प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
चाचा आप सो गये क्या बैठे - बैठे? रात काफी है, अगर नींद आ रही है तो मैं आपको घर छोड़ आऊं? " - पीछे से सुधीर बड़े धीमे स्वर में बोला।
"नहीं - नहीं! मैं जाग रहा हूं" -एक साथ सकपकाकर कर जमुनादास उठे, जाग तो रहे थे मगर आंखें ऐसे खुली जैसे गहरी नींद से उठे हों!
फिर आंखें मलते हुए बोले - "तुम अकेले रह जाओगे यहां, गम की रातें बहुत लम्बी हो जाती हैं, बेटा! एक - एक पल वर्षों के जैसा लगता है, अगर दोनों रहेंगे तो बोलते - बतियाते रात गुजर जायेगी।"
अब सुधीर निःशब्द था, सहमति भरते हुए बोला - "ठीक है।"
तभी बहुत हलके से स्वर में कुछ आवाज आई-
ये स्वर थे शक्तिप्रसाद के! बड़ी हिम्मत और कोशिश के बाद ये स्वर निकले थे, सुधीर दौड़ता हुआ समीप आया और बोला "हां, पिताजी!"
"अजीत" - सिर्फ इतना ही बोल पाये वो, बोलना तो और भी बहुत कुछ चाहते थे मगर शरीर खुद उनका अवरोध कर रहा था!
सुधीर चुप खड़ा था, मानो उसने बात ही नहीं सुनी हो। एक पल आपको लगेगा उसने ध्यान नहीं दिया था, मगर वो सिर्फ एक शब्द में सब कुछ समझ गया था कि आखिर बोलना क्या चाहते हैं पिताजी! मगर प्रश्न का उत्तर नहीं था उसके पास!
जाकर फिर से जमुना प्रसाद के बगल में बैठ गया और शक्तिप्रसाद भी अपनी आंखें पहले की भांति मूदकर सो गये (बीमारी में नीद जैसे जागने ही नहीं देती)।
"फोन किया था उनको" - काफी देर की शांति के बाद जमुना प्रसाद चुप्पी तोड़ते हुए बहुत हल्के स्वर में बोले!
"हां, मगर दोनों ने अपने - अपने बहाने बताकर थोड़ी देर बाद बात करने का आश्वासन दे दिया है, मानो मैं उनका कोई बिजनेस क्लाइंट हूं!"
सुधीर चुप रहना चाह रहा था मगर पहले शक्तिप्रसाद, बाद में अब जमुनाप्रसाद एक ही बात पूछ रहे थें, तो सुधीर थोड़ा झल्लाकर, भावपूर्ण होकर यह बात बोला और बोलते - बोलते उसका गला रूंध गया!
जमुनाप्रसाद की मानो किसी ने आवाज छीन ली हो, एकदम चुप थे। फिर से वही सन्नाटा हो गया!
अभी भी सुधीर के भाव शांत नहीं हो रहे थें, आखिर ऐसा हो भी क्यों ना, कई वर्षों से वो चुप ही तो था! कभी उसने भाइयों के बारे में शिकायत नहीं की, हमेशा बड़े होने का पूरा फर्ज अदा किया। यही सब बातें सुधीर के दिमाग में एक अजीब - सा शोर कर रहीं थीं!
कहने को तो पूरा कमरा शांत था, मगर सुधीर के लिए तो भीषण कोलाहल था! मानो ये कर्कश आवाजें उसकी श्रवण शक्ति छीन रही हों!
अब पुरानी यादों को कौन रोक पाया है! कभी ना कभी दिमाग में आ ही जाती हैं और फिर जमकर हमला करती हैं जिससे मन और हृदय दोनों चोटिल हो जाते हैं !
