कभी कभी घिर जाते हैं हम गहरे किसी दलदल में, फँस जाते हैं जिंदगी के चक्के किसी कीचड़ में, तब जिंदगी चलती भी है तो रेंगकर, लगता है सब रुका हुआ सा। बेहोशी में लगता है सब सही है, पता नहीं रहता अपने होने का भी, तब बेहोशी हमें पता नहीं लगने देती कि होश पूरा जा चुका है। ठीक भी है बेहोशी ना हो तो पता कैसे लगाइएगा की होश में रहना क्या होता है, विपरीत से ही दूसरे विपरीत को प्रकाश मिलता है अन्यथा महत्व क्या रह जायेगा किसी भी बात का फिर तो सही भी ना रहेगा गलत भी ना रहेगा सब शून्य रहेगा। बेहोशी भी रूकती नहीं हमेशा के लिए कभी आते हैं ऐसे क्षण भी जब एक दम से यूटूर्न मार जाती है आपकी नियति, आपको लगता है जैसे आँधी आयी कोई और उसने सब साफ कर दिया, बेहोशी गिर गयी धड़ाम से जमीन पर, आपसे अलग होकर। अभी आप देख पा रहे हो बाहर की चीजें साफ साफ, आपको दिख रहा है कि बेहोशी में जो कुछ चल रहा था वो मेरे भीतर कभी नही चला। जो भी था सब बाहर की बात थी, मैं तो बस भूल गया था खुद को बेहोशी में, ध्यान ना रहा था कि सब जो चल रहा था कोई स्वप्न था। खैर जो भी था सही था, जैसी प्रभु की इच्छा, जब मन किया ध्यान में डुबो दिया जब मन कि
"ट्रिंग.... ट्रिंग......." - इतने भीषण सन्नाटे को चीरते हुए फोन की रिंग ने पूरे कमरे में कोलाहल कर दिया। रात के १२ बजे थे, ये ध्वनि थी सुधीर के फोन की, जिसने पल भर में सुधीर को वर्षों के अतीत से निकालकर वर्तमान समय में एक छोटे कमरे में लाकर पटक दिया!
सुधीर ने पहले इधर - उधर देखा, फिर बायें जेब में हाथ ड़ाला मगर फोन दायें जेब में था, फोन निकाला और कान से लगाया!
"सॉरी भैया! मैं एक इम्पोर्टेन्ट मीटिंग में था। अभी - अभी वापस घर पहुंचा हूं -......" - ये आवाज थी अजीत की!
"हां कोई बात नहीं! सुनो, वो, पिताजी की तबियत बहुत ज्यादा खराब है। हॉस्पिटल में भर्ती है और सुबह से तुम दोनों को याद किये जा रहे हैं"-
सुधीर ने अजीत को बीच में ही रोकते हुए ये बात कही।
"मगर भैया! आप तो जानते हैं यहां से आने और जाने में पूरा दिन लग जाता है। अगर मैं आने की कोशिश भी करूंगा तो आप जानते ही हैं प्राइवेट जाब्स में देर नहीं लगाते नौकरी से निकालने में। ऊपर से श्वेता और निक्कू को अकेला रहना पड़ जायेगा। उनका ख्याल कौन रखेगा इस अंजान शहर में!" - अजीत बड़ी परेशानी दर्शाते हुए बोला।
"ठीक है!" बोलते हुए सुधीर ने ऐसे फोन काट दिया मानो असंख्य प्रश्नों का उत्तर अजीत ने एक बात में दे दिया हो और अब कोई प्रश्न सुधीर के पास बचा ही ना हो।
तभी सोचा अब विनोद से भी पूछ लिया जाये वो भी घर पहुंच गया होगा।
नम्बर डायल किया-
"नमस्कार भैया, कैसे हैं आप?" - उधर से बड़े मीठे स्वर में आवाज आयी, मानो किसी ने मिश्री का घोल बातों में डुबा दिया हो या फिर बात ही मिश्री में डुबा कर बोली हो, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
"मैं अच्छा हूं, मगर पिता जी की तबियत आजकल बहुत ज्यादा खराब रहती है और आज तो ठीक से बोल भी नहीं पा रहे हैं" - बोलते - बोलते गला रूंध गया सुधीर का। आखिर वो किसको अपना दर्द बताता।
"भैया, घबराइये मत! वो ठीक हो जायेंगे" - विनोद ढ़ांढ़स बंधाने के उद्देश्य से बोला।
"हां, मगर वो तुम दोनों को देखना चाह रहे हैं। तुम आ सको तो आ जाओ थोड़ा वक्त निकालकर" -
सुधीर ने बिना उम्मीद के ये बात बोली।
"भैया! मन तो मेरा कर रहा है अभी उड़ कर वहां आ जाऊं। यहां तक कि मुझे नींद भी नहीं आयेगी ये जानकर। काश ये सच हो पाता मगर आपको तो पता है......." - विनोद ने फिर से मिश्री लगाकर ये बात कही। वो कहते हैं ना झूठे अमृत से अच्छा विष भरा सच पी लेना चाहिए। वही सुधीर ने किया।
"ठीक है!" बोलते हुए फोन काट दिया और विनोद को अपनी बात पूरी भी नहीं करने दी।
जीवन में कभी उदास नहीं हुआ था सुधीर! चाहे कितने भी कष्ट आये जीवन में, मगर आज कष्ट का प्रकार ही अलग है और ना चाहते हुए भी आंसू, पहाड़ से, दरवाजे से, सभी अवरोधों और पत्थरों को बहाकर बाहर तक आ गये और ये धारा इतनी तेज थी मानो समूचे गॉंव को पल भर में बहाने के इरादे से निकली हो!
