प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
आप कृपया कमरा खाली कर दीजिए ,मुझे सफाई.करनी. है " ये भावुक आवाज थी हास्पिटल के सफाई कर्मी की.,.उसने ये बात बहुत संकोचवश बोली थी मानो अन्दर से हृदय उसे ये करने के लिये मना कर रहा हो वो कहते हैं ना "गन्दा है मगर धंधा है "! सभी को बाहर निकलवाना मजबूरी है उसकी वरना अपनों को ऐसी स्थिति में एक पल भी दूर करने का दर्द उसे अच्छे से पता है !
खैर सुधीर बाहर टहलने चला गया और कम्पाउंडर कमरे में चादर बदलने के लिये घुसा और उसने शक्तिप्रसाद को भी उठा दिया , उन्होंने ऑंखें तो खोल ली मगर उठकर बैठने जितनी हिम्मत अब नहीं थी , अब मुश्किल थी उन्हें बैठाने की पूरे ९० किलो के भारी शरीर को दुबला सा अकेला आदमी कहाँ उठा पाता मानो एक दिन की मजदूरी करने वाले श्रमिक को एक साथ ३-४ दिन का काम दे दिया हो बेचारा विफल होकर सुधीर को आवाज दे देता है "साहब बाबा जी को उठाने में मदद कर दो इनकी चादर बदलवानी है " सुनकर सुधीर अंदर कमरे में प्रवेश करता है और दोनों लोग मिलके उठा देते हैं अब बेचारे शक्ति प्रसाद भी क्या करें "उनकी गिनती ना जिंदों में है ना मरों में "
एक वक्त हुआ करता था ९०-१०० किलो ग्राम वर्ग के पहलवान को धोबी पछाड़ मारने में छन नहीं लगाते थे (धोबी पाट कुश्ती की एक तकनीक होती है जिसमे एक पहलवान सामने वाले को कपडे की भांति उठाकर जमीन पर पटखनी देता है )
आज उस पहलवान की स्थिति इतनी खराब है कि उसे उठाने के लिए दो लोग चाहिये ! जैसे नवजात शिशु पिछले जन्म की घटनाएं याद करके कभी रोता है कभी हँसता है ठीक वैसी स्थिति बुढ़ापे में हो जाती है जब वो इंसान बेहोशी की हालत में पड़ा रहता है , ठीक उसी शिशु की भांति शक्तिप्रसाद भी अतीत में डूबे रहते थे , उन्हें वो बात आज भी याद थी जब सुधीर अपने पत्नी बच्चों सहित शहर जा रहा था और सुधीर की इतनी हिम्मत नहीं हो रही थी कि एक बार पिता को बता दे , ऐसा नहीं है कि पिता को पता नहीं था उनके जाने के बारे में मधुमती सब पहले ही बता चुकी थी !
और आज तो मधुमती का बुरा हाल था एक तरफ छुप छुप कर रो रही थी वही दूसरी तरफ कभी बच्चों को पुचकारती तो कभी बहु को सारे त्यौहार की विधि समझाती और कभी समझाते समझाते रो पड़ती ! बहु क्या कम रो रही थी वो पिछले दो दिन से लगतार अकेले में रो रही थी आँखें लाल पड़ गयी थी उसकी मगर शहर जाना मजबूरी थी क्योंकि सुधीर को अब शाम हो जाती थी ऑफिस में और बच्चे अब बड़े हो चले थे तो उनके ट्यूशन के लिये गांव में तो कोई इतना अच्छा अध्यापक अभी तक था नहीं और २-२ बार बच्चे शहर जाएँ ऐसा हो नहीं सकता था ! अब ऐसे में बेचारी मधुमती की स्थिति उस बाढ़ पीड़ित ग्रामीण के जैसी थी जो उफनती हुई नदी को यह भी नहीं बोल सकता "वापस लौट जाओ ये ये मेरा गांव है भगवान के लिए अब आगे मत बढो अगर तुम बढ़ी तो मेरा घर बार सब उजड जायेगा "
ऐसा नहीं है दुःख सुधीर को ना हो मगर उसने अपने आँसु आँखों के एक छोटे से कोने में ऐसे रखे हुए थे जैसे रेंत में चांदी मिली रहती है जो सूक्ष्म नजरों से देखी जा सकती है !और वो भी क्या करे उसने तो बोला था माँ बाप से की आप भी साथ में चलना मगर जिस इंसान ने ७० साल एक गांव में निकाल दिए वो अब चन्द वर्षों के लिए अपना गांव छोड़कर क्यों जाने लगे !गांव के बुजुर्गों का कहना है कि धन कमाना बहुत आसान काम है मगर इज्जत कमाने में पूरी उम्र निकल जाती है , वही इज्जत शक्तिप्रसाद ने भी कमायी थी उसे छोड़कर वो अंजान शहर क्यों जाने लगे !