सुधीर भी उसी अजब - सी दुविधा में फंस चुका था,
उसे वो दिन याद आ रहे थे, जब गांव में बड़े - से बरामदे में, उनकी मां चूल्हे पर रोटियां बनाती थी और सुधीर साईकिल से अपने घर वापस आता था। आखिर उसका कॉलेज पूरे १६ किमी दूर जो था गांव से और वहीं दोनों भाई रविवार की छुट्टियां मनाने मेहमान की भांति आते थें। शक्तिप्रसाद पुराने विचारों के आदमी थे। मगर पढ़ाई - लिखाई के मामले में वो अपने बेटों को सबसे आगे रखना चाहते थे! जब बड़े बेटे को पढ़ाने का समय था तब उनके पास इतने ज्यादा पैसे नहीं थे कि उसे बड़े कान्वेंट स्कूल में शहर भेज सकें। इसलिए सुधीर को प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाया मगर पढ़ाई में अच्छा होने के कारण सारी कक्षायें प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। बाद में पास के शहर के एक सरकारी कॉलेज में बीएससी में दाखिला भी मिल गया!
वो कहते हैं ना ऊपर वाला कब फकीर बना दे, कब अमीर बना दे पता नहीं चलता! वही शक्तिप्रसाद के साथ हुआ। खेती अच्छी होने लगी थी और सुधीर भी हाथ बंटाता तो अब धन की कोई कमी नहीं थी। इसलिए दोनों छोटे बेटों को शहर के बड़े कान्वेंट में भेज दिया गया क्योंकि गांव में लोग सोचते हैं - एक बेटा मां - बाप के पास रहना जरूरी है, इसलिए सुधीर को गांव से रोज रास्ता नापनी पड़ती थी। मगर जवान शरीर था, एक तरह से रोज की कसरत ही समझ लो!
फिर सुधीर की पढ़ाई पूरी हुई और सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किया और झट से उनका चयन भी हो गया!
सुधीर को लगता था कि मां - बाप का लाड़ - प्यार छोटे भाइयों में ज्यादा है। मैं घर पर ही रहता हूं इसलिए ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता!
बात उसकी भी कई हद तक ठीक थी, क्योंकि दोनों छोटे भाई कभी - कभी गांव आते तो खूब जोरों - शोरों से सत्कार होता था। मगर सुधीर को इससे कभी जलन नहीं हुई, क्योंकि वो भी बहुत अधिक स्नेह करता था अपने भाइयों से।
वो बात अभी भी याद है उसे,जब शहर जाकर अपने भाइयों की तरफ से खूब लड़कर आया था, कुछ लड़के परेशान करते थें हॉस्टल में। जवानी का गर्म खून कहां सहता है ये सब! जैसे ही भाइयों ने सुधीर को बताया वो तुरन्त साइकिल लेकर हास्टल गया और वार्डन की एक ना सुनते हुए लडकों की खूब पिटाई की! आखिर गुस्सा भी क्यों नहीं आता! सुधीर के प्यारे भाइयों को हाथ जो लगा दिया था किसीने, जिनके लिए वो अलग से अपने हिस्से की मिठाई तक दे देता था।
वो बात अलग है, बाद में वार्डन ने दोनों भाइयों को निलम्बित कर दिया और शक्तिप्रसाद से माफीनामा मांगने के बाद फिर से बहाल किया।
और फिर घर जाकर सुधीर को शक्तिप्रसाद के भीषण गुस्से का शिकार भी होना पड़ा, मगर उसे अपने किये का तनिक भी पछतावा नहीं था।
आखिर अपनी जगह वो ठीक भी था, क्योंकि अजीत ६ साल छोटा और विनोद ७.५ साल छोटा था तो स्नेह होना लाजिमी था!
फिर दोनों बाहर पढ़ने चले गयें, तो सुधीर अकेला सा पड़ गया। यह कहना न्यायपूर्ण नहीं है क्योंकि वो तो बचपन से ही अकेला था क्योंकि पहले भाई बहुत छोटे थें, बाद में दोनों बाहर चले गयें और ऊपर से शक्तिप्रसाद की सख्त हिदायत थी गांव में दोस्त ना बनाने की!
मगर कहते हैं ना कामकाजी इन्सान के लिए अकेलापन कहां?
काम से उसने दोस्ती कर ली थी, बिल्कुल अपने बाप की तरह!
वो कहावत है ना
"मां को बेटी, बाप को घोड़ा, बहुत नहीं, तो थोड़ा - थोड़ा!"
खैर वक्त किसके वश में रहा है! रावण ने काल को कैद कर रखा था, मगर एक दिन काल कैद से छूट गया और पूरी लंका तबाह कर गया!
