प्रेम को जितना भी जाना गया वो बहुत कम जाना गया, प्रेम को किया कम लोगों ने और लिखा ज्यादा गया। ख़ुशी मिली तो लिख दिया बढ़ा चढ़ाकर, मिले ग़म तो बना दिया बीमारी बनाकर। किसी ने बेमन से ही लिख दी दो चार पंक्ति शौकिया तौर पर, कोई शुरुआत पर ही लिखता रहा डुबा डुबा कर। कुछ लगे लोग प्रेम करने ताकि लिखना सीख जाएं, फ़िर वो लिखने में इतने व्यस्त कि भूल गए उसे यथार्थ में उतारना! हैं बहुत कम लोग जो ना बोलते हैं, ना कुछ लिखते हैं उनके पास समय ही नहीं लिखने के लिए, वो डूबे हैं प्रेम में पूरे के पूरे। वो जानते हैं की यह लिखने जितना सरल विषय है ही नहीं इसलिए वो बिना समय व्यर्थ किए कर रहे हैं उस हर पल जीने की। उन्हें दिखाने बताने, समझाने जैसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं दिखती,वो ख़ुद पूरे के पूरे प्रमाण हैं, उनका एक एक अंश इतना पुलकित होगा कि संपर्क में आया प्रत्येक व्यक्ति उस उत्सव में शामिल हुए बिना नहीं रह पायेगा। वो चलते फिरते बस बांट रहे होंगे, रस ही रस। ~ #ShubhankarThinks
चैन और सुकून से भरा था मुहल्ला, आवाम ए हिन्द बडी मौज में रहती थी| महफिल ए शायरी करते थे लोग वहां, मुशायरे में होती थीं रौनकें जहां की! कोई शमा मुजलिस में मशगूल होती थी| मुफलिसी में रहते थे वो फकीर वहां के, मगर उनकी बातों में भी अमीरी सी होती थी| हुस्न ए अदा थी तहजीब में उनके, तालीम की पहचान भी अदब बातों से होती थी | एक बाज की नजर ए बाद थी बस्ती पर , उसे आवाम के चैन अमन से तकलीफ सी होती थी| कुदरत का बदस्तूर जमाने पर नागवार गुजरा, उस बाज ने कुछ नापाक तरकीब सी सोची थी| एक जगह थी सबके पानी पीने की, जहां मुहब्बत अदब से सबकी भरपाई होती थी| मजहबी जहर को मिलाया था पानी में , अब पानी की जरूरत तो लगभग सभी को होती थी| पानी पीना जंग ए मैदान बन गया , अब पानी के लिए लोगों में तकरार सी होती थीं| धीरे धीरे जहर असर दिखाने लगा था, बाज की तरकीब अब कामयाब हो रही थी| तकरारों का सिलसिला रफ्तार से बढा फिर, अब मौका ए वारदात पर मौंते भी हो रही थी| पैगाम ए अमन तो ख्वाबों में भी नहीं था, महफिलों में भी अब नफरत ए दास्तां होती थी| अमन और मुहब्बत तो सब किस्से बन गये, अब तो रातें भी वीरानियों के मंजर में सोती थीं