कभी कभी घिर जाते हैं हम गहरे किसी दलदल में, फँस जाते हैं जिंदगी के चक्के किसी कीचड़ में, तब जिंदगी चलती भी है तो रेंगकर, लगता है सब रुका हुआ सा। बेहोशी में लगता है सब सही है, पता नहीं रहता अपने होने का भी, तब बेहोशी हमें पता नहीं लगने देती कि होश पूरा जा चुका है। ठीक भी है बेहोशी ना हो तो पता कैसे लगाइएगा की होश में रहना क्या होता है, विपरीत से ही दूसरे विपरीत को प्रकाश मिलता है अन्यथा महत्व क्या रह जायेगा किसी भी बात का फिर तो सही भी ना रहेगा गलत भी ना रहेगा सब शून्य रहेगा। बेहोशी भी रूकती नहीं हमेशा के लिए कभी आते हैं ऐसे क्षण भी जब एक दम से यूटूर्न मार जाती है आपकी नियति, आपको लगता है जैसे आँधी आयी कोई और उसने सब साफ कर दिया, बेहोशी गिर गयी धड़ाम से जमीन पर, आपसे अलग होकर। अभी आप देख पा रहे हो बाहर की चीजें साफ साफ, आपको दिख रहा है कि बेहोशी में जो कुछ चल रहा था वो मेरे भीतर कभी नही चला। जो भी था सब बाहर की बात थी, मैं तो बस भूल गया था खुद को बेहोशी में, ध्यान ना रहा था कि सब जो चल रहा था कोई स्वप्न था। खैर जो भी था सही था, जैसी प्रभु की इच्छा, जब मन किया ध्यान में डुबो दिया जब मन कि
फिर से लगीं मुजलिसें वहॉं पर
शमा भी हसीन हो चलीं हैं
वो वीरान सी पड़ी बस्ती में
अब रातों में भी रोशनी जलने लगी हैं
वर्षों से सूखे पड़े दीयों में
तेल जाने अब कौन दे रहा है?
अब शामें भी खुशनसीब हो चली हैं !
वो पूछ रहा था हाल चाल उन सबसे
जिनके हिस्से की रोटी
वो कबकी डकार चुका है
पूछ रहा है घर के हालात उस गरीब से
जिसके हिस्से के पैसे वो कबसे मार रहा है !
शातिर दिमाग हो तो तुम जैसा
बेसुरा राग हो तो तुम जैसा
उस दिन हाथ जोडकर वोट मांगा था तुमने
फिर मुड़कर कभी ना देखा था तुमने
मगर आज फिर से सिर झुकाया है तुमने
कोई बेशरम हो तो तुम्हारे जैसा !
वो गरीब आज भी उम्मीदें रखता है
तभी कड़ी धूप में तुम्हारे भाषण देखता है
मगर कौन समझाये उस बेचारे को
ये सियासत है मेरे दोस्त
यहां हर कोई जिस्म से लेकर ईमान तक बेचता है !
©Confused Thoughts
शमा भी हसीन हो चलीं हैं
वो वीरान सी पड़ी बस्ती में
अब रातों में भी रोशनी जलने लगी हैं
वर्षों से सूखे पड़े दीयों में
तेल जाने अब कौन दे रहा है?
अब शामें भी खुशनसीब हो चली हैं !
वो पूछ रहा था हाल चाल उन सबसे
जिनके हिस्से की रोटी
वो कबकी डकार चुका है
पूछ रहा है घर के हालात उस गरीब से
जिसके हिस्से के पैसे वो कबसे मार रहा है !
शातिर दिमाग हो तो तुम जैसा
बेसुरा राग हो तो तुम जैसा
उस दिन हाथ जोडकर वोट मांगा था तुमने
फिर मुड़कर कभी ना देखा था तुमने
मगर आज फिर से सिर झुकाया है तुमने
कोई बेशरम हो तो तुम्हारे जैसा !
वो गरीब आज भी उम्मीदें रखता है
तभी कड़ी धूप में तुम्हारे भाषण देखता है
मगर कौन समझाये उस बेचारे को
ये सियासत है मेरे दोस्त
यहां हर कोई जिस्म से लेकर ईमान तक बेचता है !
©Confused Thoughts
I just like these that I can't understand. To say I was here.. and saw your posts in Hindi
ReplyDeleteI know
ReplyDeleteI m sorry , next time I will try to attach a translate copy also
बहुत ही शानदार :-)
ReplyDeleteDhanyavaad mam
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