कुछ बन जाने में एक चुनाव है, जिसके बाद इंसान कुछ और नहीं बन पाता, मगर कुछ ना बनने में, सब कुछ बन जाने की संभावना होती है। #ShubhankarThinks
चैन और सुकून से भरा था मुहल्ला,
आवामएहिन्द बडी मौज में रहती थी|
महफिलएशायरी करते थे लोग वहां,
मुशायरे में होती थीं रौनकें जहां की!
कोई शमा मुजलिस में मशगूल होती थी|
मुफलिसी में रहते थे वो फकीर वहां के,
मगर उनकी बातों में भी अमीरी सी होती थी|
हुस्नएअदा थी तहजीब में उनके,
तालीम की पहचान भी अदब बातों से होती थी |
एक बाज की नजरएबाद थी बस्ती पर ,
उसे आवाम के चैन अमन से तकलीफ सी होती थी|
कुदरत का बदस्तूर जमाने पर नागवार गुजरा,
उस बाज ने कुछ नापाक तरकीब सी सोची थी|
एक जगह थी सबके पानी पीने की,
जहां मुहब्बत अदब से सबकी भरपाई होती थी|
मजहबी जहर को मिलाया था पानी में ,
अब पानी की जरूरत तो लगभग सभी को होती थी|
पानी पीना जंगएमैदान बन गया ,
अब पानी के लिए लोगों में तकरार सी होती थीं|
धीरे धीरे जहर असर दिखाने लगा था,
बाज की तरकीब अब कामयाब हो रही थी|
तकरारों का सिलसिला रफ्तार से बढा फिर,
अब मौकाएवारदात पर मौंते भी हो रही थी|
पैगामएअमन तो ख्वाबों में भी नहीं था,
महफिलों में भी अब नफरतएदास्तां होती थी|
अमन और मुहब्बत तो सब किस्से बन गये,
अब तो रातें भी वीरानियों के मंजर में सोती थीं |
खौफएखुदा तो गुमनाम सा हो चला अब,
बाजों की चापलूसी अलग अलग खेमे में होती थी|
दीवारएमजहब अब जमाने पर छाया था ,
इन्सान की पहचान अब मजहब से होती थी |
मैं भी इंसान था उस बस्ती का ऐ बाज,
मेरी आवामएहिन्द बडे चैन से सोती थी|
क्या बिगाडा था तेरा इस उजडे चमन ने?
तुझे मेरे वतन से यूं तकलीफ क्यूं होती थी?
चापलूस बहुत बन चुके थे बाज के अब तक,
मेरी बातों से अब जहां को कोफ्त सी होती थी||
नहीं करना चाहता था मैं पैरवी इस मुकदमे की,
मगर अल्फाजों की अजमाइशें बडे जोरों से होती थीं||
.............to be continue
(अगला भाग आपके आदेश पर प्रकाशित होगा)
©Confused Thoughts
उर्दू का ञान बहुत कम है फिर भी एक विफल सा प्रयास किया है अपनी राय अवश्य देना आपकी राय महत्वपूर्ण है!
आवामएहिन्द बडी मौज में रहती थी|
महफिलएशायरी करते थे लोग वहां,
मुशायरे में होती थीं रौनकें जहां की!
कोई शमा मुजलिस में मशगूल होती थी|
मुफलिसी में रहते थे वो फकीर वहां के,
मगर उनकी बातों में भी अमीरी सी होती थी|
हुस्नएअदा थी तहजीब में उनके,
तालीम की पहचान भी अदब बातों से होती थी |
एक बाज की नजरएबाद थी बस्ती पर ,
उसे आवाम के चैन अमन से तकलीफ सी होती थी|
कुदरत का बदस्तूर जमाने पर नागवार गुजरा,
उस बाज ने कुछ नापाक तरकीब सी सोची थी|
एक जगह थी सबके पानी पीने की,
जहां मुहब्बत अदब से सबकी भरपाई होती थी|
मजहबी जहर को मिलाया था पानी में ,
अब पानी की जरूरत तो लगभग सभी को होती थी|
पानी पीना जंगएमैदान बन गया ,
अब पानी के लिए लोगों में तकरार सी होती थीं|
धीरे धीरे जहर असर दिखाने लगा था,
बाज की तरकीब अब कामयाब हो रही थी|
तकरारों का सिलसिला रफ्तार से बढा फिर,
अब मौकाएवारदात पर मौंते भी हो रही थी|
पैगामएअमन तो ख्वाबों में भी नहीं था,
महफिलों में भी अब नफरतएदास्तां होती थी|
अमन और मुहब्बत तो सब किस्से बन गये,
अब तो रातें भी वीरानियों के मंजर में सोती थीं |
खौफएखुदा तो गुमनाम सा हो चला अब,
बाजों की चापलूसी अलग अलग खेमे में होती थी|
दीवारएमजहब अब जमाने पर छाया था ,
इन्सान की पहचान अब मजहब से होती थी |
मैं भी इंसान था उस बस्ती का ऐ बाज,
मेरी आवामएहिन्द बडे चैन से सोती थी|
क्या बिगाडा था तेरा इस उजडे चमन ने?
तुझे मेरे वतन से यूं तकलीफ क्यूं होती थी?
चापलूस बहुत बन चुके थे बाज के अब तक,
मेरी बातों से अब जहां को कोफ्त सी होती थी||
नहीं करना चाहता था मैं पैरवी इस मुकदमे की,
मगर अल्फाजों की अजमाइशें बडे जोरों से होती थीं||
.............to be continue
(अगला भाग आपके आदेश पर प्रकाशित होगा)
©Confused Thoughts
उर्दू का ञान बहुत कम है फिर भी एक विफल सा प्रयास किया है अपनी राय अवश्य देना आपकी राय महत्वपूर्ण है!
Good one!!!
ReplyDeleteWas waiting for your response! Unexpected 😊
ReplyDeleteThank you
Unexpected!!!😐😮
ReplyDeleteQ
Mujhe ni pta tha first comment itna jaldi ayega vo b apka
ReplyDeleteHehe...
ReplyDeleteDil SE yaad Kia hoga..Tbhi m aai
नहीं मेरा ध्यान कविता में था 😂😂
ReplyDeleteमगर जब अनुभवी लेखकों की प्रतिक्रिया मिलनी शुरू हो जायें तब दिल बाग बाग जरूर हो जाता है
😮😮😮😂😂😂😂😂
ReplyDeleteM confuse ho gai Kya bolu. 😮
Confused thoughts naam to pdha hi hoga 😂
ReplyDeleteआप तो छा गये वाह!!!
ReplyDeleteशुक्रिया मैम
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