प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
ख्वाबों में आकर दुनिया सजाती थी
फिर मुझे रिझाने का क्यों जतन था तेरा?
जाने क्या पागलपन था मुझको
दिल पर पत्थर रखकर कोशिशें करता था
शायद तेरे तेवर बदलने की उम्मीद थी मुझे
तभी मैं खुद की बनाई बंदिशें खुद ही चूर करता था !
एक तरफ दिल की जिद्द थी तुझे हर हाल में मनाने की
दूसरी तरफ उस घायल मन की पुकार थी
तुझे हमेशा के लिए भूल जाने की
तूने भी खूब छकाया अपनी बेरुखी दिखाकर
तुझे कहीं ना कहीं लगा की
ये तो इसकी आदत है गिड़गिड़ाने की !
आखिर मन के आगे दिल हार गया
ख्वाब उसका चकनाचूर हुआ
एक ना चलने दी मन ने उसकी
फिर वो ख्वाब आँखों से दूर हुआ
स्वाभिमान भी जरूरी होता है
बस यही सोचकर मैं तुझसे दूर हुआ
पीछे मुड़कर देखना फितरत में नहीं मेरे
बस यही सोचकर तुझे कभी ना देखने का कठोर फैसला
मेरे दिल की अदालत में मंजूर हुआ !

@CONFUSED THOUGHTS
मुझे पता था वो सब वहम था मेरा
मगर तू भी मुझे कुछ कम नहीं उकसाती थी
खैर मैंने अब तुझे भुला दिया
तेरा नाम पता सब मिटा दिया
आखिर स्वाभिमान भी अहम था मेरा !
कोशिश तो की थी मैंने भी भरपूर मगर
हर बार उसे नाकाम बनाना रहम था तेरा
क्या पता मैं ही गलत था ?
क्या पता मेरा सब कुछ एकतरफा था ?
अगर ये सब सच है तो
फिर मुझे रिझाने का क्यों जतन था तेरा?
जाने क्या पागलपन था मुझको
दिल पर पत्थर रखकर कोशिशें करता था
शायद तेरे तेवर बदलने की उम्मीद थी मुझे
तभी मैं खुद की बनाई बंदिशें खुद ही चूर करता था !
एक तरफ दिल की जिद्द थी तुझे हर हाल में मनाने की
दूसरी तरफ उस घायल मन की पुकार थी
तुझे हमेशा के लिए भूल जाने की
तूने भी खूब छकाया अपनी बेरुखी दिखाकर
तुझे कहीं ना कहीं लगा की
ये तो इसकी आदत है गिड़गिड़ाने की !
आखिर मन के आगे दिल हार गया
ख्वाब उसका चकनाचूर हुआ
एक ना चलने दी मन ने उसकी
फिर वो ख्वाब आँखों से दूर हुआ
स्वाभिमान भी जरूरी होता है
बस यही सोचकर मैं तुझसे दूर हुआ
पीछे मुड़कर देखना फितरत में नहीं मेरे
बस यही सोचकर तुझे कभी ना देखने का कठोर फैसला
मेरे दिल की अदालत में मंजूर हुआ !
@CONFUSED THOUGHTS
कोई इतना ignore करे तो उन्हे उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए। स्वाभिमान बहुत ज़रूरी होता है। हां अपनों के लिए स्वाभिमान को दबाया जा सकता है। पर जो अपना हुआ ही नहीं उसके लिए नहीं.
ReplyDeleteखूबसूरत
ReplyDeleteHaan bilkul Sahi baat hai !
ReplyDeleteYe kbi kbi hota h kuch logon k sath
Thanks for reading
Dhanyavaad bhai
ReplyDeleteYou're most welcome :)
ReplyDelete🙏🙏
ReplyDeleteNICELY WRITTEN, https://samisportsupdatesindia31.wordpress.com/
ReplyDeleteक्या बात हैं यार.. हर बार पहले से बेहतर..👌
ReplyDeleteThanks
ReplyDeletethanks bhai
ReplyDeleteits true fact ...........awesom
ReplyDeleteThank you so much
ReplyDeleteShivangi ☺☺