.......आगे पढ़ते रहिये
Part 1
Part 2
Part 3
Part 4
Part 5
Part 6
Part 7
Part 8
Part 9
"नहीं - नहीं! मैं जाग रहा हूं" -एक साथ सकपकाकर कर जमुनादास उठे, जाग तो रहे थे मगर आंखें ऐसे खुली जैसे गहरी नींद से उठे हों!
फिर आंखें मलते हुए बोले - "तुम अकेले रह जाओगे यहां, गम की रातें बहुत लम्बी हो जाती हैं, बेटा! एक - एक पल वर्षों के जैसा लगता है, अगर दोनों रहेंगे तो बोलते - बतियाते रात गुजर जायेगी।"
अब सुधीर निःशब्द था, सहमति भरते हुए बोला - "ठीक है।"
तभी बहुत हलके से स्वर में कुछ आवाज आई-
ये स्वर थे शक्तिप्रसाद के! बड़ी हिम्मत और कोशिश के बाद ये स्वर निकले थे, सुधीर दौड़ता हुआ समीप आया और बोला "हां, पिताजी!"
"अजीत" - सिर्फ इतना ही बोल पाये वो, बोलना तो और भी बहुत कुछ चाहते थे मगर शरीर खुद उनका अवरोध कर रहा था!
सुधीर चुप खड़ा था, मानो उसने बात ही नहीं सुनी हो। एक पल आपको लगेगा उसने ध्यान नहीं दिया था, मगर वो सिर्फ एक शब्द में सब कुछ समझ गया था कि आखिर बोलना क्या चाहते हैं पिताजी! मगर प्रश्न का उत्तर नहीं था उसके पास!
जाकर फिर से जमुना प्रसाद के बगल में बैठ गया और शक्तिप्रसाद भी अपनी आंखें पहले की भांति मूदकर सो गये (बीमारी में नीद जैसे जागने ही नहीं देती)।
"फोन किया था उनको" - काफी देर की शांति के बाद जमुना प्रसाद चुप्पी तोड़ते हुए बहुत हल्के स्वर में बोले!
"हां, मगर दोनों ने अपने - अपने बहाने बताकर थोड़ी देर बाद बात करने का आश्वासन दे दिया है, मानो मैं उनका कोई बिजनेस क्लाइंट हूं!"
सुधीर चुप रहना चाह रहा था मगर पहले शक्तिप्रसाद, बाद में अब जमुनाप्रसाद एक ही बात पूछ रहे थें, तो सुधीर थोड़ा झल्लाकर, भावपूर्ण होकर यह बात बोला और बोलते - बोलते उसका गला रूंध गया!
जमुनाप्रसाद की मानो किसी ने आवाज छीन ली हो, एकदम चुप थे। फिर से वही सन्नाटा हो गया!
अभी भी सुधीर के भाव शांत नहीं हो रहे थें, आखिर ऐसा हो भी क्यों ना, कई वर्षों से वो चुप ही तो था! कभी उसने भाइयों के बारे में शिकायत नहीं की, हमेशा बड़े होने का पूरा फर्ज अदा किया। यही सब बातें सुधीर के दिमाग में एक अजीब - सा शोर कर रहीं थीं!
कहने को तो पूरा कमरा शांत था, मगर सुधीर के लिए तो भीषण कोलाहल था! मानो ये कर्कश आवाजें उसकी श्रवण शक्ति छीन रही हों!
अब पुरानी यादों को कौन रोक पाया है! कभी ना कभी दिमाग में आ ही जाती हैं और फिर जमकर हमला करती हैं जिससे मन और हृदय दोनों चोटिल हो जाते हैं !
सुधीर भी उसी अजब - सी दुविधा में फंस चुका था,
उसे वो दिन याद आ रहे थे, जब गांव में बड़े - से बरामदे में, उनकी मां चूल्हे पर रोटियां बनाती थी और सुधीर साईकिल से अपने घर वापस आता था। आखिर उसका कॉलेज पूरे १६ किमी दूर जो था गांव से और वहीं दोनों भाई रविवार की छुट्टियां मनाने मेहमान की भांति आते थें। शक्तिप्रसाद पुराने विचारों के आदमी थे। मगर पढ़ाई - लिखाई के मामले में वो अपने बेटों को सबसे आगे रखना चाहते थे! जब बड़े बेटे को पढ़ाने का समय था तब उनके पास इतने ज्यादा पैसे नहीं थे कि उसे बड़े कान्वेंट स्कूल में शहर भेज सकें। इसलिए सुधीर को प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाया मगर पढ़ाई में अच्छा होने के कारण सारी कक्षायें प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। बाद में पास के शहर के एक सरकारी कॉलेज में बीएससी में दाखिला भी मिल गया!
