कभी कभी घिर जाते हैं हम गहरे किसी दलदल में, फँस जाते हैं जिंदगी के चक्के किसी कीचड़ में, तब जिंदगी चलती भी है तो रेंगकर, लगता है सब रुका हुआ सा। बेहोशी में लगता है सब सही है, पता नहीं रहता अपने होने का भी, तब बेहोशी हमें पता नहीं लगने देती कि होश पूरा जा चुका है। ठीक भी है बेहोशी ना हो तो पता कैसे लगाइएगा की होश में रहना क्या होता है, विपरीत से ही दूसरे विपरीत को प्रकाश मिलता है अन्यथा महत्व क्या रह जायेगा किसी भी बात का फिर तो सही भी ना रहेगा गलत भी ना रहेगा सब शून्य रहेगा। बेहोशी भी रूकती नहीं हमेशा के लिए कभी आते हैं ऐसे क्षण भी जब एक दम से यूटूर्न मार जाती है आपकी नियति, आपको लगता है जैसे आँधी आयी कोई और उसने सब साफ कर दिया, बेहोशी गिर गयी धड़ाम से जमीन पर, आपसे अलग होकर। अभी आप देख पा रहे हो बाहर की चीजें साफ साफ, आपको दिख रहा है कि बेहोशी में जो कुछ चल रहा था वो मेरे भीतर कभी नही चला। जो भी था सब बाहर की बात थी, मैं तो बस भूल गया था खुद को बेहोशी में, ध्यान ना रहा था कि सब जो चल रहा था कोई स्वप्न था। खैर जो भी था सही था, जैसी प्रभु की इच्छा, जब मन किया ध्यान में डुबो दिया जब मन कि
*कल्पना कविता का अभिप्राय उस अनुपमा कन्या की छवि से है जो किसी नवयुवक के स्वप्नों में निर्मित हुई है
तुम्हारे बारे में क्या कहूं
शायद तुम कोई सौन्दर्य रस की कविता हो ,
जिसमें समस्त उपमायें सम्मिलित हैं !
नहीं तुम उन सभी दीपों का प्रकाश हो ,
जो मेरे ह्रदय रूपी आंगन में प्रज्वल्लित हैं !
या फिर तुम लेखनी हो किसी प्रेम ग्रन्थ की ,
जो पूर्णतयः हस्तलिखित है !
तुम जरूर पुष्पमाला हो उस प्रेम मन्दिर की,
जिससे समस्त स्थल सुसज्जित है!
तुम कोकिला हो उस उद्यान की,
जो तुम्हारे मधुर स्वरों से कलरवित है !
हां तुम अभिमान हो किसी तुच्छ मनुज का ,
जिसके ह्रदय में तुम्हारी मूर्ति प्रतिष्ठित है!
अब सत्य कहूं या मिथ्य कहूं !
तुम हो भी या नहीं भी ?
या फिर यह सब कल्पित है !
©Confused Thoughts
तुम्हारे बारे में क्या कहूं
शायद तुम कोई सौन्दर्य रस की कविता हो ,
जिसमें समस्त उपमायें सम्मिलित हैं !
नहीं तुम उन सभी दीपों का प्रकाश हो ,
जो मेरे ह्रदय रूपी आंगन में प्रज्वल्लित हैं !
या फिर तुम लेखनी हो किसी प्रेम ग्रन्थ की ,
जो पूर्णतयः हस्तलिखित है !
तुम जरूर पुष्पमाला हो उस प्रेम मन्दिर की,
जिससे समस्त स्थल सुसज्जित है!
तुम कोकिला हो उस उद्यान की,
जो तुम्हारे मधुर स्वरों से कलरवित है !
हां तुम अभिमान हो किसी तुच्छ मनुज का ,
जिसके ह्रदय में तुम्हारी मूर्ति प्रतिष्ठित है!
अब सत्य कहूं या मिथ्य कहूं !
तुम हो भी या नहीं भी ?
या फिर यह सब कल्पित है !
©Confused Thoughts
बहुत बहुत बहुत खूबसूरत रचना...👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मैम !
ReplyDeleteवाह भाई बहुत खूबसूरत लिखा है, मजा आ गया सही में। हिंदी बहुत अच्छी है आपकी।
ReplyDeleteये पंक्ति पढ़ कर तो सही में वाह निकली
"या फिर तुम लेखनी हो किसी प्रेम ग्रन्थ की ,
जो पूर्णतयः हस्तलिखित है "
बहुत खूब, लिखते रहिए…:)
Dhanyavaad bhai 🙇🙇🙇
ReplyDeleteतुम जरूर पुष्पमाला हो उस प्रेम मन्दिर की.....👌
ReplyDelete🙏🙏🙏
ReplyDeleteUhhuuun....Sirf smile.....:)
ReplyDeleteHnn shabd nhi Hai mere paas
ReplyDelete....मौन में सब है
ReplyDeleteनहीं वो कल्पना सिर्फ एक कल्पना ही थी वरना प्रेम मेरा प्रिय विषय नहीं है !
ReplyDeleteमैं इस बारे में कुछ खास अच्छा नहीं लिख पाता!
हाँ शब्द नही है मेरे पास....इसलिए मैंने कहा मौन में सब है....हाँ मैं समझ गई वो सिर्फ एक कल्पना है...:)
ReplyDeleteइतना अच्छे से समझने के लिए फिर से धन्यवाद आपका 😀😀
ReplyDelete😁😀
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