कभी कभी घिर जाते हैं हम गहरे किसी दलदल में, फँस जाते हैं जिंदगी के चक्के किसी कीचड़ में, तब जिंदगी चलती भी है तो रेंगकर, लगता है सब रुका हुआ सा। बेहोशी में लगता है सब सही है, पता नहीं रहता अपने होने का भी, तब बेहोशी हमें पता नहीं लगने देती कि होश पूरा जा चुका है। ठीक भी है बेहोशी ना हो तो पता कैसे लगाइएगा की होश में रहना क्या होता है, विपरीत से ही दूसरे विपरीत को प्रकाश मिलता है अन्यथा महत्व क्या रह जायेगा किसी भी बात का फिर तो सही भी ना रहेगा गलत भी ना रहेगा सब शून्य रहेगा। बेहोशी भी रूकती नहीं हमेशा के लिए कभी आते हैं ऐसे क्षण भी जब एक दम से यूटूर्न मार जाती है आपकी नियति, आपको लगता है जैसे आँधी आयी कोई और उसने सब साफ कर दिया, बेहोशी गिर गयी धड़ाम से जमीन पर, आपसे अलग होकर। अभी आप देख पा रहे हो बाहर की चीजें साफ साफ, आपको दिख रहा है कि बेहोशी में जो कुछ चल रहा था वो मेरे भीतर कभी नही चला। जो भी था सब बाहर की बात थी, मैं तो बस भूल गया था खुद को बेहोशी में, ध्यान ना रहा था कि सब जो चल रहा था कोई स्वप्न था। खैर जो भी था सही था, जैसी प्रभु की इच्छा, जब मन किया ध्यान में डुबो दिया जब मन कि
खुदगर्जी का आलम फिर इस कदर छाया
एक भाई ने दूसरे भाई का हिस्सा खाया
अब खौफ फैल चुका था पूरे वतन में
अब जिन्दगानियों पर रहता था संगीन का साया!
रंगएचमन की खुशबू कहीं काफूर हो गयी
इन्सानियत की तस्वीरें अब
अपने ही घर पर चकनाचूर हो गयी
कौमें भी अपने अलग नशे में चूर हो गयीं
रंगएचमन की खुशबू कहीं काफूर हो गयी
बाज के पांव अब सटीक लगे हैं
नजरएबाद का साये में
काले बादल अब जहां पर छाने लगे हैं
नासमझों की बातें बेवकूफाना होती हैं
मगर तजुर्बेकार भी साजिशों में लगे हैं!
शरमओहया सब दांव पर लगी फिर
इज्जत की बोली बाजारों में लगी फिर
अबलाओं की इज्जत भी
भरे बाजारों में लुटी फिर !!
इन्सान की हैवानियत का किस्सा
आपको क्या सुनाऊं साहब!
दरिंदगी की इंतेहां अब क्या बताऊं साहब
जब इन्सानियत का हर रोज खून हो
किस्से बुजदिली के क्या छुपाऊं साहब!
जब आदमी की कौम अब जानवर बन चुकी है
तो फख्र आदमी होने का क्या जताऊं साहब!
औरत की आबरू खेल बनी फिर
लोगों की वहां भीड लगी फिर
मर्द बहुत थे मौकाएवारदात पर
मुठ्टी भर दरिंदे लगाये थे बेचारी को घात पर
मर्दानगी पर जंग लगी फिर !
मुहल्ले की फिजायें अब बिगड गयीं हैं
हवायें भी रूख से पलट गयी हैं
रंगएचमन की हरी भरी बगिया
बाज की चाल से उजड गयी हैं
हिन्द अभी जिन्दा है दुनिया में
मगर तहजीबें अब उखड सी गयी हैं !
©Confused Thoughts
(जैसा कि मैंने अपनी पिछली कविता में लिखा था कि अगला भाग आपकी राय के बाद प्रकाशित होगा मगर भूलवश मुझे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी मगर फिर भी मुझे आज इसका अगला भाग लिखना पडा क्योंकि विचारों के वेगों को कोई शक्ति रोक नहीं सकती मैं तो फिर भी तुच्छ सा प्राणी हूं !)
एक भाई ने दूसरे भाई का हिस्सा खाया
अब खौफ फैल चुका था पूरे वतन में
अब जिन्दगानियों पर रहता था संगीन का साया!
रंगएचमन की खुशबू कहीं काफूर हो गयी
इन्सानियत की तस्वीरें अब
अपने ही घर पर चकनाचूर हो गयी
कौमें भी अपने अलग नशे में चूर हो गयीं
रंगएचमन की खुशबू कहीं काफूर हो गयी
बाज के पांव अब सटीक लगे हैं
नजरएबाद का साये में
काले बादल अब जहां पर छाने लगे हैं
नासमझों की बातें बेवकूफाना होती हैं
मगर तजुर्बेकार भी साजिशों में लगे हैं!
शरमओहया सब दांव पर लगी फिर
इज्जत की बोली बाजारों में लगी फिर
अबलाओं की इज्जत भी
भरे बाजारों में लुटी फिर !!
इन्सान की हैवानियत का किस्सा
आपको क्या सुनाऊं साहब!
दरिंदगी की इंतेहां अब क्या बताऊं साहब
जब इन्सानियत का हर रोज खून हो
किस्से बुजदिली के क्या छुपाऊं साहब!
जब आदमी की कौम अब जानवर बन चुकी है
तो फख्र आदमी होने का क्या जताऊं साहब!
औरत की आबरू खेल बनी फिर
लोगों की वहां भीड लगी फिर
मर्द बहुत थे मौकाएवारदात पर
मुठ्टी भर दरिंदे लगाये थे बेचारी को घात पर
मर्दानगी पर जंग लगी फिर !
मुहल्ले की फिजायें अब बिगड गयीं हैं
हवायें भी रूख से पलट गयी हैं
रंगएचमन की हरी भरी बगिया
बाज की चाल से उजड गयी हैं
हिन्द अभी जिन्दा है दुनिया में
मगर तहजीबें अब उखड सी गयी हैं !
©Confused Thoughts
(जैसा कि मैंने अपनी पिछली कविता में लिखा था कि अगला भाग आपकी राय के बाद प्रकाशित होगा मगर भूलवश मुझे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी मगर फिर भी मुझे आज इसका अगला भाग लिखना पडा क्योंकि विचारों के वेगों को कोई शक्ति रोक नहीं सकती मैं तो फिर भी तुच्छ सा प्राणी हूं !)
बहुत अच्छे
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मैम
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