वो कहते हैं ना ऊपर वाला कब फकीर बना दे, कब अमीर बना दे पता नहीं चलता! वही शक्तिप्रसाद के साथ हुआ। खेती अच्छी होने लगी थी और सुधीर भी हाथ बंटाता तो अब धन की कोई कमी नहीं थी। इसलिए दोनों छोटे बेटों को शहर के बड़े कान्वेंट में भेज दिया गया क्योंकि गांव में लोग सोचते हैं - एक बेटा मां - बाप के पास रहना जरूरी है, इसलिए सुधीर को गांव से रोज रास्ता नापनी पड़ती थी। मगर जवान शरीर था, एक तरह से रोज की कसरत ही समझ लो!
फिर सुधीर की पढ़ाई पूरी हुई और सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किया और झट से उनका चयन भी हो गया!
सुधीर को लगता था कि मां - बाप का लाड़ - प्यार छोटे भाइयों में ज्यादा है। मैं घर पर ही रहता हूं इसलिए ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता!
बात उसकी भी कई हद तक ठीक थी, क्योंकि दोनों छोटे भाई कभी - कभी गांव आते तो खूब जोरों - शोरों से सत्कार होता था। मगर सुधीर को इससे कभी जलन नहीं हुई, क्योंकि वो भी बहुत अधिक स्नेह करता था अपने भाइयों से।
वो बात अभी भी याद है उसे,जब शहर जाकर अपने भाइयों की तरफ से खूब लड़कर आया था, कुछ लड़के परेशान करते थें हॉस्टल में। जवानी का गर्म खून कहां सहता है ये सब! जैसे ही भाइयों ने सुधीर को बताया वो तुरन्त साइकिल लेकर हास्टल गया और वार्डन की एक ना सुनते हुए लडकों की खूब पिटाई की! आखिर गुस्सा भी क्यों नहीं आता! सुधीर के प्यारे भाइयों को हाथ जो लगा दिया था किसीने, जिनके लिए वो अलग से अपने हिस्से की मिठाई तक दे देता था।
वो बात अलग है, बाद में वार्डन ने दोनों भाइयों को निलम्बित कर दिया और शक्तिप्रसाद से माफीनामा मांगने के बाद फिर से बहाल किया।
और फिर घर जाकर सुधीर को शक्तिप्रसाद के भीषण गुस्से का शिकार भी होना पड़ा, मगर उसे अपने किये का तनिक भी पछतावा नहीं था।
आखिर अपनी जगह वो ठीक भी था, क्योंकि अजीत ६ साल छोटा और विनोद ७.५ साल छोटा था तो स्नेह होना लाजिमी था!
फिर दोनों बाहर पढ़ने चले गयें, तो सुधीर अकेला सा पड़ गया। यह कहना न्यायपूर्ण नहीं है क्योंकि वो तो बचपन से ही अकेला था क्योंकि पहले भाई बहुत छोटे थें, बाद में दोनों बाहर चले गयें और ऊपर से शक्तिप्रसाद की सख्त हिदायत थी गांव में दोस्त ना बनाने की!
मगर कहते हैं ना कामकाजी इन्सान के लिए अकेलापन कहां?
काम से उसने दोस्ती कर ली थी, बिल्कुल अपने बाप की तरह!
वो कहावत है ना
"मां को बेटी, बाप को घोड़ा, बहुत नहीं, तो थोड़ा - थोड़ा!"
खैर वक्त किसके वश में रहा है! रावण ने काल को कैद कर रखा था, मगर एक दिन काल कैद से छूट गया और पूरी लंका तबाह कर गया!
