf bdhegi
Pdhte rhiye
Mera prayas rhega acha end KRNE ka
I hope you haven't given up on writing the series. I know it gets disheartening. Lord knows, mai bhi aajkal usi दशा में हूँ अपनी Series को ले कर. लेकिन जिस चीज़ का ज़िम्मा उठाया है, वह पूरा करना चाहिए
ReplyDeleteActually I never give up
ReplyDeleteI don't care how hard situation is
Writing is my love , I never feel bore even I want to write more and more
Haan bss end hone ko h dekhte h 2-3 series lgengi ya usse jada
Very good. लगे रहो इसी तरह
ReplyDelete🙏🙏🙏
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