सुधीर भी कहां हार मानने वाला था। उसने विशाल बांध लगाकर अगले ही पल समूची धारा को ऐसे सोख लिया मानो समुद्र में किसी ने एक लोटा जल ड़ाला हो। अब आप बताओ, उस एक लोटा जल से कहां बाढ़ आयेगी?
तभी उसने देखा शक्तिप्रसाद हलचल - सी कर रहे हैं, वो दौड़कर गया और बोला आप कोशिश मत करिये। मुझे आवाज दे दिया करो।
"पानी" - सिर्फ इतना ही बोल पाये शक्तिप्रसाद।
अब आप खुद बताओ बब्बर शेर अगर बूढ़ा हो जाये तो क्या वो अब शेर नहीं कहलायेगा। हां इतना जरूर है शिकार करने की ताकत अब उसमें नहीं रहेगी, मगर हौसले अभी भी दूर तक दहाड़ मारने का रखेगा। अब शक्ति प्रसाद भी बूढ़े शेर की भांति कोशिश करते। मानो अभी उठ बैठेंगे, मगर शरीर रूपी अवरोध उन्हें सफल कहॉं होने दे रहा था?
"लीजिए" - सुधीर इतने में पानी ले आया और बोला!
पानी पीने के बाद फिर से आंखें बन्द कर लीं।
सुधीर कुछ पूछना चाहता था, कुछ बोलना चाहता था, मगर तब तक आंखें बन्द हो चुकी थीं। मानो सायंकाल के बाद मन्दिर के कपाट बन्द कर दिये हों और कोई भक्त काफी समय पंक्ति में लगे रहने के बाद भी दर्शन से वंचित रह गया हो।
मगर कर भी क्या सकता था वो जानबूझकर तो ऐसा नहीं कर रहे थे। मगर मन पर किसका वश चला है! एक टीस तो उसे रह जाती कि काश ये थोड़ी बात कर सकें।
वैसे कभी बाप - बेटों की बातें काम से ज्यादा नहीं होती थीं, मगर शक्तिप्रसाद काफी दिनों से बोले नहीं थे, तो सुधीर उन्हें सुनने के लिए व्याकुल था।
सुधीर कमरे से बाहर तेजी से गया और इस बार ना जाने कैसे उस एक लोटा जल ने विशाल सागर में प्रलय - सी ला दी! मानो कोई बड़ा समुद्री तूफान आ गया हो और आज समूचे प्रदेश को बहा ले जायेगा।
और कुछ पल के लिए बिजली के समान गर्जना करते हुए आवाज सुधीर के हृदय से गले तक आयी मगर उसने धरती की भांति उसको ढ़कते हुए भूकम्प के कम्पन में बदल दिया। जैसे कोई बड़ा हादसा टाल दिया हो।
और अगले ही पल महर्षी अगस्त्य के समान समूचे सागर को आंखों के एक कोने में समेट दिया और अश्रु पोंछते हुए वापस आकर बैठ गया।
थोड़ी देर शांत बैठने के बाद फिर से अतीत का चित्रण सिनेमा की भांति आंखों के सामने चलने लगा और इस बार चित्रण थोड़ा आगे निकल चुका था। मानो जितने समय सुधीर व्यस्त हुआ उस वक्त का सारा अध्याय निकलकर आगे पहुंच गया हो!