.......आगे पढ़ते रहिये
Part 1
Part 2
Part 3
Part 4
Part 5
Part 6
Part 7
Part 8
Part 9
☺👌👌👍
ReplyDeleteमेरे छोटे से प्रयास पर ध्यान देने के लिए
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Thanks to you dear...itna accha sa kuch share karne ke liye☺
ReplyDeleteअगर मेरी कल्पित कहानी से आपको कुछ अच्छा मिला है तो मेरा लिखना यहीं सफल है ! मुझे लगता है मैं अभी तक इस कहानी के साथ न्याय नहीं कर पाया हूं कोशिश अभी भी जारी है ...
ReplyDelete😊😊😊
ReplyDeleteI love the way this is progressing. Saath saath ek udasi bhi hai ki Shaktiprasad ke woh do laadle jinke liye usne aur Sudhir ne itna kuch saha, unke aakhri waqt mein unke saath bhi nahi hain. Wah ri zindagi....Gazab khel khelti hai tu bhi. Ek hidayat zaroor dungi - apne Urdu ke shabdon pe tanik dhyaan dijiye. Aapko pata he hoga ki Urdu ke shabd Hindi mein zara alag tareeke se likhe jaate hain. For example, roz yaani ki har din, ek Urdu ka shabd hai, jise hindi mein sahi tareeke se रोज likha jata hai, lekin 'ja' ke neeche ek bindu aata hai. Hum Bharatvasiyon ne uss shbd Roz ko रोज mein tabdeel kar diya hai, lekin woh sahi talaffuz nahi hai. Bas itna he kehna tha, Baki aap khud he bahut umda likhte hain! Keep it up!
ReplyDeleteMam sbse phle m thank you bolunga apne meri story pdhi and
ReplyDeleteUske baad ek thank you hindayat k liye bnta hai, this is first time , someone have given such valuable comment ,in my the learning phase I really never think about it but in future sure I will try to create difference between Hindi and Urdu ,
This point is valuable for me .
Actually I did read hindi books and novel in 10th standard that's why I made such mistakes but next time I will try to improve .
Happy to help... You're most welcome 😊 😊
ReplyDelete🙏🙏🙏
ReplyDeleteMam need your help ?
ReplyDeleteIf you get free time then please point out those words from this story .
I know it's time wasting but please help me if you can
It's no time wasting. Please give me some time. I'll be glad to help you out 😊
ReplyDeleteNot hurry !
ReplyDeleteWhen you have free time ,you can find out
Sure! 😊
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteThank you for the honor 😀
ReplyDeleteगांव के लोग बडों का स्वागत इसी प्रकार से करते हैं !
ReplyDeleteHumein bhi pata hai. Hum bhi Himalay के गाँव में रेह चुके हैं 😁
ReplyDelete😁😁
ReplyDeleteमैं गांव में ही रहता हूं
ReplyDeleteमुझे समझ आ गया था आपके पिछले comment से
ReplyDeleteWow ! Yarr phle toh aap apna name btaeye...what a marvellous post...i really really happy to see this stuff here and at first time when i completed reading then again started to read...this is a great demanded story of india and i loved these so beautifully designed words ...bhai chahe jitna bhi appreciate krun wo bhi kam pdega aapke post k aage...
ReplyDeleteGreat job.. !
ReplyDeleteOmg
ReplyDeleteSo much appreciations
I did not think that a person will use such great words for my small creation
I can't express my feelings , you won't believe that I took screenshot first and have putted on whatsapp status
It mean alot to me
Thank you so much for your kind words
Oh remember !my name is shubhankar
Glad to know that you liked my post very much
Thank you again bro !🙏
Thanks
ReplyDeleteU r the best creater in the world..i can say with my 101 ℅ confidence..↗↗↗
ReplyDeleteBhai Bhai
ReplyDeleteYe tareef kuch overflow ho gyi 😉
NAHI yaar m to ek chota SA writer hu Abhi kuch Dino phle likhna start Kia tha
Thanks for such appreciation next time I will try to improve little bit more
No overflow..keep going brother
ReplyDeleteWhat does it mean 'chota sa writer'?
It means nothing ...
U knw every artiest is a first learner...
Thanks bro
ReplyDeleteFor such kinds of motivation
yes...ur mail brother ?
ReplyDeleteShubhankarsharma428@gmail.com
ReplyDeletethank you brother
ReplyDelete