खैर छोडो इन सब बातों में रखा भी क्या है सारी तैयारी तो अब हो चुकी हैं बस सुधीर को विदा लेनी थी , माँ तो बेचारी दरवाजे पर खड़ी थी ,बस शक्तिप्रसाद का इंतेजार था ! सुधीर को समझ नहीं आ रहा था कैसे बोलूंगा जाने के लिए पिछले १५ वर्ष से रोज उसी शहर में जाता था बिना किसी की अनुमति लिए मगर जाने क्यों आज उसके कदम लड़खड़ा रहे थे !
शक्तिप्रसाद वैसे तो सख्त स्वाभाव के थे ,कितनी भी विषम परिस्थिति रहीं हो कभी विचलित नहीं हुए , मगर आज पोते_पोती से लगाव कहें या पुत्रमोह आज गांव के बाहर वाले महादेव मंदिर पर ये पत्थर सा कालेज पसीज गया और अश्रुधारा झरने के समान उस पत्थर को काटकर निकली और फिर आंसू पोंछकर घर की ओर वापस आ गये और फिर से घर के दरवाजे पर ऐसे खड़े हो गए मानो कोई पहलवान कुश्ती में जाने के लिए तैयार खड़ा हो, तब तक सुधीर बच्चों को गाड़ी में बैठा चुका था
"राम राम पिता जी ..............." बडा ढांढस बांधकर सिर्फ ये चार शब्द बोल पाया अब भावनाओं पर कौन काबू कर सकता है ,बोलते बोलते उसका गला रुंध गया और आँखों से आंसू भी छलक गये मगर उसने तेजी से मुंह गाडी की तरफ मोड़ा और बैठ गया ! गाडी आगे बढ़ गयी और मधुमती का ज्वालामुखी एक साथ फुट पड़ा मानो अब तक वो चरम पर था शक्तिप्रसाद ने बिना कुछ बोले मधुमती के कंधे पर हाथ रखकर अंदर चले गए जैसे हारे हुए पहलवान के कंधे पर उसका गुरु हाथ रखमर सांत्वना देता है ! ऐसा नहीं है उसका समझाने का मन नहीं था मगर स्थिति कहाँ थी ऐसी की वो कुछ भी बोल पाये , जैसे तैसे वो आंसू रोके हुआ था !
वरना मधुमती का दुःख उसे भी अच्छे से पता था , उसे खूब अहसास था कि उसकी स्थिति ऐसी है जैसे बसंत के महीने में उनके बाग़ से कलरव कहीं गुम हो गया हो !जैसे बड़े होने पर चिड़िया के बच्चे घोसला छोड़कर उड़ जाते हैं वैसा ही मधुमती के साथ हुआ है .............
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सबसे पहले मैं क्षमा चाहूँगा देरी के लिये , ऐसा नहीं है ये जानबूझकर हुआ है जबसे क्लासेज स्टार्ट हुई है समय नहीं मिल पाता , लैब में बैठकर कॉपी पर ये लिखी थी छिप कर 😁!
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Part 9
👍👍👍👍👌👌👌👌👌
ReplyDeleteThank you bro
ReplyDeletenice :)
ReplyDeleteI hope you have read all previous parts !
ReplyDeleteThank you for reading my small effort
yea, i try to read as much posts as i can :)
ReplyDeleteGood ! I was just asking because it is 5th part so I thought you have already read 1,2,3,4 😂😂
ReplyDeleteBytheway
Keep writing and reading
🙏🙏
thank you for your wishes :)
ReplyDelete🙏🙏🙏
ReplyDelete🙇🙇🙇🙇 शाष्टांग दण्डवत् प्रणाम! बहुत अच्छी शैली है आपके लेखन की...😊👍
ReplyDeleteAp aisa kren usse phle ISS mudra m Mai a jaunga ! 😁😁
ReplyDelete🙏🙏🙏
Bhut bhut dhanyavaad apka
Apne meri Choti si rachna par drashti dali
😊😊😊 अरे! छोटी सी रचना थी ये...तो बड़ी कितने भाग में जायेगी... और ये गलत बात पढ़ाई के वक़्त उस पर ध्यान दिया कीजिये आप😎😎😎
ReplyDeletePta ni story bol rhi h aur m story k sath anyay to ni kr skta
ReplyDelete😁😁Nahi lecture m NAHI lab m likhi thi jb 135 minute ki lab hogi to itni der Kon pdhai krega
Bss log USS tym phone m lgte h mene ye likh li 😉
Actually paper p to likh lo mgr sbse Jada typing m time waste hota h Jo aj complete hua
अरे! बहुत खूब लिखतें हैं आप...ऐसे ही लिखते रहे हमें इंतज़ार रहता हैं आपके पोस्ट का😊😊😊
ReplyDeleteItni kad se Adhik tareef k liye phirr SE dhanyavaad !
ReplyDeleteHaan jrur shayad age week tk next part a jayega
Koshish krunga apko pasand aye 🙏🙏🙏
इंतज़ार रहेगा...😊😊😊👍👍👍
ReplyDeleteNice Blog!!!
ReplyDeleteCheck out my blog also to see the magic of letters.
Hope you will like it.:)
Another beautiful installment. Shaktiprasad and Sudhir's equation has been brilliantly eked out. ऐसे ही hotein हैं बेटा और पिता। now moving to the next part 😊
ReplyDelete🙏
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