।।
Part 1
Part 2
Part 3
Part 4
Part 5
Part 6
Part 7
Part 8
Part 9
सुधीर ने पहले इधर - उधर देखा, फिर बायें जेब में हाथ ड़ाला मगर फोन दायें जेब में था, फोन निकाला और कान से लगाया!
"सॉरी भैया! मैं एक इम्पोर्टेन्ट मीटिंग में था। अभी - अभी वापस घर पहुंचा हूं -......" - ये आवाज थी अजीत की!
"हां कोई बात नहीं! सुनो, वो, पिताजी की तबियत बहुत ज्यादा खराब है। हॉस्पिटल में भर्ती है और सुबह से तुम दोनों को याद किये जा रहे हैं"-
सुधीर ने अजीत को बीच में ही रोकते हुए ये बात कही।
"मगर भैया! आप तो जानते हैं यहां से आने और जाने में पूरा दिन लग जाता है। अगर मैं आने की कोशिश भी करूंगा तो आप जानते ही हैं प्राइवेट जाब्स में देर नहीं लगाते नौकरी से निकालने में। ऊपर से श्वेता और निक्कू को अकेला रहना पड़ जायेगा। उनका ख्याल कौन रखेगा इस अंजान शहर में!" - अजीत बड़ी परेशानी दर्शाते हुए बोला।
"ठीक है!" बोलते हुए सुधीर ने ऐसे फोन काट दिया मानो असंख्य प्रश्नों का उत्तर अजीत ने एक बात में दे दिया हो और अब कोई प्रश्न सुधीर के पास बचा ही ना हो।
तभी सोचा अब विनोद से भी पूछ लिया जाये वो भी घर पहुंच गया होगा।
नम्बर डायल किया-
"नमस्कार भैया, कैसे हैं आप?" - उधर से बड़े मीठे स्वर में आवाज आयी, मानो किसी ने मिश्री का घोल बातों में डुबा दिया हो या फिर बात ही मिश्री में डुबा कर बोली हो, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
"मैं अच्छा हूं, मगर पिता जी की तबियत आजकल बहुत ज्यादा खराब रहती है और आज तो ठीक से बोल भी नहीं पा रहे हैं" - बोलते - बोलते गला रूंध गया सुधीर का। आखिर वो किसको अपना दर्द बताता।
"भैया, घबराइये मत! वो ठीक हो जायेंगे" - विनोद ढ़ांढ़स बंधाने के उद्देश्य से बोला।
"हां, मगर वो तुम दोनों को देखना चाह रहे हैं। तुम आ सको तो आ जाओ थोड़ा वक्त निकालकर" -
सुधीर ने बिना उम्मीद के ये बात बोली।
"भैया! मन तो मेरा कर रहा है अभी उड़ कर वहां आ जाऊं। यहां तक कि मुझे नींद भी नहीं आयेगी ये जानकर। काश ये सच हो पाता मगर आपको तो पता है......." - विनोद ने फिर से मिश्री लगाकर ये बात कही। वो कहते हैं ना झूठे अमृत से अच्छा विष भरा सच पी लेना चाहिए। वही सुधीर ने किया।
"ठीक है!" बोलते हुए फोन काट दिया और विनोद को अपनी बात पूरी भी नहीं करने दी।
जीवन में कभी उदास नहीं हुआ था सुधीर! चाहे कितने भी कष्ट आये जीवन में, मगर आज कष्ट का प्रकार ही अलग है और ना चाहते हुए भी आंसू, पहाड़ से, दरवाजे से, सभी अवरोधों और पत्थरों को बहाकर बाहर तक आ गये और ये धारा इतनी तेज थी मानो समूचे गॉंव को पल भर में बहाने के इरादे से निकली हो!
सुधीर भी कहां हार मानने वाला था। उसने विशाल बांध लगाकर अगले ही पल समूची धारा को ऐसे सोख लिया मानो समुद्र में किसी ने एक लोटा जल ड़ाला हो। अब आप बताओ, उस एक लोटा जल से कहां बाढ़ आयेगी?
तभी उसने देखा शक्तिप्रसाद हलचल - सी कर रहे हैं, वो दौड़कर गया और बोला आप कोशिश मत करिये। मुझे आवाज दे दिया करो।
"पानी" - सिर्फ इतना ही बोल पाये शक्तिप्रसाद।
अब आप खुद बताओ बब्बर शेर अगर बूढ़ा हो जाये तो क्या वो अब शेर नहीं कहलायेगा। हां इतना जरूर है शिकार करने की ताकत अब उसमें नहीं रहेगी, मगर हौसले अभी भी दूर तक दहाड़ मारने का रखेगा। अब शक्ति प्रसाद भी बूढ़े शेर की भांति कोशिश करते। मानो अभी उठ बैठेंगे, मगर शरीर रूपी अवरोध उन्हें सफल कहॉं होने दे रहा था?
"लीजिए" - सुधीर इतने में पानी ले आया और बोला!
पानी पीने के बाद फिर से आंखें बन्द कर लीं।
सुधीर कुछ पूछना चाहता था, कुछ बोलना चाहता था, मगर तब तक आंखें बन्द हो चुकी थीं। मानो सायंकाल के बाद मन्दिर के कपाट बन्द कर दिये हों और कोई भक्त काफी समय पंक्ति में लगे रहने के बाद भी दर्शन से वंचित रह गया हो।
मगर कर भी क्या सकता था वो जानबूझकर तो ऐसा नहीं कर रहे थे। मगर मन पर किसका वश चला है! एक टीस तो उसे रह जाती कि काश ये थोड़ी बात कर सकें।
वैसे कभी बाप - बेटों की बातें काम से ज्यादा नहीं होती थीं, मगर शक्तिप्रसाद काफी दिनों से बोले नहीं थे, तो सुधीर उन्हें सुनने के लिए व्याकुल था।
सुधीर कमरे से बाहर तेजी से गया और इस बार ना जाने कैसे उस एक लोटा जल ने विशाल सागर में प्रलय - सी ला दी! मानो कोई बड़ा समुद्री तूफान आ गया हो और आज समूचे प्रदेश को बहा ले जायेगा।
और कुछ पल के लिए बिजली के समान गर्जना करते हुए आवाज सुधीर के हृदय से गले तक आयी मगर उसने धरती की भांति उसको ढ़कते हुए भूकम्प के कम्पन में बदल दिया। जैसे कोई बड़ा हादसा टाल दिया हो।
और अगले ही पल महर्षी अगस्त्य के समान समूचे सागर को आंखों के एक कोने में समेट दिया और अश्रु पोंछते हुए वापस आकर बैठ गया।
थोड़ी देर शांत बैठने के बाद फिर से अतीत का चित्रण सिनेमा की भांति आंखों के सामने चलने लगा और इस बार चित्रण थोड़ा आगे निकल चुका था। मानो जितने समय सुधीर व्यस्त हुआ उस वक्त का सारा अध्याय निकलकर आगे पहुंच गया हो!
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Part 1
Part 2
Part 3
Part 4
Part 5
Part 6
Part 7
Part 8
Part 9
Loved the way you compared his grief to the ocean and his willpower to the earth. Mann vyakul ho baitha uski yeh halat dekh kar. Going to the next part now :)
ReplyDeleteActually now my effort are going to destination , you picked up correct point I did so much to create that situation even I was also weeping and now I got success because of reader like you .
ReplyDeleteThank you mam
You're most welcome 😊 लेकिन point यह है कि आपको पहले अपने लिए लिखना चाहिए, फिर औरो के लिए. जब आप खुद को ही अपने लेख से इम्प्रेस नहीं कर पाएंगे, तो किसी और को क्या करेंगे? 😊
ReplyDeleteMam khud ko impress krne k liye hi m writing krta hu vrna m to hun " मतलबी" sb kuch apni khushi k liye krta hu 😂😂
ReplyDeleteAise he kijiye jab talak aapki khud ki book na publish ho jaaye. Then you may write for the readers
ReplyDeleteNi mera aim book publish krna Ni h
ReplyDeleteWriting Meri hobby h
Progression mera software engineering hoga Jo m Abhi kr rha hu 😉
Haan meri itni responsibility hoti h k m kuch acha likhu agr blog p hu to bss usi prayas m rhta hu 😊
Profession *
ReplyDeleteBecause of autocorrect 😂😂😂😂
Chalo koi nahin... उसी के लिए लिखना चालू रखियेगा.... हम जैसों को अपनी कहानियों से मंत्र मुग्ध रखियेगा 😁😁
ReplyDeleteआपने मुझे अपने वायु रूपी शब्दों से हल्के पत्ते की भांति गगन तक पहुंचा दिया 😂
ReplyDeleteधन्यवाद
मैं पूरा प्रयास करूंगा!
Good to know that :)
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteवाह! आज बहुत दिन बाद आयीं और भाग-3 पढ़ने को मिला😊👍
ReplyDelete🙏🙏🙏
ReplyDeleteWow man
ReplyDeleteThanks 😂
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